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अनुराग "सुकून"
एक मुद्दत से मुझे वो मिला तो नहीं है, इंतेज़ार से मुझे कुछ गिला तो नहीं है! मेरी आंखें जो हैं आज आंसुओं से तर, ये सच्ची मोहब्बत का सिला तो नहीं है! जिनके खून में रहती है अलग ही गर्मी साहेब,ये वही 'बांदा' जिला तो नहीं है! हर बार ज़ख्म लगते हैं सोहबत में तिरी, कहीं ये तग़ाफ़ुल का सिलसिला तो नहीं है! अपने लहू से सींचा इश्क़ के पौधे को, दोबारा इश्क़ का फ़ूल खिला तो नहीं है! कविराज अनुराग तग़ाफ़ुल=लापरवाही सोहबत=साथ बांदा= मेरा जिला। #ghazal #urdupoetry #yaadein #बांदा_जिला #कविराज_अनुराग
Mr. Shayar
कैसी वजूहात मै शामिल ये दर्ख केसे झड़ रहा है ? म्होबत है उससे मगर ,गमों मै इजाफा हो रहा है । मालूम है मुझे मेरी तकरीर कहा तक साथ देगी ! यूंही नही ये शायर , जनाजो मै मोजूद हो रहा है । लोग अक्सर मेरी मोहोबत पर शक की निगाह फेर बैठे ये बांदा तो वैसे भी मर रहा था । ऐसे भी मर रहा है । ©Kartik Tripathi कैसी वजूहात मै शामिल ये दर्ख केसे झड़ रहा है ? म्होबत है उससे मगर ,गमों मै इजाफा हो रहा है । मालूम है मुझे मेरी तकरीर कहा तक साथ देगी ! यूं
Prabhat Awasthi
"झींगुर और क्रांतिकारी"- हर ओर छाता है अंधेरा, डर का साया पसारने लगता है अपने पैर। हर आवाज़ को निर्वात में बदलने के, किए जाते हैं प्रयास। तब कुछ लोग लेते हैं प्रेरणा, झींगुरों से। करते हैं अपनी आवाज़ को गुंजायमान, फैल गए अंधेरे के विरूद्ध। नहीं ठहरती उनकी ध्वनि, प्रकाश की उजली किरण आ जाने तक। और उजाले के साथ ही, सोये हुए लोग,भूल जाते हैं, क्रांतिकारियों को,झींगुरों की तरह। –बांदा वाला ©Prabhat Awasthi "झींगुर और क्रांतिकारी"- हर ओर छाता है अंधेरा, डर का साया पसारने लगता है अपने पैर। हर आवाज़ को निर्वात में बदलने के, किए जाते हैं प्रयास। त
Ravendra