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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- अपने-पन से हरा-भरा था कैसे तुम्हें बताऊँ । आज चाँद के पास पहुँचकर क्या-क्या तुम्हें दिखाऊँ ।। अपने-पन से हरा-भरा था ... आ जाते है कुछ पक्षी अपनी साँझ बिताने को । लेकिन पीछे पड़ा शिकारी उनको मार गिराने को ।। सामर्थ्य नही है अब मुझमे कैसे उन्हें छुपाऊँ । अपने-पन से हरा-भरा था... कल तक मेरी डाली में सुंदर वह फल फूल लगे । चिड़िया मेरी डाली को कहती सुंदर भवन लगे ।। इतना कुछ देखा जीवन में कैसे उसे भुलाऊँ । अपने-पन से हरा-भरा था ..... बच्चों के प्यारे पत्थर करते मुझमें घाव बड़े । पर मुझको तो फल देना जो थे मेरी छाँव खड़े ।। उनके कोमन मन को मैं अब कैसे भला दुखाऊँ । अपने-पन से हरा-भरा था .... महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- अपने-पन से हरा-भरा था कैसे तुम्हें बताऊँ । आज चाँद के पास पहुँचकर क्या-क्या तुम्हें दिखाऊँ ।। अपने-पन से हरा-भरा था ... आ जाते है कु
गीत :- अपने-पन से हरा-भरा था कैसे तुम्हें बताऊँ । आज चाँद के पास पहुँचकर क्या-क्या तुम्हें दिखाऊँ ।। अपने-पन से हरा-भरा था ... आ जाते है कु #कविता
read moreAmit Seth
Praveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी अपहरण उम्मीदवारो का हो रहा डकैती वोटो की डाली जा रही है लोकतंत्र की प्रक्रिया नाम मात्र की सब एजेंसिया मुँह अपना छिपा रही है चारसौ पार की सूरत घायल लोकतंत्र और नैतिकता ताक पर रख कर सत्तापक्ष की पूरी की जा रही है जीतने के बाद किया हरष जनता का होगा इनके के मंसूबे अभी से नजर आ रहे है सर्टिफिकेट जीत के एक दल को बाटकर विपक्ष को चुनावी दौड़ से दूर किया जा रहा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #VoteForIndia डकैती वोटो की डाली जा रही है #nojotohindi
#VoteForIndia डकैती वोटो की डाली जा रही है #nojotohindi #कविता
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थी ।।२ हटे कैसे नज़र मेरी हँसी रुख से । जिसे अब देख तर जाने की जल्दी थी ।।३ न था अपना कोई उसका मगर फिर भी । उसे हर रोज घर जाने की जल्दी थी ।।४ सँवरना देखकर तेरा मुझे लगता । तुझे दिल में उतर जाने की जल्दी थी ।।५ बताती हार है अब उन महाशय की । उन्हें भी तो मुकर जाने की जल्दी थी ।।६ नशे की लत उसे ऐसी लगी यारों । जैसे उसको भी मर जाने की जल्दी थी ।।७ सही से खिल नहीं पाये सुमन डाली । जमीं पे जो बिखर जाने की जल्दी थी ।।८ लगाये आज हल्दी चंदन वो बैठे । न जाने क्यों निखर जाने की जल्दी थी ।।९ किये सब धाम के दर्शन प्रखर ऐसे । खब़र किसको निकर जाने की जल्दी थी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थ
ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थ #शायरी
read moreSethi Ji
दोस्तों संग यह ज़िन्दगी कितनी सुहानी लगती हैं अकेले और तन्हा चाँदनी रात भी कहाँ गुज़रती हैं लिखता हूँ एक टूटे हुए दिल की आवाज़ आपके सामने और सारी दुनिया मुझे एक " शायर " समझती हैं थक जाता हूँ हर दिन दुनिया की जस्तो-जायज़ में अपने घर की रोटी कमाने के लिए मेरी माँ के आँचल में मेरी यह ज़िन्दगी सँवारती हैं 💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 ©Sethi Ji ♥️🌟 आज की दुनिया 🌟♥️ ♥️🌟 आज की पुनिया 🌟♥️ आज की दुनिया में हर कोई परेशान हैं इंसानों की बस्ती में भी कहाँ मिलता इंसान हैं ।। हमने भी खाए
♥️🌟 आज की दुनिया 🌟♥️ ♥️🌟 आज की पुनिया 🌟♥️ आज की दुनिया में हर कोई परेशान हैं इंसानों की बस्ती में भी कहाँ मिलता इंसान हैं ।। हमने भी खाए
read moreBharat Bhushan pathak
चित्रपदा छंद विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण चार चरण, दो-दो समतुकांत भगण भगण गुरु गुरु २११ २११ २ २ नीरद जो घिर आए। तृप्त धरा कर जाए।। कानन में हरियाली। हर्षित है हर डाली।। कोयल गीत सुनाती। मंगल आज प्रभाती। गूँजित हैं अब भौंरे। दादुर ताल किनारे।। मेघ खड़े सम सीढ़ी। झूम युवागण पीढ़ी।। खेल रहे जब होली। भींग गये जन टोली।। दृश्य मनोहर भाते। पुष्प सभी खिल जाते।। पूरित ताल तलैया। वायु बहे पुरवैया।। भारत भूषण पाठक'देवांश' ©Bharat Bhushan pathak #holikadahan #होली#holi#nojotohindi#poetry#साहित्य#छंद चित्रपदा छंद विध
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