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Swakeeya ..
और क्या लिखूं.... ..के लिखने से अब मन हल्का नहीं होता ! शब्द अब दिलासे नहीं देते अतिरेक विषादयुक्त मनःस्थिति को किसी तरह की वर्ण संरचना या कोई आबंध निर्बंध उदगार सुकून की बौछार से नहीं भिगोते !! #स्वकीया #
Swakeeya ..
जज़्बात उलझ कर रह गए, तेरी नाराजगियों में। तमाम उम्र ख़ाक हुई, तेरी बेजारियों में। हाथ खाली रह गए, तेरी रुसवाइयों में। अधूरापन बरकरार रहा, तेरी हमनवाई में। अधूरापन#स्वकीया#
Swakeeya ..
फिर रात गहराई है, फिर नींदों से परहेज़ है.. ये बेचैनी ये अधूरापन . जान लेकर ही मानेंगे।।। स्वकीया#
Swakeeya ..
सांस लेती हूं, तो दुख उभर आता है,आंखों में ! मुंह से सांस फूंक कर बाहर धकेलती हूं।। एक पल के लिए ही सही पीड़ा भी फूंक के साथ बाहर निकल जाती है। पर क्या करूं, अगली सांस अंदर खींचते ही वापस बिन बुलाए सर उठाए श्वास नली को छलनी करते हुए फिर से सारी वेदना अंदर चली आती है!! स्वकीया...
Swakeeya ..
वो तलाश अधूरी ही रही बेसबब जीना मजबूरी रही अंतर की रिक्तता कचोटती रही और यूं हीं ज़िंदगी तमाम होती रही !! आकुल मन छटपटाकर भागता है चहुँ ओर ढूंढता है अधूरेपन का विकल्प लौट आता है सर टकराकर पर आज भी, वो तलाश अधूरी ही रही बेसबब जीना मजबूरी रही!! स्वकीया#
Swakeeya ..
मैं आजकल हर बात पर चीखती हूं !! चीखती हूं मैं, क्यूंकि मुझे कोई नहीं सुनता कोई मुझे सुनना नहीं चाहता सुन कर अनसुना कर दिया जाता है मुझे मेरी आवाज़ सभी के लिए अश्रवणीय है क्या करूं,मौन हो जाऊं..सदा के लिए चाहती तो मैं भी यही हूं,पर क्या करूं, जिम्मेदारियां हैं उसके प्रति,जिसे जन्म दिया है मैंने उसी के लिए बोलना पड़ता है चीखती भी हूं उसी पर किसी और के द्वारा अनसुना किया जाना चीख का रूप धर कर, उस पर बरस जाता है। आवाज़ मेरी अनसुनी ही रह जाती है चाहे शब्दों में फूटे या मन में गूंजे अनसुने अनसमझे रह जाने की कसक भेदती जाती है हृदय को गहरे और गहरे .....भीतर तक । #स्वकीया #
Swakeeya ..
क्या है कोई पैमाना, जो माप सके ! कौन कितना गलत ? कौन कितना सही ? #स्वकीया
Swakeeya ..
विषाद.. मन दुःखी हो जाता है... देखकर संसार की नश्वर के प्रति आसक्ति खोखले संबंधों को निभाने की विवशता दोगले व्यवहार की भी स्वीकारोक्ति बोझिल सांसों और टूटती उम्मीद के बावजूद रोती घिसटती ज़िन्दगी.. मन बहुत दुःखी हो जाता है... सब होते हुए भी रिक्तता का आभास टुकड़े टुकड़े हो कर बिखरा विश्वास प्रेम समर्पण की अतिरेक मूल्यहीनता परस्पर मनोभावों को ना समझने की हठधर्मिता.. ये सब देखकर मन बहुत दुःखी हो जाता है......।। स्वकीया ....