Find the Latest Status about असिद्ध की व्यथा कविता from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, असिद्ध की व्यथा कविता.
HARSH369
मन कि व्यथा मन ही जाने, ना तुम जान सको न मैं जानू क्या मन करवाये क्यू करवाये ये मन ना तुम जान सको ना हि मैं जानू.. बेधड़क बोलता हूं,बेखौफ बोलता हूं रिस्तो के बन्धन को कान्टों पर तोलता हूं जिसके पास जितना पैसा, उसी कि सरकार है बाकि बेकारो के लिये बेकार परिवार है,..! बाकि ये सब क्यूं बनाया भगवान ने ना तुम जान सके ना हि मैं जानू..! मन की व्यथा..मन हि जाने..!! ©SHI.V.A 369 #मन की व्यथा..!! #कविता मन की
pooja d
हे भगवंता। ऐक हाक एकदा।। जीव माझा मज। नकोसा झाला।। जन्म पुढला। हवा ऐसा मज।। जे जे चित्तील। ते पूर्ण होईल।। नको भिकरीपण। जगताना जीवन।। थकले मी आता। भीक मागता।।— % & #भगवंत #व्यथा #कविता #yqtaaimarathi
mona khan
मन की व्यथा व्यथित वेदनाए न जाने कहां लिए जाए, हृदय पटल के यह संघर्ष हृदय को इतनी क्यों शूल बनकर चूभा करें। ना व्यथा सहा जाए ना कुछ कहा जाए, विचित्र व्यथाए है जो किनारा ढुंढे पर ना मिला करें, चले तो कहां चले। हृदय की मर्मस्पर्शी भाव का क्या किया जाए ना व्यक्त किया जाए ना हृदय पटल पर सिया जाए। ©mona khan # मन की व्यथा
writer umesh
कुछ ऐसे हादसे भी झेले हैं मैंने इस छोटी सी उम्र में , ना सह सके न बयां कर सके ना लिख सके " ©writer us व्यथा जीवन की
Lakhan Singh Chouhan
#Labour_Day सर से उनके छत उठ गई रोजी छीन गई हाथों की, ना रहा खाने को दाना नींद उड़ गई रातों की। पुलिस ने उनको मारे डंडे और खदेड़ा सड़कों से, सरकारों को क्या करना है गांव के ऐसे कड़को से। उनकी गलती ,जो थे आए भरने पेट वो शहरों में, सिर पे ढोते बोझा देखो जेठ की भरी दोपहरों में। जूते चप्पल नहीं मिले तो बांध ली बोतल पाओं में, लक्ष्य एक है, कैसे भी वो पहुंचे अपने गाँवो में। तुमने भेजे उड़न खटोले उन्हें बुलाया देशों में, जो स्वार्थ के कारण भागे भारत छोड़ विदेशों में। मजदूरों का दर्द ना समझा जाने क्यों सरकारों ने, जमा रुपए भी लूट लिए बीच में कुछ गद्दारों ने। धन्य जिन्होंने पानी पूछा, और दी रोटी खाने को, पैदल ही थे निकल पड़े जो अपने घर जाने को। ठा. लाखन सिंह चौहान मजदूरों की व्यथा।
J P Lodhi.
व्यथा कोंरोना लेकर आया संकट विकराल है, अर्थ व्यवस्था को बना दिया बदहाल है। शहरों में श्रमिकों पर टूटा जैसे पहाड़ है, तंगहाली ने खड़े कर दिए बड़े सवाल है। गांव आने को उमड़े श्रमिकों के जत्थे है, मीलों का सफर चल रहे पैदल निहत्ते है। रास्तों में झेल रहे असहनीय पीड़ा वेदना, दर्द से तन जख्मी हुए आहत हुई चेतना। चलते चलते पैरो में पड़ गए कई छाले है, कठिन सफर में पड़े निवालों के लाले है। प्राण बचाने को मिलते खास रखवाले है, बुरे वक्त में मानवता ने जीवन संभाले है। कई अभागे पथ में काल के ग्रास हो गए, माता पिता बेटों की वाट जोहते रह गए। बुरे वक़्त में बन रही दुख भरी कहानियां, विकट बक्त में मौत लील रही ज़िंदगियां। ऐसा समय कभी किसीने देखा नही था, वक्त इतना बुरा आ जाएगा सोचा न था। JP lodhi #वक्त की व्यथा