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Stories related to वैतरणी नदी का रहस्य

love you zindagi

कोई होगा समन्दर जो पास तेरे आयेगा।
कोई होगी नदी जो तेरी प्यास बुझाएगी ।
हम दरिया हैं चाहत में डुबाने का हुनर जानते हैं ।।
                        
                                   ✍️वकील साहब

©love you zindagi #landscape  #समन्दर #किनारा #नदी

shalini jha

# भावों का जीवन को वरण कर जीवंत हो सुख दुख को बांटना जीवन की शाख पर पत्तों सा लहराना हवा के झोंको में सुगंध बन दिशाओं की निर्मलता

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White  भावों का जीवन को वरण  कर 
जीवंत रह दुःख  से सुख की यात्रा 
 जीवन की शाखाओं पर
पत्तों सा लहराना 
हवा के झोंको  में 
सुगंध बन दिशाओं की  
निर्मलता का स्पर्श   
नदी बन सागर के खारेपन में 
 घुल जाना  मिठास का  
छांव बन  छिप जाना शीतलता को 
 कुछ क्षण प्रकाश का 
 दिव्यता बोध  से भरे 
सकारकता के कई कई प्रमाण  हैं

©shalini jha # भावों का जीवन को वरण  कर 
जीवंत हो सुख दुख को बांटना   
 जीवन की शाख पर पत्तों सा 
लहराना हवा के झोंको  में 
सुगंध बन दिशाओं की  
निर्मलता

Parasram Arora

बदनसीब नदी

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White खाई थीं कसम सागर ने 
कि इक दिन वो रेगिस्तान मे भी 
फुल खिला दे
गा 
अपनी कसम पूरी करने के
लिए 
 भेजा था उसने एक नदी 
 को रेगिस्तानको सीचने के लिए 

पर वो नदी
रेगिस्तान 
क़ी तपी रेत मे लुप्त हो 
जायेगी और लौट नही पाएगी 
ऐसा न उस सागर ने सोचा था
 न उस बदनसीब नदी ने

©Parasram Arora बदनसीब नदी

Shreyansh Gaurav

#नदी का पुराना पुल #poerty

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"नदी का पुराना पुल"

कभी तुम गये हो गांव में नदी के किनारे 
बहुत सुकून मिलता है.!
पहले मैं गांव रहता था, 
दोस्तों का ज़मावड़ा, मज़मा लगता था.!
नदी पर पहले इक़ पुल था 
जो अंग्रेजो के वक़्त का बना है.!
गया था मैं गांव कुछ साल पहले 
देखा अब बदल गया है.!
उस पुल के बगल इक़ नया पुल 
बन गया है, पुराने पे अब सन्नाटा है 
सुना किसी ने बोला 
अब यहाँ कोई नहीं आता है.!
पूछा क्यूँ कुछ हुआ था क्या 
इक़ ने कहा भैया, यहाँ कोई मर गया था.!
इसलिये अब सब डरते है 
इधर कोई नहीं आता है.!
हमनें देखा बहुत सन्नाटा छाया था 
जहाँ पहले लोंगो को सुकून मिलता था 
वही से लोग अब डरने लगे है.!
क्या तुम भी लोंगो की तरह 
बुज़ुर्गो को छोड़कर 
नये ढूढने लगे हो.!
मैं गया वहाँ अकेले ही मुझे कोई डर नहीं 
फ़िर वही सुकून, मुझे गांव लें गया.!
यें "नदी का पुराना पुल "
मुझे अब भी याद है, मुझे सुकून सन्नाटा दें गया.!!

©Shreyansh Gaurav #नदी का पुराना पुल 
#poerty

Parasram Arora

समुन्दर और नदी

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White समुन्दर  नदियों को बहला फुसला कर उनके तरल ख़ज़ाने लूटता रहा 

और वे बदनसीब नदिया अपने वजूद का इंतकाल होते देख आंसू बहाती रहीं

©Parasram Arora  समुन्दर और नदी

हिमांशु Kulshreshtha

ख्वाबों का...

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White ख्वाबों का
मासूम सा सवाल
कुछ उम्मीद है बाकी
या फ़िर
टूट जाएं हम

©हिमांशु Kulshreshtha ख्वाबों का...

Vs Nagerkoti

#sad_dp रहस्य,,,, कभी कभार गिरना भी ज़रूरी होता है । जब अथाह अहंकार आ जाएं । और कभी गिरके संभलना भी,

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White जिंदगी में वक्त वक्त पर हमे हमारी औकाद 
भी पता चलना जरूरी है । ये घटना right 
या wrong way मैं भी हो सकती हैं । एक 
तो तब जब हम बहुत घमंड से भर जाते है ।
और दूसरा उस वक्त जब हमारे लिए खुद 
को समझना अतियंत आवश्यक हो जाता 
है। की क्यों लोग आपको ही नीचा दिखाने 
मैं लगे होते है । इसका मतलब आप मै 
कुछ तो खाश बात है । जो किसी को हजम 
 नही  होती और यही नीचा दिखाने वाले कुछ
 लोग ही जाने अंजाने मैं आपको खुद को 
समझने के लिए मजबूर करते हैं। और खुद 
ही एक नया और शक्तिशाली प्रतिद्वंदी 
खड़ा कर लेते है । जरा सोच कर देखिए 
इंसान इतना मूर्ख होता है कि अपने नए 
शत्रु खुद ही बना लेता है । जब की कोई 
खाश जरूरत होती ही नही ।

©Vs Nagerkoti #sad_dp रहस्य,,,,  कभी कभार 
गिरना भी ज़रूरी होता है । जब अथाह 
अहंकार आ जाएं । और कभी गिरके संभलना भी,

vish

# नदी की वो धारा

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मैं ठहरे हुए कुएँ का वो पानी नहीं, 

जो थम जाऊँ.... 

मैं बहती नदी की वो धारा हूँ, 

जो साहिल से टकराकर भी, 

अपने सागर से मिल जाऊँ.... 



जिंद़गी

©vish # नदी की वो धारा

SANIR SINGNORI

#DesertWalk नदी बचाओ

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पराया क्या जाने पीर 'काटली' की
कितनी हरी भरी थी वो धरा 'काटली' की

पैसे के लालच में आज,
साहूकारों ने बेच दी मिट्टी 'काटली' की

 निकली थी वो तुम्हारी प्यास बुझाने,
 बुझा दी मानस ने राह 'काटली' की

सहस्र जीवों का जीवन थी जो,
इंसानों ने छीन ली सांसे 'काटली' की

अपनों ने काट दी जड़े 'सानिर' 
कितनी हरी भरी थी वो धरा 'काटली' की

सिर साँटें 'सानिर', तो भी सस्तो जाण,
जै  बच जाए जान 'काटली' की

पराया क्या जाने पीर 'काटली' की
कितनी हरी भरी थी वो धरा 'काटली' की





.

©SANIR SINGNORI #DesertWalk 
नदी बचाओ

Anjali Jain

आज का विचार 08.12.24 आज का विचार

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आज प्रजातंत्र,भीड़तंत्र में बदल चुका है 
भीड़, पहले नेतृत्व को विवश करती है
 अपनी सुख सुविधाओं के लिए....
फिर स्वयं विवश होती है
 अपने दुःख और दुविधाओं से...!!

©Anjali Jain  आज का विचार 08.12.24  आज का विचार
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