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Vivek Singh

घर में ठन्डे चूल्हे पर #Onesideman

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Nisheeth pandey

#घड़ा तुम हमेशा ठन्डे ही रहना लोग तुम्हें बजायेंगें ठक-ठक भरेंगें पानी में डुबो डुबक डुबक भर भर लोटा पियेंगें गटक गटक लेकिन गर्म हुये क #poem #MereKhayaal

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शीर्षक- #घड़ा

तुम हमेशा ठन्डे ही रहना 
लोग तुम्हें बजायेंगें ठक-ठक 
भरेंगें पानी में डुबो डुबक डुबक 
भर भर लोटा पियेंगें गटक गटक 

लेकिन गर्म हुये किसी दिन  
तो फोड़ देंगें पटक- पटक 

🤔🤔🤔

©Nisheeth pandey #घड़ा

तुम हमेशा ठन्डे ही रहना 
लोग तुम्हें बजायेंगें ठक-ठक 
भरेंगें पानी में डुबो डुबक डुबक 
भर भर लोटा पियेंगें गटक गटक 

लेकिन गर्म हुये क

Devansh Parashar

इश्क़ की अँगीठी दहकती सी रात पर वो पिघल रही थी और मैं उसकी यदों की अँगीठी पर दहक रहा था । तभी अचानक एक सर्द हवा का झोंका बंद खिड़की की ददारो

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इश्क़ की अँगीठी इश्क़ की अँगीठी 

दहकती सी रात पर वो पिघल रही थी और मैं उसकी यदों की अँगीठी पर दहक रहा था । तभी अचानक एक सर्द हवा का झोंका बंद खिड़की की ददारो

Bhavesh Thakur

अभिलाषा मन की आज निकला हूँ भ्रमण करने को होकर अपने वाहन पर सवार, देखें पर्वत, नदियाँ, समुद्र, पठार समुद्र में उठता ज्वार #कविता

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Alone  अभिलाषा

आज निकला हूँ 
भ्रमण करने को
होकर अपने वाहन पर सवार,

देखें पर्वत, नदियाँ, समुद्र, पठार
समुद्र में उठता ज्वार
समीर को रोकती पर्वत बाहें पसार 
बादल में छिपा सुर्य
नदियों की बहती धार....

©Bhavesh Thakur अभिलाषा मन की

आज निकला हूँ 
भ्रमण करने को
होकर अपने वाहन पर सवार,

देखें पर्वत, नदियाँ, समुद्र, पठार
समुद्र में उठता ज्वार

Neerav Nishani

उसे याद हूंगा मैं या भूल गयी वही लम्बे बाल, वही दाढ़ी, वही आंखें, वही चेहरा, मैं तो वही हूं शायद वो बदल गयी होगी क्या अब भी रातों को उठ कर #walkingalone #Neeravnishani #LalitShihir

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उसे याद हूंगा मैं या भूल गयी
वही लम्बे बाल, वही दाढ़ी, वही आंखें, वही चेहरा,
मैं तो वही हूं शायद वो बदल गयी होगी

क्या अब भी रातों को उठ कर सहम जाती होगी,
मुझे तो अब वो फ़ोन नहीं करती,
शायद रकीब से लिपट कर सो जाती होगी,

मेरी हिज़्र उसे शर्मिन्दा करती होगी,
उसकी तन्हाई उसको डसती होगी,
वो मुझसे मिलना चाहती होगी,
वो मुझे देख करके मुस्कुराती होगी,
मेरी याद उसके ज़हन से ना जाती होगी,

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©Neerav Nishani उसे याद हूंगा मैं या भूल गयी
वही लम्बे बाल, वही दाढ़ी, वही आंखें, वही चेहरा,
मैं तो वही हूं शायद वो बदल गयी होगी

क्या अब भी रातों को उठ कर

Mohd Akhtar Razaa

अब फ़क़त शोर मचाने से नहीं कुछ होगा सिर्फ़ होठों को हिलाने से नहीं कुछ होगा...। ज़िन्दगी के लिए बेमौत ही मरते क्यों हो अहले इमां हो तो शैता

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अब फ़क़त शोर मचाने से नहीं कुछ होगा
सिर्फ़ होठों को हिलाने से नहीं कुछ होगा...।

ज़िन्दगी के लिए बेमौत ही मरते क्यों हो
अहले इमां हो तो शैतान से डरते क्यों हो..?

तुम भी महफूज़ कहाँ अपने ठिकाने पे हो
बादे अख़लाक तुम्ही लोग निशाने पे हो...।

सारे ग़म सारे गिले शिकवे भुला के उट्ठो
दुश्मनी जो भी है आपस में भुला के उट्ठो...।

अब अगर एक न हो पाए तो मिट जाओगे
ख़ुश्क पत्त्तों की तरह तुम भी बिखर जाओगे...।

खुद को पहचानो की तुम लोग वफ़ा वाले हो
मुस्तफ़ा वाले हो मोमिन हो खुदा वाले हो...।

कुफ्र दम तोड़ दे टूटी हुई शमशीर के साथ
तुम निकल आओ अगर नारे तकबीर के साथ...।

अपने इस्लाम की तारीख उलट कर देखो
अपना गुज़रा हुआ हर दौर पलट कर देखो...।

तुम पहाड़ों का जिगर चाक किया करते थे
तुम तो दरयाओं का रूख मोड़ दिया करते थे...।

तुमने खैबर को उखाड़ा था तुम्हें याद नहीं
तुमने बातिल को पिछाड़ा था तुम्हें याद नहीं..?

फिरते रहते थे शबो रोज़ बियाबानो में
ज़िन्दगी काट दिया करते थे मैदानों में...।

रह के महलों में हर आयते हक़ भूल गए
ऐशो इशरत में पयंबर का सबक़ भूल गए..?

अमने आलम के अमीं ज़ुल्म की बदली छाई
ख़्वाब से जागो ये दादरी से अवाज़ आई...।

ठन्डे कमरे हंसी महलों से निकल कर आओ
फिर से तपते हुए सहराओं में चल कर आओ...।

लेके इस्लाम के लश्कर की हर एक खूबी उठो
अपने सीने में लिए जज़्बाए ज़ुमी उठो...।

राहे हक़ में बढ़ो सामान सफ़र का बांधो
ताज़ ठोकर पे रखो सर पे अमामा बांधो...।

तुम जो चाहो तो जमाने को हिला सकते हो
फ़तह की एक नयी तारीख़ बना सकते हो...।

खुद को पहचानों तो सब अब भी संवर सकता है
दुश्मने दीं का शीराज़ा बिखर सकता है...।

हक़ परस्तों के फ़साने में कहीं मात नहीं
तुमसे टकराए "जौहर!" ज़माने की ये औक़ात नहीं...।

जौहर कानपुरी साहब अब फ़क़त शोर मचाने से नहीं कुछ होगा
सिर्फ़ होठों को हिलाने से नहीं कुछ होगा...।

ज़िन्दगी के लिए बेमौत ही मरते क्यों हो
अहले इमां हो तो शैता
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