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Stories related to नाशिवंत देह मानवा

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Rahul Sontakke

हे मानवा

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हे मानवा 

कोकिळा गाते मधुर 
तुझे सूर बेसूर 
फुल देते सुंगंध 
तू आहेस धुंद 
तुकाराम लावतो कपाळी गंध 
तू पाहतो दुसऱ्याचे गंध 
तुझा आहे दुसराच छंद 
कर तू हे सारे बंद 
नाहीतर येईल तुझा दुर्गंध 
तू आहेस मंद 
कपाळी लाव तू गंध 
हे मानवा घाल तू तुझ्या मना आळा 
नाहीतर दाबील तो तुझा गळा 
म्हणुनी म्हणतो लाव कपाळी टिळा हे मानवा

khushbu kumari

मानवा लागे कहीना #treanding #Reels #khushbukumari #वीडियो

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Akhilesh Kumar

देह से देह तक #कविता

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मैं 
तुम 
से.... हम 
बस 
इतना ही है 
.... प्रेम 
अखिलेश

©Akhilesh Kumar देह से देह तक

Sandhya Sonawane

कविता:-अरे मानवा आता तरी डोळे उघड.....

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पूर्वार्थ

#देह

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देह अति आवश्यक है 
किंतु यह गंतव्य नहीं 
माध्यम है

दुख होता है जब हम 
दैहिक विलासिता अर्जित कर , भोग कर स्वयं पर इठलाते हैं

हमें लगता है हमनें उसे अर्जित किया, भोगा! 
सत्य ये है की विलासिता ने हमें अर्जित कर लिया,
 बिना कोई मोल चुकाये, हमें अपना दास बनाया

हमें तप योग्य नहीं रहने दिया
हमसे सहनशीलता छीन ली
प्रतिक्षा का गुण गौण कर दिया

जब हम दो कदम नंगे पाँव नहीं चल पाते
चप्पल हंसती है हमपर

जब हम एक घंटे की भूख नहीं सह पाते, तो देह 
अपनी गिरती संभावनाओं पर रोती है

जब हमें गौ माता के गोबर से अपनी मौलिकता 
का एहसास होने के बजाए, बदबू आती है, तो धरती हमें 
अपनी गोद में पालती नहीं है, बल्कि हमारा बोझ सहन करती है

मनुष्य असीम संभावनाओं का स्वामी है, लेकिन एक 
ऐसा स्वामी जिसे अपनी ही निधि का पता नहीं या पड़ी नहीं

कामनाएं, वासनाएं, इक्षाएं, विलासिता ये सब जीवन 
के महत्वपूर्ण अंग हैं किंतु जीवन नहीं? 

जीवन एक वृहद संकल्पना है। 

जब हमारे जीवन का लक्ष्य देह को सुख के साधन 
उपलब्ध कराना बन जाता है, तो हमें नश्वर सुख की 
अनुभूति तो अवश्य हो सकती है, किंतु इसमें शाश्वत 
मन का हर्ष, आत्मा की तृप्तता संभव नहीं।

©purvarth #देह

पँखुड़ी

Manoj Srivastava

#देह

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एक नदी सी बहती थी उसके देह के अंदर।
मैं भी आकुल था, उससे मिलने को समंदर।
     #देह

Arora PR

कागज़ी देह #कविता

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Kamal bhansali

#देह-मंत्र #कविता

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शीर्षक : देह-मंत्र
देह से मुक्त होती जिंदगी की वासनायें
कह रही साथ कुछ भी तुम्हारे न जाये 
तुम कह रहे जिसे अपना यहीं रह जाये
आत्मिक-कर्म ही आगे नया स्थान पाये ।।

साँसों से जुड़े प्राणों के तार जब टूट जाये
बंधन मोह के सब इस जहाँ में  रह जाये
क्षल-कपट की जिंदगी खुद से ही शरमाये
देह की हसरतें आत्मा को मलिन कर जाये ।।

सोच यही सही जीवन धवल ही रह जाये
संयम के फूल आत्मा के गुलशन को सजाये
देह की सुंदरता कभी कांटो सी न हो जाये
अँहकार की धुंध में गलत कर्म नजर न आये ।।

रैन बसेरा है ये जग क्योंकि जीवन एक यात्रा है 
मंजिल-राही बनकर चलना, ये एक ही सूत्र है
आत्मा ही लिफाफा है शरीर तो सिर्फ एक पत्र है
पता कहाँ का होगा ? जानने का कर्म ही मंत्र है ।।
✍️ कमल भंसाली

©Kamal bhansali #देह-मंत्र

Akhilesh Kumar

देह पर #कविता

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देह पर 
जय ही 
प्रेम की सच्ची जय है 
प्रेम को 
देह से अलग 
कभी कोई नहीं 
जीत पाया 
अखिलेश

©Akhilesh Kumar देह पर
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