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Mohammed Asrar
World Ozone Day तेरी अच्छाई तेरी शान को बेदार कहता है । *ए शहर* तेरी बुराई हर अख़बार कहता है। क्या तुझे में तेरी औकात बताऊ। अपने माँ बाप को तू भार कहता है। व्हाटसअप,फेसबुक, फोन पर रिश्तों को निभाता है। इस सोसल मीडिया को तू परिवार कहता है। मेहमानों के आने से जख्मी हो जाता है। फिर दस्तूर निभाने को तू रिश्तेदार कहता है। काम के आगे मिलने का वक्त नही किसी को। ओर इसे तू अमीरी ओर व्यापार कहता है। बड़ा सम्मान देता है बड़े बड़े नेताओं को। अंधी भृष्ट दलाली को तू सरकार कहता है। तेरे अपने ,छोटे बच्चे अदब भी भूल गए है। इस नए दौर को तू संस्कार कहता है। कीमत अदा करनी पड़ती है हर मोड पे मतलब के इस रिश्ते को तू प्यार कहता है। झूटी शान झूठा दिखावा करते है जो तुझमे। मतलब भरे उन लोगो को तू यार कहता है। बैठ न पाये जिसमे परिवार तेरा पूरा। शान दिखाते हुए उसे तू कार कहता है। लुटते हो हर रोज़ जहा इज़्ज़त माँ, बहनों की। ऐसी गंदी जगहों को तू बाजार कहता है। *ए शहर* आना कभी गांव में *असरार* के। मोहब्बत करेगा दिल से जिसे तू गवार कहता है।। ए शहर
Deepak Diwakar
ए शहर माना तेरे नखरे हजार होते हैं वहां पर सिनेमा हॉल और बीयरबार होते हैं तुम्हारे यहां खाने में पिज्जा बरगर और कोलड्रिंक होता होगा पर हमारे यहां तो फेमस लिट्टी चोखा और आचार होते हैं ए शहर
Shaikh Imran
इतना आसान नहीं शहर-ऐ -मोहब्बत का पता खुद भटकते हैं यहां राह बताने वाले … #शहर #ए #मुहब्बत
Atul Sinha
तुम अब अमीर ए शहर बन गए हो । कुछ तो कम हमारा लगान रहने दो ।। तुम्हारी हवेली से बहुत दूर है घर मेरा । बारिश में टपकता टूटा मकान रहने दो ।। दरारें बहुत हैं हालात ए दौर ए रिश्तों में । नजरें मिला सकें ऐसा इंतजाम रहने दो ।। न शर्म न लिहाज न संजीदगी अब रही । तकल्लुफ बचा उसे दरमियान रहने दो ।। मुसलसल करते हो हर बात ही नाजायज । दिल में अपने बाकी कुछ ईमान रहने दो ।। कब तक ढो सकोगे ये नफरतों का बोझ। इन बेचैनियों में थोड़ा इत्मीनान रहने दो ।। मुंह फेरकर आंखें चुरा लो तुम बेशक । दौर ए गर्दिश में दुआ सलाम रहने दो ।। माना की वक्त ने सितम बहुत ढाए होंगे । हारो मत रूह में थोड़ी सी जान रहने दो ।। कलम से निकलें तो हवा में बिखर जाएं । खुशबू बिखेरते मेरे यह पैगाम रहने दो ।। न मिलें कभी मिल जाएं वक्त की बातें हैं । मन बहलाने को कुछ अरमान रहने दो ।। अतुल सिन्हा ^अतुल^ ©Atul Sinha #अमीर ए शहर
Viश्v प्रTAप
पास रुकता भी नहीं , दिल से गुज़रता भी नहीं वैसे लम्हा कोई ज़ाया नहीं लगता मुझ को गाँव छोड़ा था कभी और अब यादें छूटी अब कोई शहर पराया नहीं लगता मुझ को मोहब्बत - ए - शहर
VIMLENDRA PRATAP SINGH
इस वीरान से शहर में यूँ ही अकेला चला हूँ देखता हूँ या तो शहर अपना अपना रुतबा कायम रखेगी या मेरे रुतबे से शहर जाना जाएगा vimlendra pratap singh #शहर -ए-वीरान जिंदगी