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Hasan Khan Shatha
😥😥 ✍️✍️✍️✍️कई राते जागी✍️✍️✍️😥😥 कई राते जागी आपने चैन से कभी नहीं सोए थे, हजारों मुश्किलें थी राहो में फिर भी कभी न रोए थे! जाऊंगा छुट्टी लेकर घर माँ बाप बच्चों से मिलकर आऊंगा, ऎसे कुछ सपने संजोए थे! आज मातृ भूमि आपको शहादत की नींद सुला रही है, जो आती थी रोज मुश्किलें राहो में, आज वही मुश्किलें आपके राहो मे फूल झूला रही है! जिस माँ को कहा था कि छुट्टी लेकर आऊंगा, आज वो माँ आपको बिलख बिलख कर बुला रही है टूटा है जो चश्मा मेरा अब बेटा आएगा तो बदलवाना है, कोन समझाए उस भोले बाप को की इन्ही चश्मों में उनका आखिर दीदार करवाना है! अब कोन आकर राखी बांधेगा बिलख बिलख कर तेरी बहिना बोल रही है, तुम्हारे मिलने की खुशी में जो सुहागन होकर श्रृंगार किया था, अब वही वीरांगना होकर बेहोश पड़ी उस श्रृंगार को खोल रही है! जो खुश होकर बचे बोल रहे थे कि पापा हमारे छूट्टी पर आएंगे, अब उन्ही बचो से उनकी आसाओ को मुखाग्नि दिलाएंगे! जो आज खुद को शहादत में सुला कर गए है, जो आज हमारे चेहरो की मुस्कान की खातिर अपनो को रुलाकर गए हैं! सदा रहेगा ये वतन आपका कर्जदार करता हू में आपको सलाम बारम्बार! स्वरचित दिनांक 16जून 2020 रात 11 बजे मातृ भूमि की रक्षा करते हुए चीन के सरहद पर शहीद हुए जवानों को सादर श्रध्दाजली कोटि कोटि नमन ✍️✍️✍️✍️✍️हसन खान शहिद सैनिक पर कविता हसन खान
वो SabnamKhatoon
अपने जीवन को संवारने के लिए हम लोग ना जाने कितने परिश्रम करते हैं। जीवन में खुशियां हो या ना हो यह तो दो पहलू पर निर्भर करता है। एक तो कर्म और दूसरा समय। मेरे हिसाब से यह दो पहलू ही अहम है जीवन के लिए। ©वो SabnamKhatoon जीवन पर कविता
कवि होरी लाल "विनीता"
जो शहीद हुए भारत के खातिर उनकी संतानों को पता लगाएं किस हाल किस रूप में जीवन बिता रहे सैनिक का परिवार उनको भूलो ना जाओ सरकार।। देश की सेवा करते करते जो वीरगति को प्राप्त हुए उनके साहस शौर्य न भूलें इतिहास पढ़ाया सबको जाए उनको भूल ना जाओ सरकार।। देश की आन बान शान मान मर्यादा और सबका सम्मान बढ़ा गए भारतभूमि की शान उनकी हम ना भुलाए पहचान उनको भूल ना जाओ सरकार।। कवि होरी लाल "विनीता" ©Hori lal Vinita कविता @ सैनिक का परिवार
Rajveer Salvi
Alone दासता–ए–बेरोजगार चार बायीं छ: फ़ीट के बन्द कमरे में, बैठ स्कूल लेक्चरार की तैयारी में, जुटा है एक किशोर| कुछ बनने की ख्वाहिश लेकर चन्द सालों पहले अपना घर छोड़, कई मिलों दूर चला आया है, एक किशोर| बीते साल रीट में कुछ पॉइंट से रह गया था वो, इस अवसाद के साथ एक अनसुलझी, ख़ामोश ज़िन्दगी से बहुत कुछ ना कहते हुए भी, बहुत कुछ कह रहा है, एक किशोर| रोज़ इस फ़िराक से की कही पीछे ना छूट जाऊ मंझिल की राहों से, इस कम्पा देने वाली सर्दी में भी जल्दी उठ जाता है, एक किशोर| रुपयों की अहमियत और मेहनत की कमाई से जोड़ें पैसों की क़द्र समझ, कई किलोमीटर दूर कोचिंग तक पैदल अपने हौसले भरे पैरों से बढ़ा जा रहा है , एक किशोर| सर्दी आ रही है, मम्मी ने अपने हाथों की गर्म नरमाहट, प्यार और आशीर्वाद से भेजें स्वेटर को पहनकर, इस ढलती शाम में भागते वाहनों को चीरते हुए, अपने कमरे की ओर बढ़ रहा है, एक किशोर| पापा कह रहे थे, बेटा इस बार फसल अच्छी हो जाए तो, कुछ पैसे ज्यादा भेजूँगा, तू एक अच्छा नया स्वेटर ले लेना और पाव भर दूध भी लाकर पी लेना, बीते महीने तू आया था तो बड़ा कमज़ोर दिख रहा था, पापा के दुलार को बढ़ाने में दिन रात जुटा हुआ है, एक किशोर | पर यह क्या था , इस बार तो बारिश बहुत हुई पक्क चुकी फसलें पानी से भर गई चारों ओर खेत में पानी ही पानी था , पापा के इस दुःख पर अपनी ज़िंदगी से कई शिकायतों के सवालों, के सैलाब से जूझ रहा है, एक किशोर | छुटकी बोल रही थी, फ़ोन पे भैया महीनों हो गये आपको देखे, दीवाली भी आ रही है, आओगे ना आप इस बार , ना जाने बदलतीं सरकारें और सत्ता पाकर बेसुध हुए दो-दो शहनशाहो का, कब परीक्षा फ़रमान जारी हो जाये इस डर से इस बार दीवाली पर जाने से कुछ नरवश सा हो गया है, एक किशोर | बदलती सरकारों और बदलतें फैसलों महँगाई के चंगुल तथा शिक्षामंत्री जी की, चिड़िया उड़ कोवा उड़ खेल में बुरी तरह फंस चुका है, आज का हर एक किशोर | इस उम्मीद से की एक दिन नई सुबह आएगी उसकी जिंदगी में यही सोच रूखी सुखी रोटी खा कर चंद बिस्तर लिपटकर सो रहा है, एक किशोर | लेखक – कैलाश चंद्र सालवी #alone मेरी पहली कविता मेरे जीवन पर...
Prakash Dwivedi Bharjuna
On the Border मेरी कलम नही चलती है नभ के चांद सितारों पर ना उपवन की कलियों पर ना सत्ता के दरबारों पर मै लिखता हूं शौर्य धरा का और भारत की शान लिखूंगा लिख दिया शौर्य यदि सैनिक का तो पूरा हिंदुस्तान लिखूंगा प्रकाश व्दिवेदी कविता सैनिक और राखी का प्रथम अंतरा
Poem and Motivation with Divyanshu
मंजिल ----------- हारा नहीं मैं ना ही जीता हूं, मैं तो केवल जिंदगी के खेल से अछुता हूं, मंजिल की राहों में कंकड़ों से टकराता हूं, थक कर भी मैं पीठ ना दिखाता हूं। रुका नहीं मैं ना ही दौड़ता हूं, मैं तो केवल अपनों से टुटा हूं, पथिक बनकर चलता रहता हूं, भय को मिटाकर निर्भय बन जाता हूं। धन्यवाद। दिव्यांशु राय आपके जीवन पर कविता । धन्यवाद। #foryou #yourpoem #mypoem