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DR. LAVKESH GANDHI
उसकी बड़ी-बड़ी आंँखों से इश्क झलकता है लगता है वह इश्क की साक्षात् देवी हो जैसे देवी #देवी_मत_बनाओ_पर_औरत_को_औरत_रहने_दो # #yqaankh #yqeshk # #yqbaba #yqdidi #
गणेश
देवि नित्य दुःख भंजिनी स्वरूप रंजना। शांतिदायिनी महाकरालि कालि वंदना। बुद्धिदायिनी तुम्ही हो मातृ त्वं शुभांगना। पूजनीय सिंहवाहना नमामि वंदना। विन्ध्यवासिनी करों में अस्त्र-शस्त्र धारती। शुम्भ औ निशुम्भ को तुरंत माँ सँहारती। हस्त शूल पाश दंड वज्र चंद्रहास है। पूजता गणेश मात शैल पे निवास है। :- गणेश शर्मा 'विद्यार्थी' ©Ganesh Sharma #देवीवंदना #navaratri
Panditji Taxway
देवी की अवतारी मां अहिल्या बाई, तुमने दीन दुखियों की,की भलाई। अंधेरे में प्रकाश की किरण बनती रहीं, अत्याचार मिटाने को तुम ढाल बनती रहीं। मरते दम तक न्याय के लिए लड़ती रहीं, उत्कृष्ट गुणों ,विचारों की तुम खान रहीं। आत्म, प्रतिष्ठा व न्याय की देवी आज भी जीवंत वो संसार है, चारो ओर आपकी ही जय जयकार है। अवतरण सन 1725 ,माह 31 मई, सन 1795 ,13 अगस्त तुम चली गईं। देवी अहिल्याबाई जयंती की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। विजय शंकर सारस्वत। आगरा। #देवीअहिल्याबाई जयंती
Anjana Gupta Astrologer
ऋग्वेद मैं रुद्रों के साथ विचरती हूँ ,वसुओं के साथ भी । पीठ पर आरूढ होते हैं आदित्य , कभी विश्वदेवता भी ।मित्रावरुण को साथ लेकर चलती हूँ ,कभी अश्विनीकुमारों को । कभी इन्द्र और अग्नि मेरे साथ चलते हैं।।1 सोम की तरंगों पर बैठी हुई आक्रमण करती हूँ शत्रु पर नवसृजन का कौशल समझती हूँ। उन पोषण क्षमताओं से भरी हूँजिनमें भगवत्ता विराजित है ।समर्पण की स्रोतस्विनी हूँ ,यज्ञ को बनाती हूँ औरसमर्पण की स्रोतस्विनी हूँ ,यज्ञ को बनाती हूँ औरयजमान का हृदय खोल देती हूँ।।2।। मैं सम्पूर्ण भुवन की अधीश्वरी हूँ ,सब वसुओं की संगमनी हूँ ।मैं ही प्रथम यज्ञ की प्रथम ज्वाला , सब देवता मुझमें ही रमे हुए ।सबका जीवन मेरे भीतर और मैं सबके भीतर उतरी हुई हूँ ।।3।। मुझसे ही यह अन्नमयलोक ,मुझसे ही यह दृश्य जगत् , मुझसे ही यह प्राणमयलोक ,मुझसे ही श्रुति-परम्परामेरी शरण में जो नहीं आते ,वे भी मेरे ही आश्रय में ।सुनो , श्रद्धावान् !यह रहस्य मैं बताती हूँ । मैं उस ज्ञान की उद्घोषिका हूँजो देवों में , मानुषों में चिरकाल से स्थापित ।मैं जिसे चाहती हूँ ,उसे तेज से भर देती हूँ ।मैं ही बनाती हूँ ब्रह्मवेत्ता ,मैं ही बनाती हूँ ऋषि ,मैं ही बनाती हूँ मेधावियों को ।।5।। मैं उठाती हूँ धनुष रुद्र के लिये ,ब्रह्म के द्रोहियों का नाश मैं ही करती हूँ ।शरणागतों की रक्षा के लिये युद्ध करती हूँ ,इस द्यावा -पृथ्वी में मैं सर्वत्र व्याप्त हूँ ।। इस विश्व की मूर्धा में मैंने सूर्य को स्थापित किया । मेरा घर जल में , अंत:समुद्र में ।सब भुवनों में मैं खड़ी एकाकीछू सकती हूँ सुदूर लोकों के शिखर ।।7।। सकल भुवनों को रचती हुईमैं वायु की तरह प्रवाहित हूँ ।पृथ्वी पर भी हूँ ,द्युलोक से ऊपर भी हूँ । मैं अपनी ही महिमा से यहाँ भी हूँ , वहाँ भी हूँ ।।8 देवीमय संसार