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AK__Alfaaz..
एक दिन प्रेम को रोपा गया, विश्वास की धरती के गर्भ में, खरीफ की फसल की तरह, फिर सावन ने सींच दिया बरसते आँसुओं से, त्याग का अंकुर फूटा उसमे, एक पौधा निकला समर्पण का, बालियाँ लगने लगीं खुशियों की, और... पकने लगी प्रेम की फसल, लहलहाने लगा सदियों से उजड़ा, बंजर मन का खेत, फिर अविश्वास के हाथों ने, दुःख की दरांती चलायी व काट दिया फसलों को, भाग्य की मजबूरी से, लोभ के बाजार में, प्रेम का अन्न कौड़ियों में बिक गया, और... मेहनत का किसान, भाग्य की खाली थाली लिए, अपने इश्क की रसोई से, भूखा ही उठकर चला गया, एवं असंतोष का जल पीकर, जिम्मेदारियों के कुंडे से लटकती, दुःख डोरी पर, चैन से सो गया....।। -AK__Alfaaz.. रचना अनुशीर्षक मे भी है... #प्रेम_की_फसल एक दिन प्रेम को रोपा गया, विश्वास की धरती के गर्भ में, खरीफ की फसल की तरह, फिर सावन ने सींच दि
Arora PR
क्या तुमने कभी ह्रदय की धरती पर दुख के बीज़ बो कर उसकी फसल ऊगा कर देखा हैँ? मेरे ख्याल से काफ़ी वक़्त हो गया इस फसल को तुमने काटा नहीं हैँ अभ तक तो अब वो समय आ चुका हैँ लेकिन फसल काटने से पहले तुम्हे सावधानी बरतनी पड़ेगी कि कही उस फसल को काटते काटते उसके अवशेष भीतर न रह जाय अन्यथा उन अवशेशो से. फिर नई फसल तैयार हो जायेगी और तुम कभी इससे राहत नहीं पा सकोगे . ©Arora PR दुख की फसल
diaryofprit
उम्मीदों की फसल लगाई थी जिसने मुश्क़िलों की बेमौसम बारिश ने बर्बाद कर दिया उसे ... लेकर बिखरी फसल और बिखरे हुए सपने दुख भरी दास्ताँ बेचारा सुनाये किसे... दर बदर भटक रहा है कुछ खोजने शायद थोड़ा हौसला चाहिये उसे... नीला आसमाँ भी लगने लगा है काला दिखने डर नहीं लगता था अंधेरे का कभी जिसे... अगर आये कभी ऐसा शक़्स तुमसे मिलने बस थोड़ी उम्मीद दे देना उसे ©diaryofprit उम्मीदों की फसल... #diaryofprit
Raju Bajrangi
हाड़ी गी फसल कणका गां रंग अब सुनहरा होणं लाग्या। टूट्या फुट्या दरख़्त अब हरा होण लाग्या। सरसो छोला भी अब पाक गे बावला हो गया। हाड़ी काडन गी रूत, ज़मीदार तवला हो गया। भगवान तू अब थोड़ो सो मौसम साफ राखी। अबकाले किसान बड़ी आस है लगा राखी। कडलयो दांती, करलयो क्यारा आपगा पाँती। कईयाँ गे खेत मे दिखसी रीपर कम्पैन आती। ख्लो संवार ल्यो, बाखल कोठा भुआर ल्यो। भट्ठल बाल्टी टोकरियां बोरी सब उतार ल्यो। ट्रेक्टर लारे ट्राली ट्राली में पलड़ तिरपाल होसी। किसान मज़दूरा गी काली-पीली खाल होसी खेत-गांव में तो अब दिहाडिया गी फौज होसी। स्कूल में पेपर छुटियाँ फेर टाबरां गी मौज होसी। घर मे दाना-दाल, खला में तूड़ी नीरो लादसी। रसोई खाना में फेर ढोकलिया चूरमो लाबसी। लेगे ज़िमीदार दाणा होसी जद मंडी रवाना। खड़ खड़ गे देखसी फेर यो सारा ज़माना। अबकाले शायद किसानां गा भाग जागसी। सरकार बणिया कने आछा भाव लागसी। "बजरंगी" तेरी क़लम माँ बोली बोलण लागी। खेत गांव बचपन गो प्यार टटोलण लागी। भगवान तू सबके खेत गाँव सलामत राखिये। "राजेन्द्र" गी क़लम तेरे भरोसे लिखण लागी। ©Raju Bajrangi हाड़ी की फसल #WallTexture