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Devesh Dixit
कलम (दोहे) कलम चले जिस राह पर, लेख पत्र है नाम। पोलें सब की खोलती, अद्भुत करती काम।। दुर्जन इससे काँपते, होती सम तलवार। एक बार की चोट में, घायल कई हजार।। उत्तम लेखन भी करे, सबको होती आस। यही कलम की जिंदगी, है सबकी यह खास।। बिना कलम के जिंदगी, है बिलकुल वीरान। इससे ही रचना बने, और करे ऐलान।। शब्दों से मन मोहती, यह इसकी पहचान। अकसर देती है खुशी, करती भी हैरान।। यही कलम औजार भी, और पुष्प की माल। कहती है सद्भावना, करती बड़ा कमाल।। .......................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #कलम #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry कलम (दोहे) कलम चले जिस राह पर, लेख पत्र है नाम। पोलें सब की खोलती, अद्भुत करती काम।। दुर्जन इ
ARTI JI
Black यूं तो हिन्दू धर्म में सालभर त्योहारों का सिलसिला जारी रहता है परंतु बैशाख माह लोकवेद पर आधारित परंपराओं के अनुसार विशेष माना जाता है जिसमें व्रत, दान तथा होम जैसी और भी धार्मिक क्रियाएं शामिल हैं जो बड़ी जोर-शोर से सम्पन्न की जाती हैं। ऐसी लोकमान्यता है कि इस माह में किये गए अनुष्ठान अधिक लाभकारी होते हैं। इसी संदर्भ में कुछ नई जानकारी आज आपको हिन्दू धर्म के पवित्र शास्त्रों के आधार पर इस लेख से मिलने वाली है तो अंत तक बने रहें: https://bit.ly/3JqkQSZ #VaisakhMonth #VaisakhMonth2024 ©ARTI JI #Morning #IPL2024 #भक्ति #शायरी #मोटिवेशनल #कॉमेडी #लव #IPL यूं तो हिन्दू धर्म में सालभर त्योहारों का सिलसिला जारी रहता है परंतु बैशाख माह
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Beautiful Moon Night दोहा :- माता तेरे नाम का , रखता हूँ उपवास । सुत मेरा भी हो सही , बस इतनी है आस ।।१ बदलो मेरे भाग्य की , माता जी अब रेख । हँसते हैं सब लोग अब , कष्ट हमारे देख ।।२ जीवन से मैं हार कर , होता नही निराश । करता रहता कर्म हूँ , होगा क्यों न प्रकाश ।।३ इस दुनिया में मातु पर , रखना नित विश्वास । वे ही अपने लाल के , रहती हैं निज पास ।।४ कहकर उसको क्यों बुरा , बुरे बने हम आज । ये तो विधि का लेख है , करता वह जो काज ।।५ कभी किसी के कष्ट को , देख हँसे मत आप । वह भी माँ का लाल है , हँसकर मत लो श्राप ।।६ मदद नही जब कर सको , रहना उनसे दूर । कल उनके जैसे कहीं , आप न हों मजबूर ।।७ करने उसकी ही मदद , भेजे हैं रघुवीर । ज्यादा मत कुछ कर सको ,बँधा उसे फिर धीर ।।८ जग में सबकी मातु है, जीव-जन्तु इंसान । कर ले उनकी वंदना , मिल जाये भगवान ।।९ माँ की सेवा से कभी , मुख मत लेना मोड़ । उनकी सेवा से जुड़े , हैं जीवन के जोड़ ।।१० ११/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- माता तेरे नाम का , रखता हूँ उपवास । सुत मेरा भी हो सही , बस इतनी है आस ।।१ बदलो मेरे भाग्य की , माता जी अब रेख । हँसते हैं सब लोग अ
Adv Di Pi Ka
उसका लाख ही... किसी का खाल था। बस उसकी नजरों से नजर अंदाज था! या उसे नजर तो था पर उस पर... उसका अंदाज नजर अंदाज वाला था। ©Di Pi Ka #truecolors लेख का खेल कुछ इस तरह...जिसको जितनी जरूरत है उतना मौजूद है। और जिसको जितनी जरूरत नहीं उस से ज्यादा भी मौजूद है। एक विनती से तो द
Deepanjali Patel (DAMS)
एक बेटा होना भी आसान नहीं है जनाब......... बेटियों के भाग्य को लिखकर तो विधाता भी कभी-कभी रो देता होगा, पर कभी सोचा नहीं था कि आज तो एक बेटा होना या उसके माता-पिता होना भी आसान नहीं है। कितनों से सुना है और देखा भी है कि बदलते समाज के साथ बेटियों के प्रति बढ़ती असुरक्षा और दहेज प्रथा ने तो बेटी होने पर दुःख एवं भय पहले ही सताने लगता है किन्तु आज की तारीख में बेटे के जन्म से ही उसके माता-पिता को उसकी शादी के समय की चिंता सताने लगती है। हर एक माता-पिता का सपना होता है कि उनकी संतानों का सही उम्र और सही जीवन साथी से अगर बंधन जुड़ जाए तो उनका जीवन सफल हो जाएगा। पर उन्हें क्या पता था कि आज तो बेटे के ब्याह के लिए भी इतना चिंतित होना पड़ेगा। हां, आज एक लड़का पढ़-लिखकर, डिग्री हासिल कर, जिम्मेदार और घर को चलाने व संभालने लायक भी बन जाए तो उसका रिश्ता ये कहकर ठुकरा दिया जाता है कि उसके सर पर खुद के घर की छत नहीं है। अगर लड़का कमाऊ भी है, खुद का घर भी है लेकिन जमीन तो नहीं है न। अब लड़का कमाऊ भी है, खुद का घर और जमीन-जायदाद भी है, चरित्र का भी ठीक है, जिम्मेदार है, गुटखा-दारू भी नहीं खाता-पीता, लेकिन सरकारी नौकरी तो नहीं है न। अब सरकारी नौकरी भी है, घर में भी सब कुछ है बस माता-पिता के लिए बहू लाने में जो नौकरी की कमी थी वो भी इस तगड़े प्रतिस्पर्धा में आखिरकार पा ली, मगर जरा सी देर हो गई, पर अब दिक्कत क्या है? अरे ये सब जोड़ने-बनाने में, नौकरी पाने में ब्याह की जो उम्र निकल गई, उसे कैसे भूल जाएंगे? उम्र भी तो रिश्ते ठुकराने का एक तरीका है। वाकई, न ही खुशी-खुशी बेटियां ब्याही जा रही और न ही बेटों की बारात निकल पा रही है, बस इसी चिंता में माता-पिता की भी आस मिटती जा रही। और इस चिंता से चिता तक आकर जीवन का सफर बीच में ही पूरा मगर वास्तव में अधूरा ही रह जाता। वजह मात्र इतनी कि इन कुरीतियों को अपनाने के चक्कर में शादी जैसे पवित्र बंधन को भी सौदेबाजी में बदल दिया गया है। ©Deepanjali Patel (DAMS) बेटियों के मेरे लेख को अगर आपने पढ़ा है तो एक बार इसे भी पढ़ कर, अपनी राय जरूर दें। #imagesourcepinterest #beta #Sarakarinaukari #Jameenjayd
भारतीय लेखिका तरुणा शर्मा तरु