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shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
ये बात बात पर झूठी खुशामद किया मत कर,गर है जोरू से मुहब्बत,तो उससे हर*अहद लिया मत कर//१ देखो कितना निष्ठुर हुआ जाता है ये*इब्न आदम, करके*दर गूजर*बीन्त हव्वा को जरा *गमजद किया मत कर//२ उफ्फ बहुत*हलाक़ हैअब ये दिल,तेरी*तल्ख बातों से, जाना ऐसे तो मुझसे*जद्दों_जहद किया मत कर//३ पता करों वो*शरारे हैं किधर,जो करतें रहते है,कोई शरारत फिर इधर,हाय ऐसो के मार्फत सताया मतकर//४ वो कैसा हमनवा है,जो हर वक्त करता है दिल शिकनी,के अपनी*जोरू को ऐसे*मातहत किया मत कर//५ #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #Distant ये बात बात पर झूठी खुशामद किया मत कर,गर है जोरू से मुहब्बत,तो उससे हर*अहद छिपाया मत कर//१ *प्रण देखो कितना निष्ठुर हुआ जाता है ये
Rabindra Kumar Ram
" यूं ताल्लुक़ात कुछ जाहिर तो हो कहीं गैर-इरादतन , बात बेशक ना हो बात कुछ तो हो इस गमें-ए-रुसवाई में , मिलने - मिलाने का सिलसिला फिर कुछ यूं चल पड़ेगा , फ़कत जैसे की हमी हो सब के सब हमनवाई में . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " यूं ताल्लुक़ात कुछ जाहिर तो हो कहीं गैर-इरादतन , बात बेशक ना हो बात कुछ तो हो इस गमें-ए-रुसवाई में , मिलने - मिलाने का सिलसिला फिर कुछ यूं
Rabindra Kumar Ram
" तु बेशक रहे वेख़बर कोई और बात नहीं , मुहब्बत की बात ऐसी हैं इसकी इश्क़ कोई जात नहीं, मिल रहा हु बिछड़ रहा हूं तुझसे इसी हलाते-ए-हिज़्र से , अब कौन सा ग़म पालें हम अब मेरे हमनवाई में हैं कौन . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " तु बेशक रहे वेख़बर कोई और बात नहीं , मुहब्बत की बात ऐसी हैं इसकी इश्क़ कोई जात नहीं, मिल रहा हु बिछड़ रहा हूं तुझसे इसी हलाते-ए-हिज़्र से
Rabindra Kumar Ram
" मेरे साहिर में ओ अंदाजे-ए-ब्यान कहा से लाऊँ, बात जो भी हैं आखिर ओ बात कहा से लाऊ, तकाजा कुछ कर भी लू तो क्या हो जायेगा, मेरे तसब्बुर में जो हमनवाई हैं उसकी नाम कहाँ से लाऊँ. " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " मेरे साहिर में ओ अंदाजे-ए-ब्यान कहा से लाऊँ, बात जो भी हैं आखिर ओ बात कहा से लाऊ, तकाजा कुछ कर भी लू तो क्या हो जायेगा, मेरे तसब्बुर मे
Rabindra Kumar Ram
" इक दिन तुम्हे इश्क़ हो जायेगा, सलिके तुम कुछ भी इख्तियार करो , इश्क़ का मर्ज समझ ना आयेगा ऐसे में , जाहिर करना तुम किसकी हमनवाई हो तुम. " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " इक दिन तुम्हे इश्क़ हो जायेगा, सलिके तुम कुछ भी इख्तियार करो , इश्क़ का मर्ज समझ ना आयेगा ऐसे में , जाहिर करना तुम किसकी हमनवाई हो तुम.
Rabindra Kumar Ram
" तुम चश्मदिद बन मैं गवाह बन जाऊगा, एक गुनाह के हम दोनों बफादार हो जायेगें. " बात जितनी मुनासिब हो उसे और भी संगीन हम कर जायेगें , आदततन तुझे भी इस गुस्ताखी का हमनवा कर जायेगें . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " तुम चश्मदिद बन मैं गवाह बन जाऊगा, एक गुनाह के हम दोनों बफादार हो जायेगें. " बात जितनी मुनासिब हो उसे और भी संगीन हम कर जायेगें , आदततन त
Rabindra Kumar Ram
*** ग़ज़ल *** *** मुनासिब *** " कुछ बातें मुनासिब कर तो देते, जहाँ तक साथ चलते कुछ बातों का जिक्र कर तो लेते, अफसोस और मलाल अब तुझे भी रहेगा, मुझसे बातों का इरादा अब कुछ तुझे भी रहेगा, तुम मिलती फिर कही तो कोई बात मुनासिब तो करते, दिल में हैं जो चाहत ओ तुमसे वाकिफ़ तो करते, हसरतों का मुसलसल यही वाजिब ख्याल ठहरा, कही मिलती तुम तो तेरा साथ हमनवा कर तो लेता , कोई सहर शाम मुनासिब कर तो कर, मैं तुम्हें मिल सकु ऐसी कोई साजिश तो कर, उलफ़ते-ए-हयात फिर नज़र की बातें समझ में आयेगी, इन पमाल रास्तों से कोई हौसला नहीं बदला, रुख कर कोई फिर कोई तो बात बने, मैं तुम्हें मिल सकु ऐसी कोई तो हलात बने, कुछ जिद्द तु भी कर कि मैं ये मलाल कायम रख तो सकु, तेरे हिज्र की रातें ऐसे मुनासिब हो तो हो, फिर मैं तेरा किसी हाल में हो तो सकु. " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** मुनासिब *** " कुछ बातें मुनासिब कर तो देते, जहाँ तक साथ चलते कुछ बातों का जिक्र कर तो लेते, अफसोस और मलाल अब तुझे भी
Rabindra Kumar Ram
" यूँ तसव्वुर की नुमाइश क्या करते, यूँ बज़्मजमाना मुख़्तलिफ़ लोगों में तेरी तलाश भला क्या करते, उलफ़ते-ए-हयात नवाइस आखिर जाहिर किस पे करते , कहीं जो तुम मिलती और मेरा ग़म हमनवा तो करते . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " यूँ तसव्वुर की नुमाइश क्या करते, यूँ बज़्मजमाना मुख़्तलिफ़ लोगों में तेरी तलाश भला क्या करते, उलफ़ते-ए-हयात नवाइस आखिर जाहिर किस पे कर
Rabindra Kumar Ram
" यूँ तसव्वुर की नुमाइश क्या करते, यूँ बज़्मजमाना मुख़्तलिफ़ लोगों में तेरी तलाश भला क्या करते, उलफ़ते-ए-हयात नवाइस आखिर जाहिर किस पे करते , कहीं जो तुम मिलती और मेरा ग़म हमनवा तो करते . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " यूँ तसव्वुर की नुमाइश क्या करते, यूँ बज़्मजमाना मुख़्तलिफ़ लोगों में तेरी तलाश भला क्या करते, उलफ़ते-ए-हयात नवाइस आखिर जाहिर किस पे कर