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Zeeshan Ansari
ग़ज़ल हमारी ज़िन्दगानी में जो इतनी शादमानी है। ये अपनों की इनायत है, ख़ुदा की मेहरबानी है। महेज़ क़तरा समझिए मत इसे दो बूंद पानी का, बयां जो कर नहीं सकते उसी की तरजुमानी है। उजड़ता जा रहा है धीरे-धीरे बागबां अपना, ये कैसी हुक्मरानी है, ये कैसी निगहबानी है। ये दुनियां चार दिन की है बहुत उम्मीद ना रखना, सुनाई जा रहीं हैं जो फकत झूठी कहानी है। मसर्रत बढ़ती जाती है कभी जब सोचते हैं हम, वरासत में मिली हमको बुज़ुर्गों की निशानी है। चलो सिक्का उछालो जो भी होगा देखा जायेगा, हमें फूटी हुई क़िस्मत मुक़र्रर आज़मानी है। ये कैस रहनुमां हैं जो हमें पहचान ना पाए, अरे पहचान तो ज़ीशान अपनी ख़ानदानी है। ज़ीशान अंसारी बरकाती
Akbar Shah
यूँ रुलाया ना कर जिंदगी हर बात पर जरूरी तो नहीं की हर किसी की किस्मत में चुप कराने वाला भी हो रेहान बरकाती रेहान रज़ा बरकाती
Zeeshan Ansari
जो भी वादे हैं किए सारे निभाऊंगा मैं आप जो चाहेंगे वो करके दिखाऊंगा मैं दर्दो आलाम की तारीफ़ अगर पूछोगे अपने दिल की तुम्हे आवाज़ सुनाऊंगा मैं मैं हूं इक आम बशर कोई मुफ़स्सिर तो नहीं जो तेरे ख़्वाबों की ताबीर बताऊंगा मैं करदे मजबूर ज़माने को जो बोसे के लिए ऐसा किरदार हसीं अपना बनाऊंगा मैं खा नहीं पाएंगे जब खाना ज़ईफी के सबब बूढ़े मां बाप को हाथों से खिलाऊंगा मैं ऐसे बेगानों की बस्ती में कोई कैसे जिए छोड़िए दुनियां अलग जाके बसाऊंगा मैं इश्क़ है, इश्क़ है ज़ीशान सुनो इश्क़ है ये इसके हर नाज़ मुहब्बत से उठाऊंगा मैं ज़ीशान बरकाती इलाहाबादी ज़ीशान बरकाती इलाहाबादी
Anupama Jha
जब तक वृक्ष में है प्राण, वो करता है अपना सर्वस्व दान, कटकर भी करता वो , हमारा ही कल्याण, कभी बनता हमें सुख देने को, फर्नीचर,कभी मकान, जाते उसके कंधे पर ही चढ़कर हम शमशान, लकड़िया भी उसी की जलती जो हम जाते मोक्षधाम। #फर्नीचर#वृक्ष #yqbaba
Amar Patel
अमर फर्नीचर की तरफ से समस्त देशवासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं जय हिन्द जय भारत अमर फर्नीचर रीवा मो.न.9981882757