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Rupa Jha
राम की लीला राम ही जाने कैसे कैसे खेल रचाता और जाने लीला राम को क्यों उसके मन को है लुभाता ©Rupa Jha #रामलीला
Parasram Arora
रामलीला का खेल बिना राम बिना रावण चलेगा कैसे. लीला चलेगी नही देर तक और न इंच भर भी आगे खिसक पाएगी दर्शक दीरघा में बैठी जनता पहले ही उठ जायेगी क्योंकि सीता अभी तक चुराई नही गई और रावण भी अब तक मंच पर पंहुचा नही हैं युद्ध की घड़ी भी टली जा रही हैं धनुरधारी राम अभी भी मंच पर मौन साधे बैठे हैँ और कोई लीला अब तक वहा घटी नही हैं ©Parasram Arora रामलीला.....
Dv Rawat
आंसुओं का समंदर था मेरे दिल में भरा तू तैर ना सकी मैं डूबता गया ©Dv Rawat #रामलीला
Ek villain
स्वाधीनता के 75 वें वर्ष में हम ऐसी पुस्तकों का आह्वान कर रहे हैं जिससे भारतीय सभ्यता और संस्कृति के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ऐसे में तमाम ऐसी संस्कृत शक्तियों की किताब भी महत्वपूर्ण बन जाती है जिनके पाठ से हमें भारतीय संस्कृत का सही रूप दिखाई देता है रामलीला परंपरा काम करने वाली प्रख्यात लेखिका हिंदुजा की रामलीला परंपरा से लिया एक महत्वपूर्ण किताब बन जाती है इस संदर्भ में कि भारत में राम कथा गायन और राम कथा को कलाओं में निपुण की पूरी कल्पना रामशिला ही है रामलीला के अध्ययन को लेकर यह किताब एक विशेष प्रकार के अध्ययन की मांग करती है हिंदी भाषा क्षेत्र के प्राचीन नाट्य परंपरा रामलीला ढाक के पुस्तक किया गया है रामलीला के ऐतिहासिक भूमिका संस्कृत और मध्ययुग गणितीय परंपरा से संबंध में संवाद के सूत्रों सामाजिक संस्कृत प्राकृतिक प्रदर्शन उसके रामलीला के रंगमंच परंपरा जैसी सभी छात्रों को पुस्तक किताब पर गंभीरता व हार गया यह देखना है वाली बात है कि रामलीला रामचरितमानस का गहरा प्रभाव रामनगर वाराणसी की विशेष रामलीला शैली पर है इस पुस्तक में परंपरा पर नई दृष्टि से किया गया है राम कथा पर आधारित देश के विभिन्न भागों में प्रचलित परंपरा नाटो की चर्चा तेरा मेरा की परंपरा को अखिल भारतीय दर्शन प्रदान करती ©Ek villain #रामलीला मंच का ऐतिहासिक दस्तावेज #Nofear
Arora PR
कलयुग की रामलीला मे रावन्न जरूरत से ज्यादा. सशक्त है और राम के इन दिनों. उपवास चल रहे है ©Arora PR i रामलीला
Sunita
पुरुषोत्तम कोउश्लेश्वर हूं मैं परम भक्त कपेशर भी मै... विवश नार सीता हूं मैं पुत्र वियोगी पिता भी मै.... घर का भेदी विभीषण हूं मैं भ्राता निष्ट लखन भी मैं.... लपटो में जलती लंका हूं मैं अवध के मन की शंका भी मैं अहिल्या सी अटल शिला हूं मैं हर पल घटित रामलीला भी मैं ©Sunita रामलीला
Deepali Singh
तोहफा दिवाली का तु मान को क्या समझेगा नवाजा है जो अपमान हमेशा दिवाली का ख़ास उपहार दिया तोहफा तो बड़ा यादगार दिया आज के दिन जो आग लगाया यूँ खुद को तुने क्यों जलाया सीरत अपनी जो बेशर्म बनाये किरदार ये तुझपर खुब भाये अदाकारी भी बखूबी निभाया अकड़ से क्या रुआब दिखाया जूते चप्पालों से मान बढ़ाया गिर गया इतना सबको दिखाया थप्पड़ उठाकर औकात बताया गुर्राते आँखों ने ज़ोर धमकाया इतना भयावह रूप ना भाये डर लगता है तुझसे ऐ विधाता मेरे जो नग्नता अपनी शर्मशार कराये कैसे उससे हम नज़रें मिलाएँ क्या मिलता है यूँ पेश आके होश न खो तु जोश में आके वक़्त है अभी ख़ुद संभल ले फ़िर वक़्त न देगा तुझे संभलने बड़ी बेशर्मी से है सबको तु घेरे मुझे तो घिन्न आती है नाम से तेरे ©Deepali Singh तोहफ़ा दिवाली का