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Deependra Dubey
White हमें राहों में उनकी तलाश थी जो हमारी राहों में कांटो की जगह फूल बिछा सके। ज़िन्दगी को उन्हीं राहों में खुशी से चला सके। ज़िंदगी उनसे कुछ नहीं मांगती बस ज़िंदगी का दो पल, ख़ुशी बिता सके। ©Deependra Dubey #Thinking शायरी शायरी शायरी
#Thinking शायरी शायरी शायरी
read moreGhumnam Gautam
दरस में प्यास में हर साँस और धड़कन में रहता है मेरा ये मन निवेदित है उसे जो मन में रहता है ©Ghumnam Gautam #proposeday ,#प्यास #ghumnamgautam
#proposeday ,#प्यास #ghumnamgautam
read moreF M POETRY
White दीद की प्यास हम न लाएंगे.. बनके एहसास हम न आएंगे.. यूँ कहा उसने चाहे मर जाएं.. पर तेरे पास हम न आएंगे.. यूसुफ़ आर खान..... ©F M POETRY #दीद की प्यास हम न लाएंगे...
#दीद की प्यास हम न लाएंगे...
read moresandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3
White ये प्यास इस क़दर मिल रही है पानी से... जैसे मौत लिपटती है ज़िंदगानी से..। जीत बहुत दूर चली गयी मुझसे लेकिन... हार न मानूंगा इतनी आसानी से..। और जा पहुंचा हूँ मैं कई ज़ख्मों तलक... उसके बदन के फ़क़त इक-दो निशानी से..। खुद शिशे के सामने आना पड़ता है... तू देखता है जो इतनी हैरानी से..। मेरे सिर से कोई बचपन उतारे ‘ख़ब्तुल’... इश्क़ अक्सर कहता रहता है जवानी से..। - ख़ब्तुल संदीप बडवाईक ©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 प्यास
प्यास
read moreParasram Arora
White प्यास लगी हैँ तों पानी हैँ लेकिन प्यास के पहले पानी हैँ भूख लगी हैँ तों भोजन हैँ लेकिन भूख से पहले भोजन हैँ प्रेयसी के लिए उठता हैँ प्रेम तों समझलो प्रेम पहले से मौजूद हैँ अगर प्यास उठी हैँ परमत्मा क़ी तों ये परमाण हैँ इस बात का कि परमात्मा भी अस्तित्व मे पहले से कही मौजूद हैँ ©Parasram Arora भूख और प्यास
भूख और प्यास
read moreParasram Arora
Unsplash भूख और प्यास जो न थकती है कभी और न बुझती है कभी बल्कि प्रति पल बढ़ती जाती है ये भूख प्यास छुप जाती हैं पसीनो क़ी परतो मे कभी या फिर कमर मे बंधे गमछे मे जा लटकती है कभी लेकिन ये उफ़ नहीं करती कभी ©Parasram Arora भूख प्यास
भूख प्यास
read moreShashi Bhushan Mishra
होती है मुझको हैरानी, जलन नहीं है प्रेम निशानी, जिसने बांटे प्यार जगत में, दुनिया है उसकी दीवानी, राजा-रानी परियों वाली, हमने भी है सुनी कहानी, झूठ बेचने निकला था वो, हुआ शर्म से पानी-पानी, वर्षों बाद मिला था कोई, सूरत थी जानी पहचानी, मंज़िल दूर नहीं है उनसे, चलने की जिसने है ठानी, पानी प्यास बुझाता 'गुंजन', पड़े स्वयं ही प्यास बुझानी, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra #पड़े स्वयं ही प्यास बुझानी#
#पड़े स्वयं ही प्यास बुझानी#
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