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Grand Master Vikrant
समाचार पत्र नकारात्मकता फैलाने की बजाए, सकारात्मक खबरें भी छापे ©Agent Cross Vikrant करोना काल के घोर संकट में समाचार पत्र नकारात्मकता न फैलाएं, सकारात्मक खबरें भी छापे #goodlifewithmatsogido
Power Of IAS
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निर्भय निरपुरिया
कभी सुना है अंधेरो ने रोशनी को रोक लिया। कभी सुना है आसमाँ ने, बिजलियों को टोक दिया। हम निकलें कलम की, नोंक पे अंगारे रख कर। जिगर फूंक कर तापेंगे। हम वक़्त की इस चाल पे, अपनी मुँहरे छापेंगे। गोया की औकात इसकी है, गुजर जाने वाली। उस पे हमारे ठोकरों के निशान खा के, कम्बख़त सीधा हो जाएगा।। निर्भय चौहान ©nirbhay chauhan कभी सुना है अंधेरो ने रोशनी को रोक लिया। कभी सुना है आसमाँ ने, बिजलियों को टोक दिया। हम निकलें कलम की, नोंक पे अंगारे रख कर। जिगर फूंक कर त
Tera Sukhi
अगर मुमकिन हुआ तो हम फिर मिलेंगे कैसे बसर हुई ज़िन्दगी हम तुमसे कहेंगे * अगर मुम्किन हुआ * अगर मुमकिन हुआ तो हम फिर मिलेंगे कैसे बसर हुई ज़िन्दगी हम तुमसे कहेंगे जिस मोड़ पर आकर रुक जाएंगे कदम उसी मोड़ पर सुनहरे
Madan Mohan
राष्टृ भाषा मातृभाषा हिन्दी तुम सबकी माता हो राजमाता हो राजभाषा हो हिंदुस्तान से नेपाल तक बोलबाला था आपका रसिया, मारिसस भी चेला था आपका आपके गुरूओं की बड़ी डिमांड थी मांग थी , तुम्हे अंग्रेज न हरा पाए कितने ही जतन से आज तुम हार बैठी अपने ही वतन से ll सरकारें जतन हजार करें सरकारी तुमसे प्यार करें माता भी मान के लाड करे फिर भी क्यों तिरस्कार करें सौतेला सा व्यवहार करे l मैं अपनी माँ का सम्मान चाहता हूँ एक शपत् लेता हूँ एक देना चाहता हूँ तुम्हारी सेवा मे रहूँगा उम्र भर किताबें लिखता रहूँगा उम्र भर चाहे कोई पढे न पढे चाहे कोई छापे न छापे चाहे कोई खरीदें न खरीदें चाहे कोई बेचे न बेचे शपत देता हूँ सबको माँ से लाड कर लेना वरना स्राफ लगेगा निरदार का तुम्हे राजभाषा के नाम पर उल्लू न बनाना हिंदी की पुस्तकें खरीदकर लाना और निरंतर पढ़ते जाना जाने कब माता तर जाये अजब गजब सी दुनिया मे किसी पुस्तकालय की मेज पर कुर्सी पर, अल्मीरा मे निरादर से सांस घुट जाये शरीर से प्राण छूट जाये तुम सब माँ से मिल आना किसी लाइब्रेरी मे, अखबार के पन्ने मे किसी जानकार या अंजान लेखक की पुस्तक मे या मेरी ही पुस्तक मे तुम्हारी राह देखती है माँ दिन महीने वर्षो से कि मेरा बेटा आएगा मुझे सूरत दिखायेगा कुछ कहेगा मुझसे या सुनकर जाएगा पागल सी रहती है पागलपन के अहसास मे पूरे वर्ष भर नहीं मिलती न परिवार मे उसकी गिनती सितंबर मे सब मिलते हैं आँशुओं की धार फूटे माँ की आँखों से बेटे मस्ती मे आते हैं हल्का सा जशन मनाते हैं गाते, सुनाते, अहसान जताते हैं झूठे ईनाम लुटाते हैं अकेला छोड़ जाते हैं कसम लो जो लिखोगे हिंदी मे लिखोगे तुम घर बाहर और दफ़्तर मे किसी की भी पढ़ोगे एक पुस्तक रोज पढ़ोगे तुम ll मदन मोहन ©Madan Mohan राष्टृ भाषा मातृभाषा हिन्दी तुम सबकी माता हो राजमाता हो राजभाषा हो हिंदुस्तान से नेपाल तक बोलबाला था आपका रसिया, मारिसस भी चेला था आपका आपक