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Anjali Singhal
"हर्फ़-दर-हर्फ़ सोचकर तुझको, सिलसिला चाहत का कुछ यूँ बढ़ा दिया; ज़हन में बस मात्र अल्फ़ाज़ सा था तू, दिल ने दास्ताँ-ए-उल्फ़त बना दिया!" An #Shayari #AnjaliSinghal
read moremusical life ( srivastava )
हमारी_तो_छुट्टियाँ_ऐसी_होती_हैं_और_आपकी🤩🎧🎶💗🤗 #गेम मस्ती❤❤ ढेर_सारी_पंचायत🤪😜😛😈😤 किसका_बैंक_बैलेंस_बढ़_गया🤑🤑 खर्चीला_त्यौहार_छुट्टियों_का #विचार #खर्चीला_त्यौहार_छुट्टियों_का😁😅🤣
read moreAnjali Singhal
#💞Heart touching शायरी✍️ "दर्द का इजाफ़ा क्या बढ़ा, भाव सुकून का गिरा बैठे। दिल की नगरी में, तेरे नाम का आशियाँ बना बैठे।।" #Shayari #💔heart #AnjaliSinghal
read morePrakash writer05
#जिम्मेदारी में डूबे लड़के Mere Alfaz जिम्मेदारियों में डूबे लड़के सब कुछ याद रखते हैं प्रेमिका का नाम , माँ की दवा , बाऊजी की उम्र उन्हे #कोट्स
read moreT4_tanya_
White दूरियां बढ़ा ली हमने, तुमने भी दीवार पक्की कर ली... जरा सी गलतफहमी ने देखो, कितनी तरक्की कर ली ©T4_tanya_ #Road दूरियां बढ़ा ली हमने, तुमने भी दीवार पक्की कर ली... जरा सी गलतफहमी ने देखो, कितनी तरक्की कर ली
Anjali Singhal
"आँख बंद होते ही हमारी ख़्वाब में आ जाते हो, थमी-थमी सी धड़कन एकदम से बढ़ा जाते हो! इंतज़ार कर-करके तुम्हारा थक जाती हैं आँखें जो दिनभर, अर #Quotes #AnjaliSinghal
read moreAJAY NAYAK
नई सुबह हर रोज उठता हूं बैठता हूं, चलता हूं शाम होते होते हर रोज गिर जाता हूं । वही रात जो शीतलता देती है उष्ण बनकर मुझ पर टूट पड़ती है । करवटे बदल बदल कैसे कैसे रात कटती है फूल जैसे बिस्तर भी रात भर शूल बन चुभते हैं । फिर जीवन में आती है वही सुबह जिसका रहता है संध्याकाल से ही इन्तजार । एक नई ऊर्जा लिए एक नए विश्वास लिए उठाती है, और खड़ा करती है । फिर से जीवन के नए आयाम स्थापित कर उस ओर हमारे पगों को बढ़ा देती है। हर रोज उठता हूं। –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #bicycleride नई सुबह हर रोज उठता हूं बैठता हूं, चलता हूं शाम होते होते हर रोज गिर जाता हूं ।
#bicycleride नई सुबह हर रोज उठता हूं बैठता हूं, चलता हूं शाम होते होते हर रोज गिर जाता हूं । #कविता
read moreDevesh Dixit
महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल। खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये सुर ताल।। बीच वर्ग के हैं पिसे, देख हुए नाकाम। अब सोचें वह क्या करें, बढ़ा सकें कुछ काम।। फिर भी हैं कुछ घुट रहे, मिला न जिनको काम। महँगाई के दर्द में, जीना हुआ हराम।। चिंतित सब परिवार हैं, दें किसको अब दोष। महँगाई ऐसी बढ़ी, थमें नहीं अब रोष।। विद्यालय व्यवसाय हैं, दिखते हैं सब ओर। शुल्क मांँगते हैं बहुत, पाप करें ये घोर।। मुश्किल से शिक्षा मिले, कहते सभी सुजान। महँगाई की मार है, यही बड़ा व्यवधान।। .......................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #महँगाई_की_मार #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल। खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये
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