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Shiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
DILEEP RAJ AHIRWAR
The tongue never lies. The eyes never lie. जुबान झूठ बोलती है आँखे कभी नहीं ©DILEEP RAJ AHIRWAR #sugarcandy जुबान झूठ बोलती है आँखे कभी नहीं
Parasram Arora
काश मेरे पास अगर होती दिव्य आँखे तो देख पाता मै उस गरीबी क़ो जो पिघलती रहती है जगत के चप्पे चप्पे पर और शायद मे तब कामयाब होता देखने मे उस भूखी नंगी आभावग्रस्त मानवता क़ो जो हर कदम पर कुतरती रहती है अपनी पीड़ा क़ो ©Parasram Arora दिव्य आँखे
हिमांशु Kulshreshtha
तुम रूबरू भी न हो तो क्या तसव्वुर में बना लेता हूँ आँखे तुम्हारी और, नशा उनका ढाल कर लफ्जों में गज़ल बना लेता हूँ मैं ©हिमांशु Kulshreshtha तुम्हारी आँखे...
Arora PR
असमंजस और नेराशय के गड्डे मे आखिर तुम कब तक़ यहां पड़े रहोगे अच्छा होगा आँखे अपनी खोलो वरना अगले जन्म मे भी तुम्हे यही सब फिर दोहराना पड़ेगा ©Arora PR आँखे अपनी खोलो