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Deepa Dhami
मैने अक्सर जीवन जीते मूक भी देखे वाचाल भी देखे कुछ बिन बोले , बहुत बोल गए कुछ बोल -बोल कर मौन हो गए। कुछ रिश्ते बस पल भर ही जीते कुछ जी भर कर जीते पर पल पल मरते। कुछ सांसें जो लम्बी चलती घुट - घुट बस आहें ही भरती । जीवन कुछ ऐसा बदला है पंख लगों को गिरते देखा हैं रिश्ते जो जीते जी भर हैं उनको मैने मरते देखा हैं बिखरे पन्ने
Dwipen Shah
शब्दों को सहेज के रखती हैं खो जाती हैं जो समय की आँधी मैं उन यादों को सहेज के रखती हैं कभीं गुलाब के फ़ूलों की कब्रगाह कभी अर्थहीन चित्रों का संग्रह आखिरी बार तुझे दिवाली की सफाई मैं देखा था धूल से सनी हुई, सच बोलू अर्थहीन रेखाएं अब कुछ कुछ समझ आने लगी हैं, ऐसा लगता हैं जैसे कुछ कहना चाहती है मुझसे मेरी यादे, जिसको कभी खींचा था यूँही कोरे पन्नों पे आज फिर से जीना चाहती हैं मुझ मैं मेरी यादे, यह पन्ने जो शब्दों, चित्रों से भरे हैं, कोई तुम्हें डायरी कोई किताब कहता हैं, मैं तुम्हें अपना भूला हुआ मैं कहता हु कुछ बिखरे पन्ने #CalmingNature
Deepa Dhami
मैने अक्सर जीवन जीते मूक भी देखे वाचाल भी देखे कुछ बिन बोले , बहुत बोल गए कुछ बोल -बोल कर मौन हो गए। कुछ रिश्ते बस पल भर ही जीते कुछ जी भर कर जीते पर पल पल मरते। कुछ सांसें जो लम्बी चलती घुट - घुट बस आहें ही भरती । जीवन कुछ ऐसा बदला है पंख लगों को गिरते देखा हैं रिश्ते जो जीते जी भर हैं उनको मैने मरते देखा हैं बिखरे पन्ने#कविता#विचार#
Deepa Dhami
मैने अक्सर जीवन जीते मूक भी देखे वाचाल भी देखे कुछ बिन बोले , बहुत बोल गए कुछ बोल -बोल कर मौन हो गए। कुछ रिश्ते बस पल भर ही जीते कुछ जी भर कर जीते पर पल पल मरते। कुछ सांसें जो लम्बी चलती घुट - घुट बस आहें ही भरती । जीवन कुछ ऐसा बदला है पंख लगों को गिरते देखा हैं रिश्ते जो जीते जी भर हैं उनको मैने मरते देखा हैं बिखरे पन्ने#
Deepa Dhami
जब राह बड़ी घनघोर अन्धेरा। जीवन पथ से दूर सवेरा सुमन- सुगौरव सब कुछ धुमिल मेरे हृदय में तेरा बसेरा। जो मैं चाहूँ ,तू ना चाहे मैं खड़ी बाहें फैलाये संकुचित तन में कुण्ठित मन हैं जीवन तो बस एक भ्रम हैं भ्रमित पड़े इस मन की मंशा मुझसे बेहतर तू ही जाने। इस कुण्ठित मन में उलझा जीवन पल पल व्याकुल पल पल आकुल तूने मुझको हर पल जाना प्रेम प्रतिफल हैं मुझको पाना।। बिखरे पन्ने#कविता
Deepa Dhami
हम चलते रहे कभी ठहरे , कभी रुके भी कभी भटके भी कभी संभले भी ना मंजिल पता थी ना सफर का पता था। बस चलते रहे। बिना कुछ सोचे समझे। कुछ अपनो ने साथ छोड़ा कुछ गैरौ ने साथ दिया कुछ ने भ्रमित किया कुछ ने अग्रसित किया। पर सफर चलता रहा और सफर का अन्तिम पड़ाव भी आया। हमने जो चाहा हमें मिल गया कुछ एहसास कुछ सबक और जीवन की महक।। धामी।। बिखरे पन्ने#कविता#कला
Deepa Dhami
कुछ इबादतें,कुछ परस्तिसें कुछ मोहब्बतें ,कुछ शिकायतें कुछ किस्से कुछ कहानीयां बनती गई,और बस बनती गई ।। कुछ बातें कुछ शरारतें कुछ मोहब्बत की वो हरारतें तुम ही थे वो या ख्वाब की इमारतें जो ढलती गई और बस ढलती गई। धामी।।। बिखरे पन्ने #कविता#कला#संगीत#शायरी