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आकाश भिलावली वाला
अरे गरीब हूँ, आपकी फीस कमा के भर दूंगा। मौका तो दो तारों की तरह टिमटिमा के रहूँगा।। garibi ki mar
garibi ki mar
read moreHarshit thakuriya
गरीब की गरीबी, बहुत भूखी होती है साहब, उसके बच्चे का, बचपन तक खा जाती है... gareeb ki garibi
gareeb ki garibi
read morePushkar Sahu
पैसो आने से अवकात बढ़ जाती हैँ लोगो की अपनों तक को भूल जाते हैँ पैसो के लिये #Garibi#dil ki garibi#matlab ki yari# #YourQuoteAndMine Collaborating with Subhash Kumawat
#Garibi#Dil ki garibimatlab ki yari# #YourQuoteAndMine Collaborating with Subhash Kumawat
read moreKanchan Kumari
हर दिन की तरह मैं सुबह 8 बजे मैं चाय पीने के लिए अपने होस्टल से बाहर जाने के लिए निकला, मैं जैसे ही चाय की दुकान वाले के पास पहुंचा, देखा आज चाय वाला वहा पे नहीं था। शायद देर से पहुचने कारण वो चाय वाला वहा से जा चुका था , मेरे पास होस्टल लौट जाने के आलावा कोई और ऑप्शन नही था। मैंने सोचा की आगे जाकर कही नाश्ता कर लिया जाए, बहुत जोर की भूख लगी थी। मैं आगे की होटल की ओर जा रहा था। तभी मेरी नज़र फुटपाथ पर बैठे दो बच्चों पर पड़ी, दोनों लगभग 10-12 साल के रहे होंगे बच्चों की हालत बहुत खराब और कमजोर नज़र आ रहे थे। कमजोरी के कारण अस्थिपिंजर साफ दिखाई दे रहे थे, वे भूखे लग रहे थे। छोटा बच्चा रोते हुए बड़े भाई को खाने के बारे में कह रहा था, बड़ा भाई उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था, वो जानता था ना तो मेरे पास पैसे है ना ही खाने के लिए भोजन जिससे मैं अपने छोटे भाई की भुख मिटा सकू , वो भी लाचार बैठा भूख से पागल होए जा रहा था। मैं अचानक रुक गया दौड़ती भागती जिंदगी में एकदम से ठहर से गये। इन मासुम से बच्चो की ऐसी हालात को देख मेरा मन भर आया इनकी भूख को देख मेरा भुख खत्म सा होगा, सोचा इन्हें कुछ पैसे दे दिए जाए, मैंने उन्हें 10 रु देकर आगे बढ़ गया। जैसे ही मैं आगे की और बढ़ा मेरे मन में एक विचार आया कितना कंजूस हुँ मैं, 10 रु क्या मिलेगा, चाय तक ढंग से न मिलेगी, स्वयं पर शर्म आयी फिर वापस लौटा। मैने मासूम से देखने वाले भूखे बच्चों से कहा: कुछ खाओगे ? बच्चे थोड़े असमंजस में पड़े मैंने कहा बेटा मैं नाश्ता करने जा रहा हुँ, तुम भी कर लो, वे दोनों भूख के कारण तैयार हो गए। उनके कपड़े गंदे होने और ऐसी हालात में देख कर होटल वाले ने डाट दिया और भगाने लगा, मैंने कहा भाई साहब उन्हें जो खाना है वो उन्हें दो पैसे मैं दूंगा। मेरे बाते सुन होटल वाले ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा…....... उसकी आँखों में उसके बर्ताव के लिए शर्म साफ दिखाई दी। बच्चों ने नाश्ता मिठाई व लस्सी मांगी। सेल्फ सर्विस के कारण मैंने नाश्ता बच्चों को लेकर दिया बच्चे जब खाने लगे, उनके चेहरे की ख़ुशी देख मेरे चेहरे पे स्माइल आ गया। उस वक़्त हमे दुनिया की काफी अच्छी फ़ीलिंग आ रहा था । उन दो मासूम बच्चो को देख अपना बचपना याद आ गया। होटल से निकलने के बाद मैंने बच्चों को कहा बेटा जो पैसे मैंने दिए है उसमे 2 रु का शैम्पू ले कर हैण्ड पम्प के पास नहा लेना। और फिर दोपहर-शाम का खाना पास के मन्दिर में चलने वाले लंगर में खा लेना, और मैं नाश्ते के पैसे दे कर फिर अपनी दौड़ती दिनचर्या की ओर बढ़ निकला। होटल के आसपास के लोग बड़े सम्मान के साथ देख रहे थे होटल वाले के शब्द आदर मे परिवर्तित हो चुके थे। मैं अपने होस्टल की ओर निकला, थोडा मन भारी लग रहा था मन थोडा उनके बारे में सोच कर दुखी हो रहा था। रास्ते में मंदिर आया मैंने मंदिर की ओर देखा और कहा हे भगवान! आप कहाँ हो ? इन बच्चों की ये हालत ये भूख, आप कैसे चुप बैठ सकते है। मोरल - आज हमारे आस-पास मैं ना जाने ऐसे कितने लोग हैं जो गरीबी के कारण एक पल के लिए खाने के लिए उनके पास भोजन नही हैं , और नाही उनके पास पहने के लिए कपड़े है। जहाँ पे इस तरह के बच्चे आपको देखे आप उनकी मदद जरूर करे , जितना हो सके उतना मदद जरूर करे उसके बाद आपको जो खुशी मिलेगी ना वो और खुशी कही और नही मिलने वाली आपको । ©Kanchan Kumari # Ek Aisi Garibi ki kahani
# Ek Aisi Garibi ki kahani #ज़िन्दगी
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