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Stories related to बचपन की पुरानी यादें

पूर्वार्थ

White कुछ लोग 
कुछ रिश्ते,
हमारे हाथों में नही होते,
हां हम उन्हे चाहते हैं बहुत,
मगर कह नही सकते,
बता नही सकते, जता नही सकते,
बस अच्छा लगता है,
उन्हें आस पास देखना,
महसूस करना ....
हां मुमकिन नही होता उनसे हर बात कहना,
मगर एक आस होती है कि,
वो कभी मजाक में ही पूछे तो सही
कि कुछ कहना तो नही...
हम संभालकर,सहेजकर रखना चाहते हैं,
हमेशा के लिए उन्हें,
खुद के बहुत पास,
इतना की उनकी खुशी और तकलीफ का एहसास भी,
हमे बिना कहे हो जाए,
डर भी लगता है कि,
हमारा इतना लगाव कहीं,
उन्हें हमसे दूर न कर दे ,
हां अच्छा लगता है उनकी खुशी के लिए,
दुआ करना,उन्हे खुश देखना,
वैसे तो बिछड़ना रीत है दुनिया की,
मगर फिर भी इक आस रहती है कि
वो नही बिछड़ेंगे कभी,
शायद कहीं तो,कुछ मायने रखते होंगे हम भी,
थोड़ा ही सही,थोड़ी तो हमारी कद्र भी होगी,
कि हम जैसा फिर कोई शायद ही मिले,
फिर कभी...

©पूर्वार्थ #यादें

Narayan Nirmlakar

बदलते दौर में हमारी पुरानी यादें यादगार रहेगी जैसे हमारा रिश्ता कल था वैसे हि आज रहेगी

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Hemant Raj

और मुझे मेरी ही याद आती है कि मैं क्या था और क्या हो गया

©Hemant Raj #यादें

आधुनिक कवयित्री

बचपन की यादें......

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Sumit Kumar

बचपन की यादें..

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shivi voice

जब गंगा की लहरें मेरे मन को लगी छूने 
समेट कर यादों की राख का  विषर्जन कर दिया मैंने

©shivi voice #यादें

Anita Mohan

Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

White ज़िंदगी के सफ़र में कभी मुड़ कर भी देख लिया जाये 
कहीं कुछ ऐसा न छूट रहा हो जो फिर कभी मिल न पाये

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #यादें

2016

Rakesh Songara

#बचपन

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बचपन की यादें  किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,
वो खेल-खिलौने कागज़ के,मिट्टी के बर्तन,
बेवजह क्यूँ याद आ गए,,,
वो बेपरवाह बदमाशियां,अठखेलियां, शरारतें सारी,,
‌टूटी फूटी,रंगबिरंगी चूड़ियां प्यारी,,
‌माटी के घरौंदे में घर-घर का खेला,,
‌वो तीज़ त्योहार, गणगौर का मैला,,,
‌वो कुल्फ़ी की चुस्कियों से जुबां की लाली,,
‌मदारी के डमरू पे बजती वो ताली,,
‌अनोखे वो दिन वो बातें पुरानी पता नहीं
‌ क्यों याद आ गए,,,
‌किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,,,,,,
‌सावन के झूलों में घण्टों लटकना,,
‌वो बारिश की बूंदों में छम-छम रपटना,,,
‌फ़टे कपड़ों में भी खुशियां समेटे,
‌वो रेहड़ी से केलों के गुच्छे झपटना,,
‌था जिंदादिल अब से वो बचपन का मौसम,
‌अब तो  हर सांस पे लगता है राशन,,
‌चोट खाके भी हँसने के किस्से पता नही क्यों याद आ गए,,,
‌किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,,,,,,,,,,
             राकेश सोनगरा, सरदारशहर

©Rakesh Songara #बचपन
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