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बिमल तिवारी “आत्मबोध”
गॉव की सुनी सड़कों पर अब कोई हलचल नही सब शहरों में जा बसे हैं ,दिखता कोई मंचल नही लटक रहे हैं दरवाज़ों पर बड़े बड़े से ताले अब करते हैं ये अब पहरेदारी ,घर से आती कोई शोर नही सबको लत लगी हुई हैं शहरों में अब बसने की गॉव को खाली कर रहे हैं ,रुकने का कोई नाम नही मिटा रहे हैं नाम सभी पाएं थे पुरखों से जो शहरों में हर लत की जद में,खो रहे हैं नाम सभी अपने मन से जीने ख़ातिर गॉव घुटन सी हो रही है इसीलिए गॉवो से अब,भाग रहे हैं शहरों को सभी ।। गॉव
Pushkar Bhardwaj
ख्वाब सारे इस तरह जूने पड़ गए गॉंव सारे युवाओं से सुने पड़ गए सुने गॉव
amit verma
मेरा दिल गाँव में बसता है क्योंकि गाँव मेरे अंदर बसता है! ©amit verma मेरा गॉव
Praveen Singh Sindal
कुछ पल बिन तेरे साल का साल वर्षो न हो,,,,,, मैंने कभी न सोचा तेरे गाँव में तेरा दीदार हो न हो,,,,, -प्रवीण मेरा गॉव
writer Har Govind Nayak
तेरी इन नशीली आंखों पे। तेरे इन गुलाबी होटों पे । न जाने कितनी शायरियां लिखी होंगी हमने। और तुम जरा अपने चेहरे पर पर्दा किया करो न जाने कितनो को दीवाना बनाती होंगी तुम्हारी नजरे।। ©writer Har Govind तेरी इन नशीली आंखों पे ,तेरे इन गुलाबी होटों पे,,,
ahsaas chaudhry
आँखों की जुबां भी पढ़ लेनी चाहिए, वो दरवाज़े से छुपकर आज भी देखते है हमें.... ये इश्क़ गॉव का है ज़नाब... शहर की नौटंकी नही... #गॉव का इश्क...