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Bitterone_me
देव माझ्यासाठी नेहमीच एक प्रश्न आहे... आणि आई, सर्व प्रश्नांची उत्तरे. ©Bitterone_me #देव #प्रश्न #आई #उत्तर #God #Mother #questionanswer #viral #Popular #bitteroneme
AwadheshPSRathore_7773
White . बची थी जो शेष जिंदगी उसी को विशेष बनाने के चक्कर में कब यह जीवन भूत से वर्तमान,वर्तमान से भविष्य में कहीं खो गया, पता ही नहीं लगा... तुम्हारा कसकर हाथ पकड़ने की चाह में नमी जिंदगी.. कब सूखी रेत सी हो हाथों से फिसल गई पता ही नहीं लगा न मै..मेँ रही,ना तुम.. तुम रहे तुम्हारी जो जिंदगी थी मैँ..कब -कैसे - क्यूं रास्ते का पत्थर बन गई पता ही नहीं लगा...x कांच के टुकड़ों को क्यूँ हीरोँ का नाम दे...देकर यूं ही सहेजते रहे हम जबकि अपना शीशे सा दिल कब पत्थर हो गया पता ही नहीं लगा.. एक मुलाकात के इंतजार में तुम्हारे ख्यालों को कब कस्तूरी..मृग.. मन..से जिंदगी..ऐ..रुह में उतार लिया... पता ही नहीं लगा.... दीवारों को दर्द सुनाते सुनाते तन्हा दिल ने तन्हा-तन्हा सी जिंदगी में कब..तन्हा..शहर बसा लिया पता ही नहीं लगा...पता ही नहीं लगा... ©AwadheshPSRathore_7773 #nightthoughts शेष विशेष के जैसे चक्की के दो पाटों के बीच फंसती यह जिंदगी,किस तरह सादे मनुष्य से उसके जीवन की सारी सादगी छिन लेती है और अंतत
Ghumnam Gautam
बे e t o ओ ©Ghumnam Gautam #अवसर #स्वयं #प्रश्न #हल #ghumnamgautam
दीपा साहू "प्रकृति"
उलझन भरे मेरे नैनो ने तुमसे सहस्त्र प्रश्न किए। उत्तर जिनके खोज रही सम्मुख तुम्हारे यत्न किए। स्वार्थ भरी दुनिया व्याधि माया मोह जालिकाएँ, भोग-विलास की मन में खेले वो बाल-बालिकाएँ हे कृष्ण मोक्ष दो मुझे तुम्हीं,तम भरा उजाला भी। अंधकारमय है जीवन ,तुम्ही से मिले सहारा भी। उन्मुक्त मन की बांध गति,इंद्रियों को बांध दो, हे कृष्ण सुनो चरणों में मुझको भी अब स्थान दो। ©दीपा साहू "प्रकृति" #Prakriti_ #deepliner #krishna #love #poetry #poem #Nozoto उलझन भरे मेरे नैनो ने तुमसे सहस्त्र प्रश्न किए। उत्तर जिनके खोज रही सम्मुख तुम्
@_risky_boy_
HintsOfHeart.
"मधुर मधु-सौरभ जगत् को स्वप्न में बेसुध बनाता, वात विहगों के विपिन के गीत आता गुनगुनाता। मैं पथिक हूँ श्रांत, कोई पथ प्रदर्शक भी न मेरा, चाहता अब प्राण अलसित शून्य में लेना बसेरा।" ©HintsOfHeart. #महादेवी_वर्मा #जन्म_जयंती महादेवी वर्मा जी हिन्दी काव्य में छायावाद की एक प्रमुख स्तंभ थीं। जन्म: 26 मार्च 1907, फ़र्रुखाबाद, उत्तर प्रदे
Swati kashyap
🌿जो बैठे थे करीब ही...कब दूर हो गए मानो समंदर की लहरों संग गुम हो गए लहरे लौट के आती जाती रही साहिलों पर मगर वो ना लौटे वक्त के बहाव में बह गए माना हम भी बह जायेंगे एक दिन डूब जायेंगे गहराइयों में कहीं मगर उन हाथों का क्या? जिनका साथ गहराइयों में भी मिलेगा कभी नहीं सब कहां गुम हो जाते हैं? पता ही नहीं क्या... उनकी भी कोई बस्ती होगी कहीं? क्या कोई हमारे आने के इंतजार में बैठा होगा वहीं कहीं...???🍁 ©Swati kashyap #क्या?एक प्रश्न...