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सरोज
ती तशीच आहे आपल्या लयेत धावणारी मनाला भिळणारी खोल आठवणीत वसनारी रुळावरून जाताना आपल्याच एक लयेत गाणारी पावलं दर पावल नवीन गावं दाखवणारी जीवनाचे धागे द्दोरे आपल्याच यात्रेत गुफणारी अंधाऱ्या रात्री काजव्या प्रमाणे चमकणारी धडी धडीच्या आवांजाने एकदम उठवणारी वादळ वारे अलगद सोसणारी नदीचे डोह अलगद पालटणारी तुमच्या माझ्या मनात अलगद वसलेली तिचीच धडपड उरी वसलेली सरोज ट्रेन
shubham hirode
इश्क मोहब्बत प्यार की बातें तुम्हें करनी नहीं है। तो क्या? ये इश्क है या फिर कुछ भी नहीं है। इश्क-ए-समंदर की गहराइयों में डूब कर चाहने लगा हूं। तुझको को जानती हो क्या? तू कभी मेरे इश्क के समंदर में उतरी है क्या? मेरी उम्र कुछ ऐसी है प्यार में हो जाए नादानियां कुछ वैसी है कमबख्त ना कि कोई नादानियां संभल कर रखा है अपने वैशे को। तुझको तो ना अब करनी है नादानी ना शादी के बाद करनी है महा नादानियां। क्या कहु तेरे ऐसे रवविये को गंभीर वक्त पर भी कहां है तूने न जाने कैसे अल्फाज को टूट चुका था दिल से गिर रहे थे आंसू मर रहा था घुट घुट कर फिर भी ना कहा तूने वह सच ऐसा क्या मिला तुझको? झूठे अल्फाजों सी दस्तानों से नीचे गिराया है तुमने अपने ही आपको। तेरा झूठ कोई चतुराई या उमन्दा बात की कोई कहानी नहीं है। तू गिर रही थी मेरी नजरों में तुझको ये पता ही नहीं हैं। वो जो चाहता था तुझको टूट कर वो तो कब का मर चुका है जाने जा। वो जो हुआ करता था उसके अंदर अब वो ही मैं हूं सुना तो होगा ही। मेरे कमीनापन के बारे में उसकी जुबान से याद नहीं कोई बात नहीं अब तुम भी हमको याद नहीं। जोर न दो दिमाग की नसों पर तुमने ही कहा हैं छोड़ दो मुझको। तो सुनो तेरा हुकुम सर आंखों पर। त
shashwat ayush
कर्मों से ही फल पाते हम हैं यही यहाँ बस नियति हैं। कर्म परायणता से पदच्युत होने पर दुर्गति हैं। प्रांजल लोकतंत्र के अर्थों का आलम यहाँ पर ये हैं। सता दुःशासन बनी हुई हैं और लोकतंत्र द्रौपदी हैं। -शाश्वत आयुष ©shashwat ayush त