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Krishna B. Gautam
rahi
व्यक्तिगत आस्था हित मरोड़े गये, हम तो इंसान थे खूब तोड़े गये। धर्म के मार्ग ने भिन्नता क्या धरी, धर्म के नाम पर हम भी दौड़े गये।। वो हमें
Sandeep Kothar
ना कुछ कहें, ना कुछ सुने.. पेड़ भी रिश्ता निभाते है हम इंसान करीब रहकर भी.. क्यों धर्म और जातियों में बट जाते है? ©Sandeep Manohar Kothar प्लीज कॉमेंट और रिपोस्ट कीजिए! ना कुछ कहें, ना कुछ सुने.. पेड़ भी रिश्ता निभाते है हम इंसान करीब रहकर भी.. क्यों धर्म और जातियों में बट जात
तुषार "बिहारी"
कितने ही शहीद हुए, कितनों ने गोली खाई, कितने ही फांसी पर चढ़े, कितनों ने जान गंवाई । कतरा कतरा खून से लिखी गई कहानी है, सेनानियों के बलिदानों की ये अमर कहानी है । दिन भर के अनेक संघर्षो से वो थकते नहीं थे, अपनी मातृभूमि के खातिर जातियों में बंटते नहीं थे । हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब हुआ करते थे, अनेक जातियां थी फिर भी वो भाई हुआ करते थे । अपनी परवाह किए बिना भविष्य नया लिख रहे थे, स्वाधीनता का नया बीज इस मिट्टी में बो रहे थे । जोश और जुनून इस कदर सर पे चढ़ा होता था, कांपते थे पैर दुश्मनों के जब देशभक्त खड़ा होता था । जो लड़ें ब्रिटिशी हुकूमत से हर वक्त सीना ताने, झुके नहीं किसी के आगे वो भारत माँ के दीवाने । ना की परवाह अपनी, ना ही अपनों की, फंदे पे लटका दी ख्वाहिशें यूहीं अपने सपनों की । देश के खातिर मर मिटने वाला हर एक शहीद अमर हुआ, इसके खिलाफ़ जो खड़ा हुआ वो जीते जी दफ़न हुआ । ©तुषार "बिहारी" कितने ही शहीद हुए, कितनों ने गोली खाई, कितने ही फांसी पर चढ़े, कितनों ने जान गंवाई । कतरा कतरा खून से लिखी गई कहानी है, सेनानियों के बल
Prof. RUPENDRA SAHU "रूप"
- लाचार कुंठाग्रस्त व्याकुल आदमी और औरत दो शब्द हैं लिंग बोधक। वर्तमान परिस्थितियों में आदमी की वास्तविक स्थिति बहुत बदतर है । एक घर को घर बनाने के लिए उसके परित्याग का
Raju Mandloi
#सनातन_टैटू आज युवाओं में टैटू बनवाना खासा प्रचलित हो रहा है लेकिन बहुत ही कम लोगों को ही है ज्ञात होगा कि टैटू परंपरा सनातन हिंदू भारत से ही निकलकर संपूर्ण विश्व में फैल गई आइए इसी प्रकार के कुछ टैटू देखते हैं तथा उन्हें समझने का प्रयास करते हैं कि किस प्रकार भारत में योद्धा, उच्च पदों पर बैठे पदाधिकारी, व्यापारी तथा आम जनमानस अपने विभिन्न अंगों पर टैटू का प्रयोग करते थे। यंत्र या सक यंत पारंपरिक दक्षिणपूर्व एशियाई टैटू का एक रूप है जो सनातन हिंदू यंत्र डिजाइनों का उपयोग करता है, जिनमें से कुछ, क्रॉस, एक्सिस मुंडी, शक्ति और सुरक्षा का एक सार्वभौमिक प्रतीक है, ऐसा माना जाता है कि पहला धर्म, स्पर्शवाद, और दुनिया भर में व्यावहारिक रूप से सभी प्राचीन संस्कृतियों के लिए आम हैं। अन्य पवित्र ज्यामितीय डिजाइन, जानवरों और देवताओं का उपयोग आमतौर पर लिखित वाक्यांशों के साथ किया जाता है, जो पहनने वाले को शक्ति, सुरक्षा, भाग्य, चमत्कार और अन्य लाभ प्रदान करने के लिए कहा जाता है। साहस और चमत्कार वे सनातन योद्धाओं, सेनानियों, और सत्ता के पदों पर बैठे लोगों तथा सभी जातियों में सामान्य थे, योद्धाओं में यह आमतौर पर एक दूसरे का सामना करने वाले दो बाघों के साथ दर्शाया जाता है। -छवि का श्रेय उनके संबंधित लेखकों को जाता है। दिनांक - ०५.१२.२०२२ ---#राजसिंह--- ©Raju Mandloi #सनातन_टैटू आज युवाओं में टैटू बनवाना खासा प्रचलित हो रहा है लेकिन बहुत ही कम लोगों को ही है ज्ञात होगा कि टैटू परंपरा सनातन हिंदू भारत से
R.S. Meena
ऐ इन्सान एे इन्सान, इतना ना किया कर, खुद की जाति पर गुरूर। रखता है तु कदम जहाँ, उसी धरती में से ही है मेरा अंकुर।। लग गया मेरे हाथ उसका, जिसे तु समझता अछूत है, झाँककर देख अपने अंदर, मचा रखी तुने भी लूट है। विधाता मत समझ खुद को, तु नश्वर है और है मजबूर। एे इन्सान, इतना ना किया कर, खुद की जाति पर गुरूर। नोट पर भी तो हाथ लगे होंगे उसके, जिसने छुआ है मुझे, नफरत भरी निगाह तेरी, एक दिन नजरों से गिरा देंगी तुझे। तब मेरा बना हलवा भी ना ला पायेंगा, तेरे चेहरे पर नूर। एे इन्सान, इतना ना किया कर, खुद की जाति पर गुरूर। किसी के छुने से, नहीं बदलता है जहाँ में, पानी का रंग, सोच बनाओ सकारात्मक और बदल लो जीने का ढंग। कर्म से ही बदले है किस्मत, ऊँच-नीच से होती है चकनाचूर। एे इन्सान, इतना ना किया कर, खुद की जाति पर गुरूर। प्रकृति के उपहारों को जाति में बाँटने का ना कर तु दुस्साहस, मत कर अपमान उन हाथों का, वो भी है तुझ से सभ्य मानस। तोड़ कर नियम प्रकृति के, ना रह पाएँ कोई मुझसे दूर। एे इन्सान, इतना ना किया कर, खुद की जाति पर गुरूर। हमारे बीच कुछ ऐसे इन्सान भी है, जिन्होंने पेड़-पौधो को भी जातियों में बाँटने का अशोभनीय कार्य किया है । मूँग की व्यथा, उसी की जुबानी 👇👇👇👇 ऐ