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Sunita Pathania
M.K Meet
मिटा सको तो मिटा दो मेरी हस्ती निकाल फेंको मुझे अपने घर से बाहर मगर कैसे जी सकोगे अपने दिल के बिना यार उसी घर में तो ,मै अपना घर बनाया हूं!!! . ©M.K Meet #घर
Avinash Jha
कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha #संशय #Mythology #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
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read moredr.rohit sarswati
White ( घर लौट चलूँ ) मन करता है छोड़ शहर की चका चौंद को घर अपने में लौट चलूँ ! मन करता है तोड़ नौकरी की जंजीरें इस शहर को तनहा छोड़ चलूँ । छोड़ चलूँ इस चँचल मन को इस शहर की भीड़ में रोता बिल्कता ! पीछे मुड़के ना देखूँ में चला जाउँ बस आगे बढ़ता । झुटी दिखावटी इस दुनिया से अब में नाता तोड़ चलूँ ! घर अपने मे लौट चलूँ घर अपने में लौट चलूँ । ©dr.rohit sarswati #घर लौट चलूँ
#घर लौट चलूँ
read moreTara Chandra
मात्र ईंट पत्थर आदि पदार्थ ही घर की बुनियाद नहीं होते, ... ... माता–पिता, दादा–दादी आदि के अनगिनत सपने, मेहनत तथा प्यार भी बुनियाद का हिस्सा होते हैं।। ©Tara Chandra #Home #घर