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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- आज रिश्तों में रिश्ते बचे कुछ नही । आज अपनों से अपने कहे कुछ नही ।। मोह जिस बाप में आज औलाद का । उनको धृतराष्ट्र खुद में दिखे कुछ नही ।। माफ़ कर दो उन्हें आज नादान वो । हमको लगते अभी वो बुरे कुछ नही ।। जिनकी आखों पे चश्मा चढ़ा प्यार का । ऐब अपनों में उनको मिले कुछ नही । चुप रहा और देखा तमाशा सभी । उनको ऊँचा किया पर झुके कुछ नही ।। इस तरह तोड़ अभिमान मेरा दिया । सिर उठाना भी चाहूँ उठे कुछ नही ।। मिट गये है वहम अपने पन के सभी । कह दिया है प्रखर तुम रहे कुछ नही ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- आज रिश्तों में रिश्ते बचे कुछ नही । आज अपनों से अपने कहे कुछ नही ।।
ग़ज़ल :- आज रिश्तों में रिश्ते बचे कुछ नही । आज अपनों से अपने कहे कुछ नही ।। #शायरी
read moreBANDHETIYA OFFICIAL
चश्मा कुछ ऐसे ही उतरेगा कान को लांघ, कान लगाकर सुनो,कान खड़े कर लो। सारी हरियाली गुम हो जाएगी,हरा -हरा - जो दिखता है सावन के अंधों ,टलो। ©BANDHETIYA OFFICIAL #चश्मा !
Prakash writer05
#जिम्मेदारी में डूबे लड़के Mere Alfaz जिम्मेदारियों में डूबे लड़के सब कुछ याद रखते हैं प्रेमिका का नाम , माँ की दवा , बाऊजी की उम्र उन्हे #कोट्स
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