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Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
White **शिक्षा** शिक्षा हमें तर्क सिखाती है, कुतर्क करना नहीं। शिक्षा सबको साथ चलना सिखाती है, अकेला छोड़ना नहीं। कहां से कहां आ गए हम, किताबें पढ़कर, डिग्रियाँ लेकर। खुद के अधिकार पाना तो सीख लिया, पर दूसरों के हक का हनन, ये शिक्षा सिखाती नहीं। आज पढ़-लिख मर्यादा की बात सब करते हैं, पर निभाता कोई नहीं। शिक्षा का अर्थ ही बदल दिया, कम पढ़े को गंवार कहकर, कहते हैं वो काबिल नहीं। आज की शिक्षा ने रीति तोड़ी, प्रीति तोड़ी, अब कोई लिहाज़ नहीं रखता, सब कुछ छोड़ दिया है। --- ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma #teachers_day **शिक्षा** शिक्षा हमें तर्क सिखाती है, कुतर्क करना नहीं। शिक्षा सबको साथ चलना सिखाती है, अकेला छोड़ना नहीं।
#teachers_day **शिक्षा** शिक्षा हमें तर्क सिखाती है, कुतर्क करना नहीं। शिक्षा सबको साथ चलना सिखाती है, अकेला छोड़ना नहीं। #कविता
read moreसंस्कृत लेखिका तरुणा शर्मा तरु
my real voice English Poetry People can't agree Gener शीर्षक लोग सहमत नहीं हो सकते Thought विधा.. विचार #Life #Emotions #Trending #poetrycommunity #femalerealvoice #कवितावाचक #tarukikalam
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थोड़ा भी चोखा ।। खुला सुबह से आज है , ठेका सरकारी । जी भर पीकर देख लो , भूलो तरकारी ।। निशिदिन जैसे आज भी , सोयेंगे बच्चे । बनो नही अब आप भी , कलयुग में सच्चे ।। गाँव-गाँव यह रीति है , सब करते थैय्या । मेरे तो सरपंच जी , है बड़का भैय्या ।। दिये न ढेला नोन का , बनते है दानी । देते भाषण मंच पर , बन जाते ज्ञानी ।। करना आज विचार सब , पग धरना धीरे । बिछे राह में शूल है , हम सबके तीरे ।। जाग गये तो भोर है , जीवन में तेरे । वरना राई नोन के , लेते रह फेरे ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थ
उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थ #कविता
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प्रदीप छन्द :-गीत नही किसी से कहना है अब , दिल की अपनी बात को । कौन समझता है अब मेरे , दिल के सुन जज्बात को ।। नही किसी से कहना है अब ... सुनकर सबकी बातें हमने , खायी दिल पे चोट है । किससे जाकर मैं अब पूछूँ , क्या मुझमें अब खोट है ।। कोई तो बतलाये मुझको , क्या ये जग की रीति है । बिन बादल क्यों देखा हमने , जीवन में बरसात को ।। नही किसी से कहना है अब.... राह दिखाओ जगदम्बें माँ , बीच भँवर में नाव है । एक तुम्हारे दर पे ही तो , पाते ही सब छाँव है ।। मुझे मातु कुछ भक्ति दिला दो , यही पास में गाँव है । तेरी सुधि में दौडा आया , क्या देखूँ दिन रात को ।। नही किसी से कहना है अब .... मैं भी अपनी माँ का प्यारा , राजा बेटा एक हूँ । जिसका हूँ मैं एक सहारा , देखो वही विवेक हूँ ।। कैसे उसका कर्ज उतारूँ , करता आज विचार हूँ । जिसके खून पसीने से मैं , किया नई शुरुआत को ।। जाकर उससे ही कहना अब..... नही किसी से कहना है अब , दिल की अपनी बात को । कौन समझता है अब मेरे , दिल के सुन जज्बात को ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्रदीप छन्द :-गीत नही किसी से कहना है अब , दिल की अपनी बात को । कौन समझता है अब मेरे , दिल के सुन जज्बात को ।। नही किसी से कहना है अब ... स
प्रदीप छन्द :-गीत नही किसी से कहना है अब , दिल की अपनी बात को । कौन समझता है अब मेरे , दिल के सुन जज्बात को ।। नही किसी से कहना है अब ... स #कविता
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