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Aakansha shukla
पल भर के लिए कल्पना कीजिए, फोन, दूरदर्शन, अन्य सभी, बिजली चलित उपकरणों, को खुद से दूर कर दीजिए। कितना भयावह दृश्य वो होगा, कितना शांत वातावरण होगा। उस शांति में भी एक भय होगा, मन में बस एक सवाल होगा। कैसे अब दिन में गुजारा होगा, कैसे अब किसी से बात होगा। कैसे गर्मियों में पानी ठंडा होगा, कैसे ठंड में हीटर चालू होगा। इन सवालों के बाद हमारे, पास बस एक रास्ता होगा। संस्कृति से अपनी जुड़ने का, सिर्फ एक ही वास्ता होगा। फोन के बगैर किताबों, पर हम सब ध्यान देंगे। फ्रिज के बगैर गगरे, का ठंडा पानी पियेंगे। त्योहार मनाने के लिए, सभी से मिलने जायेंगे। खेल-कूद कर अपनी, स्फूर्ति और उम्र बढ़ाएंगे। एक बार फिर दादी-नानी, अपनी कहानियां सुनाएंगी। पुरानी परंपराओं से हम, अपने रिश्ते सुलझाएंगे। बिन यंत्रों के अपने जीवन, को हम खुशाहाल बनायेंगे। बिन यंत्रों के भी जीवन में, सुख-शांति हम पाएंगे। ©Aakansha shukla कविता कोश
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read moreकवि प्रभात
शिक्षक साथियों एक ही, करता मैं अनुनय | श्रम करो जिससे हिन्द का, लौटे पुनः समय || ©कवि प्रभात कविता कोश
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read morealka mishra
White कोहरे सी फैली ख्वाबों की चादर। जिस्म अलसाई सी कैसे निकले बाहर। हक़ीक़त आईने सी आँखों के सामने। नजरें जमाने की लगीं हैं आँकने। पलकें बन्द की लगा कुछ साधने। बना दिल मतलबी लगा वक्त काटने। चेतना अँगड़ाई ली लगा धुंध छांटने। कदमें जो थी थमी लगी राहें नापने। मंजिल खोई थी दिखने लगी सामने। ©अलका मिश्रा ©alka mishra #GoodMorning कविता कोश प्रेरणादायी कविता हिंदी कविताएं कविता कोश
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read moreSarita Kumari Ravidas
आधी अधूरी जैसी भी हूं सबसे पहले इंसान हूं मैं नासमझ नादान जो भी हूं आंखों में आसूं लिए इक आस हूं मैं माना हूं भरोसे में..... मैं कुछ से धोखे खाईं राहों में मुश्किले तो सभी की आनी है पर किससे कहूं? सबसे पहले इंसान हूं मैं।। ©Sarita Kumari Ravidas #Parchhai कविताएं कविता कोश कविता कविताएं कविता कोश
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read moreकवि प्रभात
हे कृष्णा, पीताम्बरी, मधुसूदन, गोपाल | अगले जनम लेना जनम, तो मेँ बनूंगा गवाल || ©कवि प्रभात कविता कोश
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read moreकवि प्रभात
मेरे सँग आप रहो शिवजी, भले जग सँग ये न दे आप के दम से ये सेवक,, जुझेगा हर खतरे से भले जग करता है वैसा तेरी भक्ति नहीं भाती 2 तब भी साथ तुम मेरा, नही तजना शिव शंभू हे! ©कवि प्रभात कविता कोश
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read moreकवि प्रभात
जय महाकाल!!! यथाशक्ति भक्ति करि, शिव शंभू, बाघम्बरी उचित हो उसके देना फल मुझको | वो मेरे मन का होगा, या नहीं मन का होगा सहज ही प्रभु मेरे, स्वीकारूंगा उसको || जैसे पूजा तेरी किया, देके तन अरु हिया वैसे ही आराध्य मैं मानूंगा तुझको | और जब भी जन्मूं यहाँ, तिस पर मानव बनूं यहाँ करूंगा समर्पित तुझपे खुद को || ©कवि प्रभात कविता कोश
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read morealka mishra
White कांधे से कांधा मिला कर चलने की सोच थी खुद को साबित करने की दिल में लगी भूख थी मंजिल के प्रकाश में जोश जुनून का सहरा था। मालूम न था राहों में अदृश्य दीवार का पहरा था। जिसके नुकीले सरिये ने घाव दिया गहरा था। जिसने हमारे तन मन को अंदर तक घायल किया हमारे हर अरमानों का बेरहमी से क़तल किया। ©अलका मिश्रा ©alka mishra #अदृश्य_दीवारें कविता कविता कोश प्रेरणादायी कविता हिंदी कविता कोश
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