Find the Latest Status about जगत राज from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, जगत राज.
Neeraj Upadhyay 9548637485
जगत जननी राज राजेश्वरी कैला मईया के मंगला दर्शन। जय माता दी #समाज
read moreRAJ RAJ
जिसके पास बिबेक है उसको मनुष्यो काहा जाता है।। ©RAJ RAJ राज राज #BuddhaPurnima2021
राज राज #BuddhaPurnima2021
read moreविशाल सिंह जाट गोरा
वो रोज अपना दुपट्टा सुखाने के बहाने बालकनी पर आती थी, बस उनको प्यार होने ही वाला था हमसे पर " पर बाबु भाई और बोले ये मेरी खोली के आगे है इधर दुपट्टा नहीं सुखाने का -' क्या '।। फ़िल्मी जगत
फ़िल्मी जगत
read moreR R
राज को क्या पता, राज के पास क्या, राज है।जब चला राज को पता तब, .......................... ©R R राज ही राज........
राज ही राज........ #विचार
read moreANSARI ANSARI
जगत गुरु की महिमा होती हैं अपरम्पार। जो सभी धर्मों को करते हैं दिल से प्यार। अधर्मी कभी जगत गुरु। नहीं बन सकता। जो दुसरे के धर्मों को। करता बदनाम। ©ANSARI ANSARI जगत गुरु
जगत गुरु #विचार
read moreShivraj Anand
प्रेम-जगत १ प्रेम जगत संसार का रंगमंच है और हम सभी इस रंगमंच के पात्र।) विज्ञो का मत है की आदि मानव ने प्रेम की आदिम आग की उष्णता से सृस्टि की रचना की 'आदम और हौवा या ,मनु और शतरूपा ने बाव संवेदन धड़कते प्रेम भावना के लिए स्वर्ग के संवेदन हित आनदं रस को नही अपितु जगत के कठोर जीवन को अपनाया | ओ- ढोलमारो , लैला मजनू , रोमिओ -जुलियर ,हीर -राँझा , की प्रेम कथाये तो यही रेखांकित करती है की प्रेम ही जीवन का सार है, प्रेम विहीन जगत वीरान है| इसी प्रेम के वशीभूत (जगत बनाने वाले ) माता (प्रकृति) व पिता (पुरुष) जगत का निर्माण किया । अतः उन्हें मेरा सहस्त्रो बार प्रणाम ! परिवारिक सुख आकाश में घटाओ के सदृस होता है| सुख उत्पन्न होता है पर चिर कल तक स्थिर नही होता उन घटाओ के सदृश ही छिप जाता है 'वर्षो से मेरे आँगन में एक अंगना नही जिससे मेरी आँगन सुनी है । 'ऐसा ही विचार कर 'मनीलाल ' अपने पुत्र (मधुसूदन ) क विवाह कर रहे है । असलबात मधुसूदन जब १० वर्ष का था, तब उसकी 'जन्म जननी' दुनिया से चल बसी । वह माँ की ममता को न पा सका- माँ की ममता उसके लिए आसमान के कुसुम हो गई । ' मनीलाल' मंजोलगढ़ के एक ईमानदार पुरुष है । वे सबको एक आँख से देखते है । पत्नी मृत्यु के बाद उनके आंखों से खून उतर आता - है बस याद आती ... कमर तोड़ जाती । बस उसी के याद को भुलाने और दुःख के आंसु को सुख में बदलने के लिए ही वे अपने पुत्र का विवाह कर रहे है । मधुसूदन का विवाह सुमन के साथ हो रहा है । 'सुमन' एक सजिली लड़की है । वह विदितनारायण की पुत्री है । 'विदित नारायण' भले व नेक इंसान है ।वे प्रेमगढ़ के सकुशल व्याक्ति हैं । आखिर एक दिन मधुसूदन की बारात प्रेमगढ़ के लिए निकल पड़ती है और लोगो की इंतजार की घड़िया ख़त्म हो जाती है । प्रेमगढ़ एक मनभावन नगर है। , किन्तु मधुसूदन की बारात ने उस नगर की ओर सजा दिया है उस जन -संकुल नगर में अति चहल -पहल है । मधुसूदन के माथ पर सुन्दर सेहरा है । जिससे मधुसूदन अति प्रसन्नचित है । वहां का विशद ए नूर अनुपम है । धरती के आसमा तक शहनाइओ की ध्वनि गूंज रही है , तारे गण आकाश में टिमटिमा रहे हैैं मानों सबके खुशीयों में झूम रहे हों । (कुछ देर बाद) पुरोहित द्वारा शिव ,गौरी व गणेश जी की पूजा कराइ जा रही है । वहीं सुहागिन स्त्रियों मंगल गान गा रही हैं । जिससे आये सभी ऐ कुटुम्ब जन आनंदित हो रहे हैं। (धीरे- धीरे द्वार चार की रीति- रस्म पूर्ण हो जाती है) वही एक सुंदर जनवासा है जिसमे आये सभी बारातियों की मंडली क्रमशः बैठी है । उन सबकी नज़र (सामने) दूल्हे और दुल्हन पर एक टक लगी है । वे सब उनके मुस्कान भरे चेहरे को देखकर बरबस ही मोहित हो रहे हैं। ख़ैर सुंदरता किसे नही मोहित कर लेती । आज 'सुमन' बारहों भूषणो से सजी है । उसके पैरों में नुपुर के साथ किंकिनि है । उसके  हाथों में कंगन के साथ चुड़िया हैं। उसके गले में कण्ठश्री है । बाहों में बसेर बिरिया के साथ बाजूबंद है । माथे पर सुन्दर टिका के साथ शीस में शीस फूल है । उसे देख कर ऐसा लग रहा मानो 'सुमन' नंदन की परी हो..... जो श्रृंगार- रस और सौंदर्य का मिलन हुआ है | अब प्रभात की सुमधुर बेल में सुमन व मधुसूदन सात फेरो के पवित्र बंधन में बध रहे हैैं ।उनके इस बंधन के साक्षी अग्निदेव है । वहीं अपने कुलानुसार लाई -परछन और नेक चार का रीती रस्म पूर्ण होता है । हालाँकि सुमन के अपने कोई भाई नहीं है तब भी मंगला नाम का ब्यक्ति अपने आप को सौभाग्य जान कर अपने हाथो से सुन्दर संबध जना रहा है । मानो सीता जी के लिए पृथ्वी का पुत्र मंगल गृह आया हो। शनैः शनै विदाई की पुनीत घड़ी आन पड़ी है । जहा पूजनीय पिता विदित नारायण के पांव न उठ रहे है और न ही टस से मस हो रहे हैं । वहीं दूसरी ओर माँ सुनैना की ममता टूट कर बिखर पड़ी है । प्रेम - जगत का प्रेम ही अजूबा है जब सुमन अपने पति के गले में वरमाला डाल रही थी तब सब की आखे एक टक हो कर उसकी ओर देख रही थीं। परन्तु अब सबकी आखे नम है । किसी के मुख से कुछ भी शब्द निकलते नहीं बनता मानो सौंदर्य ने श्रृंगार- रस छोड़ कर शांत_ रस को अपना लिया हो । जो सुमन कल तक अपने साथी सहेलियों की प्रिया थी एक बाबुल की गुड़िया थी। . बाबुल की प्रीत रुपी बाहों में झूलकर कली से सुमन बनी आज वही सुमन बाबुल की प्रीत में मुरझाकर बिदा हो रही है । खैर सुमन को बगैर मुरझाये बहारों का सुख कहा मिलेगा ? जब तक इस जगत में प्रेम रहेगा... तब तक सुमन को बहारों का सुख मिलता रहेगा ।चंद लम्हों के बाद विदितनरायण अपने दिल के टूकड को बिदा कर देते है। सुमन आंखों ही आंखों में देखते - देखते प्रेमांगन से दूर चली जाती है । प्रेम -जगत २ मनीलाल कृत- कृत्य हो गए , उनके जो वर्षो की सुनी आँगन में' सुमन 'का जो आगमन हुआ । इस जगत में प्रेम भी अपने वेष को बदलता रहता है । जो मनीलाल कल तक लोगों की सलामती चाहते थे वही मनीलाल अनायास ही परलोक सिधार गए। सारा सुख दुःखों में बदल गया जहा मधुसूदन की जिंदगी चांदनी रात के समान चमक रही थी अब वही खौफनाक अंधेरा सिर्फ अंधेरा …अब तो मधुसूदन के ऊपर पहाड़ सा टूट पड़ा। अगर उसके मन में खुशी होता तो रात अंधेरा भी दीप्त सा लहक पड़ता किन्तु चांदनी रातों में दुखों का साया पड़ जाये तो उसे कौन रोशन करेगा ? वहीं मधुसूदन बिलख-बिलख कर रो रहा है। वहा आये सज्जन विमन है। उन्हें मधुसूदन का रोना अच्छा नही लगता तो वे कह उठते हैं - मत रो मधुसूदन ! मत रो जो होनहारी है सो तो होगा ही ... किसी का भी संयोग से मिलन होता है और बियोग से बिछड़ना। हां मधुसूदन ये जिंदगी रोने के लिए नही है ।जीवन का प्रवाह जैसा बहता है तूं बहनें दे ।किन्तु तू मत रो रोना जगत के लिए पाप है । मरना सौ जन्मों के बराबर है जो की अंतिम सच है । यह रोने की घड़ी नही है। तुमने बाल्य काल में जिन कंधो को हाथी, घोडा और पालकी बना कर अपार आनद उठाया था न ,आज तुम्हें उन्हीं कंधो के मोल को अदा करना है इसलिए तुम भी अपने पिता (मनीलाल) को कन्धा दो । मणिलाल के परलोक सिधारते ही घर की आर्थिक स्थिति दुरुस्त नही रही ।जहा मधुसूधन ऐसो आराम की जिंदगी जी रहा था अब वही पहाड़ खोद -खोद कर चुहिया निकालने लगा । जिससे प्रेम -जाल में बंधे पत्नी (सुमन) और पुत्र का पेट पल सके । आखिर एक दिन मधुसूदन घर की स्थिति को दुरुस्त करने के लिए घर से निकल गया बहुत दूर... ।वह जान से प्यारे पुत्र को ममत्व के छाव छोड़ गया जहाँ माँ( सुमन )की ममता आपार थी और पुनीत गोद विशाल ।' ईश्वर की लीला बड़ी विचित्र है । जब मधुसूदन २ वर्ष तक घर नही आया तब सुमन नयन - जल लिए विलापती - ओह देव ! क्या ' मेरे पति देव जगत में कुशल भी है या उनसे मेरा नाता तोड़ दिया ? वह एक तरफ स्तम्भित हो कर भगवान को दोष देती वहीं दूसरी ओर अनुसूया जैसे पतिव्रता नारी धर्म का पालन भी करती। पर उसे मालूम नही की इस संसार में कोई किसी को दुःख देने वाला नही है । सब अपने ही कर्मो का फल है । सुमन चार दिवारी के बाहर विवर्ण मुख निम्न मुख किये बैठी है । उसकी आंखें नम है व केस विच्छिन्न । जिससे फेस ढका है । सूर्य की लालिमा उसके तन पर पड़ रहे हैं तब भी वह दुखों की काली सागर में डूबी जा रही है मानो उस अबला के लिए तड़पना ही उसका सफर बन गया हो। वह जैसे पति प्रतिक्षा में बिकल है वैसे ही प्रकृति भी अपने अनमोल छटा से विचल है । वह बारम बार विधाता को दोष देती और कहती - हाँ ,देव ! तूं सच-सच बता.. तूने मेरे ख्वाबों इरादों को पत्थर तो नही बना दिया ? क्या सूर्य के बिना दिन और चंदमा के बिना रात शोभा पा सकते है ? नही न... फिर मै अपने पति के बिना कैसे शोभा पा सकती हूं ? क्या तुझे एक दूजे की जुदाई का तजुर्बा नही... अगर नही, तो इस " प्रेम - जगत "में 'आ' और के देख ... तेरे बनाये इस कठोर धरती पर तेरा ये मिट्टी का खिलौना (पुतला) एक प्रेम के लिए कितना अधीर है । कि 'कास हमें मुठ्ठी भर प्रेम मिल जाता तो हमारे इस मिटटी के खिलौने में जान आ जाता … । आगे वह कहने लगी -'अब दिन फिरेंगे' तो जी भर के देखूँगी ।' हां देव !अब विलम्ब न कर ...उन्हें घर के चौखट तक ला दे । ये तुमसे मेरी आर्तनाद है और एक दुहाई भी।' हां लोगो को यह भ्रम है कि मैंने अपने पति (मधुसूदन )को घर से तू -तू ,मै -मै कर और मुह फुलाकर निकाल दिया है।पर तुम तो सर्वज्ञ हो तुम्हें मालूम है कि "मै उन्हें सप्रेम गले मिलाकर किस्मत बनाने और जिंदगी सवारने के लिए भेजा है। अतः ये आखे उनकी प्रतीक्षा में कब से राह सजाये खड़ी है । अंततः एक दिन मधुसूदन बीते हुए मौसम की तरह अपने पत्नी सुमन के पास लौट आया और पति से गले लगते ही सुमन झूम उठी मानो बहारों के आने पर मुरझाई कली खिल रही हो । मधुसूदन हंसते हुए पूछा- क्या हुआ सुमन ? तूम इतनी बेचैन क्यों हो ? क्या मै इस प्रेम -जगत में आकर सचमुच खो गया था ? अगर हां मै खो गया था तो क्या मेरा प्रेम भी इस जगत से खो गया था ? इन सवालो के ज़वाब सुमन न दे सकी और अपने बहारों में महकने लगी । ©Shivraj Anand प्रेम -जगत
प्रेम -जगत #लव
read more