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Ahamad naved
जमीं से ले के आसमां तक ना जाने कहां कहां तक, तेरे नाम के हैं लेने वाले, पहाड़ों के गर्भ से ले के समुद्र की गहराई तक । हम सोच सकते हैं जहां तक,उससे कहीं ज्यादा हैं तेरे चाहने वाले सूरज की रोशनी से ले के चांद की समान तक। और जो मस्त हो जाए तेरे प्यार में उसे पहाड़ भी सोना नजर आता है, अगर यकीन ना हो तो देख लो एक बार आजमा कर। ©Ahamad naved ईश्वर हर जगह विद्यमान हैं
Amit Saini
सभ्यता बसती नही सभ्यता बसाई जाती है वह हमारे ऊपर निर्भर करता है हम अपनी सभ्यता को कैसे बसाये कैसी बनाये #Earth_Day_2020 ब्रह्मांड में अनंत काल तक विद्यमान रहेगी पृथ्वी
अदनासा-
शीलता और अश्लीलता तब तक विद्यमान रहेगा जब तक तन पे खिलता सुंदर सा परिधान रहेगा ©अदनासा- #हिंदी #शीलता #अश्लीलता #परिधान #सुंदर #विद्यमान #DhakeHuye #Instagram #Facebook #अदनासा
Ek villain
मानव जीवन को आप राज्य बनाने की इच्छा सबके मन में होती है पर सकल कोई ही हो पाता है अधिकांश लोग की धारणा है थे कि आप परिमिति शारीरिक अथवा धन की शक्ति से जीवन जीने को आप रजाई बनाया जा सके कुछ तमाम कटु भी जनों और बड़े बड़े स्तनों को जीवन की अपराजिता का कारण मानते हैं किंतु यह सभी धारणीय मित्र एवं वर्मी के दुनिया में कितने ही ऐसे महापुरुष हुए जिनके पास ना तो फोटो भी सनकी सकती थी और ना ही धमकी अस्त्र शस्त्रों की शक्ति भी उनकी आपने जयता का कारण नहीं बनी इसलिए ऋषि यों ने कहा है जो विद्वान है वही महान है ©Ek villain #Colors महाऋषियो ने कहा है जो विद्यमान है वही महान है
Lokesh Mishra
कमियां सर्वत्र विद्यमान हैं, खुद में सुधार कीजिए, दूसरों में कुछ ना देखिए, मन से बनिए स्वच्छ,अच्छे ही विचार कीजिए, कमियां सर्वत्र विद्यमान हैं, खुद में सुधार कीजिए,गुड मॉर्निंग।। ✍️☕☕
Arti Upadhyay
जरूरी नहीं हर इंसान पूर्ण हो कुछ कलयुगी विचारधाराएं हर एक में विद्यमान होती हैं।। ©Arti Upadhyay #कलयुगी_विचारधाराएं जरूरी नहीं हर इंसान पूर्ण हो कुछ कलयुगी विचारधाराएं हर एक में विद्यमान होती हैं।।
Ek villain
अग्नि के समान ही मानव शरीर के भीतर भी एक स्वाभाविक उस्मा विद्यमान रहती है जिसका प्रयोग मानव अत्यधिक अनुभुतही करने भोजन पचाने दादा शरीर की अशुद्धियों दूर करने में करता है मानव शरीर की स्वभाविक अग्नि जब सही दिशा में प्रचलित होती है तब उसकी चेतना लो पी लो का संचार भी मस्तिक में उसी तरह से होता है जैसे अगली रूपी ऊर्जा की उष्मा का होता है मानव चेतना मस्ती को ऊर्जा उपलब्ध कराने के एक सूत्र के रूप में कार्य करती है ऐसे कभी होता है जब शरीर की अग्नि उसे जागृत कर उसकी तरंगों को मस्ती की गहराइयों में पहुंच आती है जहां ज्ञान और शक्ति समाई रहती है ©Ek villain #ramleela अग्नि के समान ही मानव शरीर के भीतर भी एक स्वाभाविक हुस्ना विद्यमान रहती है