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Santosh Verma
Beautiful Moon Night चलो इश्क का तुमसे ऐलान करता हूं, अच्छा इससे चौराहे पर कोई दुकान करता हूं। तुम्हारे संग घर बसाने का चलो इंतजाम करता हूं, अच्छा इससे चलो दो पैक तेरे नाम करता हूं। खूबसूरत हो तुम इसपर मैं नाज़ करता हूं, अच्छा चलो कोई काम आज करता हूं। written by संतोष वर्मा azamgarh वाले खुद की जुबानी। । ©Santosh Verma #achha चलो #
Dev Rishi
ऋतु के बाद फलों का रूकना डालों का सड़ना है मोह दिखाना देय वस्तु पर आत्मघात करना है देते तरू इसलिए कि रेशो में मत कीट समायें रहे डालियां स्वस्थ और फिर नये नये फल आयें... ©Dev Rishi #रशमिरथी ,(भाग 4)
Anuj Ray
बुझा के अपनी आरज़ू के दीये,अंधेरों में चलते चलो, कोई तुम्हें सराहे ना सराहे, तुम अपना कर्म करते चलो। फिकर ना कर गुजर ही जाएगी , रात ये भी गर्दिश की, ज़रा सा हौसला करके, तुम अपनी मंजिलों पे बढ़े चलो। ©Anuj Ray # तुम अपना कर्म करते चलो,
Harpinder Kaur
लेकिन वो मर्द नहीं नामर्द होता है...... जिसे माँ- बहन लगती है सिर्फ एक गाली बेहद भद्दी गाली चाहे फिर वो माँ- बहन अपनी हो या दूजे की नामर्द के लिए सिर्फ एक गाली है क्योंकि गाली में छुपाता है वो अपनी कमज़ोरी.......................... ! ©Harpinder Kaur # भाग-3....... ✍️
Harpinder Kaur
लेकिन पुरुष की सोच में वो हिस्सा केवल एक वस्तु है जिसे प्रयोग करता है वो गाली रूप में.... अन्य उसके द्वारा दी गई माँ - बहन की गालियाँ उसे माँ- बहन, औरत का अपमान नहीं लगती उसे लगती है अपने मर्द होने की निशानी जिसे देने के बाद वो फूलाता है अपनी छाती यूँ जैसे कोई महान कार्य को किया गया हो ©Harpinder Kaur # भाग-2...... ✍️
Harpinder Kaur
गाली पुरुष को लगता है कि गाली उसके पुरूष होने का एक पहचान पत्र है उसकी मर्दानगी है एक औरत के नाम पर दी गाली में वो अपना पौरूषार्थ समझता है माँ - बहन की गालियों को वो अपने गुस्से का सुकून समझता है वो देता है......... औरत के उस हिस्से को गाली जिस हिस्से से वो दुनिया में आता है और अपना वंश बढ़ाता है ©Harpinder Kaur # भाग -1 ..... ✍️
Anjali Jain
Village Life बार बार रोकने के बावजूद जब सीता स्वयं चलने लगी तो लक्ष्मण के मन में यह विचार क्यों नहीं आया कि दोनों साथ ही चले जाएं ताकि पीछे सीता की चिंता ही न रहे । या नहीं...सब कुछ इतनी सहजता से घटित होता चला गया कि... यहाँ यह समझ में आता है कि-" होनी कितनी प्रबल और अटल होती है?" होने से पहले हमारी बुद्धि को ही हर लेती है या यह कहना भी सही नहीं है क्योंकि हमें तो जो हो रहा है या हम जो करना चाह रहे हैं उस समय की परिस्थिति के अनुसार सही ही लगता है लेकिन वही घटनाक्रम स्वतः होनी को सामने ले आते हैं जो हमें असह्य,असम्भावित व अघटित लगती है। सच है, जो होना होता है वह होकर ही रहता है।उसके आगे हम सब निरुपाय व किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं!! जय श्री राम!!! ©Anjali Jain #villagelife 24.03.24 भाग 02
Anjali Jain
Village Life श्रीमद रामायण में अभी सीता-हरण प्रसंग चल रहा है स्वर्ण मृग को पाने व लाने के लिए राम व सीता का वार्तालाप, तर्क -वितर्क इस तरह गूंथा गया है कि किसी का भी विचार या तर्क अनुचित या अनावश्यक नहीं लगा। अंततः राम का मृग के पीछे चले जाना, मारीच का बीच -बीच में "लक्ष्मण, सहायता करो" की पुकार के बाद,सीता का राम की चिंता में लक्ष्मण से संवाद, वाद विवाद,इसमें भी कोई असंगत बात नहीं। सीता पहले भी राम को भेजने के लिए आतुर, अब लक्ष्मण को भेजने के लिए व्याकुल व आतुर! हम दर्शकों के मन में भी तरह तरह-तरह के विचार व विकल्प उठते रहते हैं। राम को जब मृग की माया का पता चला तो वो उसे छोड़कर लौट क्यों न पड़े? ©Anjali Jain #villagelife 24.03.24 भाग 01