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samandar Speaks
White ये आसमां ज़मीं पर उतर क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता ये रुकता तो,बच्चे भी बच्चे रहते,हम भी हम रहते न वो दूर कहीं जाते,ना हम घर के बाहर ठहरते बदलते वक्त के हालात पर ये तरश क्यों नहीं खाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता झोपड़ियां सहमी है दुबकी हैं फट्टे शॉल में लिपटी है बकरियां फट्टे बोरे में,टूटी खाट पे हुई जा खड़ी हैं इस बेबसी में नए साल का फितूर उतर क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता बाप कि जवानी लेकर बेटे बड़े हो रहे हैं इन्हें जवान करते बाप अधमरे हो रहे हैं रैन बसेरों का डर अब निकल क्यों नहीं जाता ये गुजरता हुआ साल अब ठहर क्यों नहीं जाता राजीव ©samandar Speaks #love_shayari मनीष शर्मा Satyaprem Upadhyay Radhey Ray Poonam bagadia "punit" Sandeep L Guru मनीष शर्मा Satyaprem Upadhyay अंजान S
#love_shayari मनीष शर्मा Satyaprem Upadhyay Radhey Ray Poonam bagadia "punit" Sandeep L Guru मनीष शर्मा Satyaprem Upadhyay अंजान S
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White मेरी माँ मेरी यादों के चिलमन में आज भी मेरी माँ है, मुझमें ज़िंदा हर पहलू में शामिल मेरी माँ है। रातभर चाँद से गुफ़्तगू करती रोज़, ये मेरी आंखें अब भी रोशन मेरी आंखों में रहती, मेरी माँ है। ढूँढ़ता हूँ उसे मै फ़ज़ा के रास्तों पर हर नई सुबह का पहली तारीख, मेरी माँ है। मेरे कतरे कतरे देते झलकी उसके इल्म की, मेरी घर के हर कोने में दिखती, मेरी माँ है। छोड़ ग़ई है दूर मुझे गुमनाम सी मंजिल पर पर आज भी उसकी आहट कहती,मेरी माँ है। राजीव । ©samandar Speaks #sad_dp Mukesh Poonia Radhey Ray मनीष शर्मा Sandeep L Guru bewakoof
#sad_dp Mukesh Poonia Radhey Ray मनीष शर्मा Sandeep L Guru bewakoof
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Unsplash आईना मुझसे मेरे वक़्त का हिसाब मांगता है, अक्स पे बेजान अदावत का जवाब मांगता है। धूल चेहरे पे, या ख़्वाबों में भटकती है कहीं, हर परत मुझसे छुपे राज़ का नक़ाब मांगता है। वो जो गुज़रा है कभी ख़्वाब सा लम्हा बनकर, अब वही बीते हुए लम्हों का हिसाब मांगता है। जिनको देखा था ख़ुदा का ही करम समझ कर, वो मेरा टूटता ईमान बेहिसाब मांगता है। आईने के उस पार मैं भी कहीं ग़ुम सा हूँ, और वो मुझसे मेरी रौशन किताब मांगता है। सोचता हूँ कि ये आवाज़ है दिल की या वक़्त, हर सदा जैसे मुक़द्दर का मिज़ाज मांगता है। ख़ुद को पहचान सकूँ, इतनी भी मोहलत दे दे, ये जहाँ मुझसे हर एक हाल का जवाब मांगता है। Rajeev ©samandar Speaks #library Mukesh Poonia Anant Radhey Ray Sandeep L Guru bewakoof
#library Mukesh Poonia Anant Radhey Ray Sandeep L Guru bewakoof
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White Now let no prayers for peace take root in thee, Nor blessings sweet of joy be sought in plea. For life, a sentence wrought in sin's cruel chain, No pardon's touch shall cleanse the scar of pain. Who slew the soul, and who the guilty be? Speak truth, and let the veil of doubt now flee. This stormy path, where winds of sorrow blow, Leaves hearts entangled, weighed by heavy woe. A whisper calls from depths of longing's sea, A voice that cries for lost humanity. From stone-cold hearts, the echoes now are still, Yet justice cries: "Condemn the silent ill." Let shadows fade, and let the truth take form, To calm the tempest raging in the storm. RAJEEV ©samandar Speaks #sad_quotes Sandeep L Guru Radhey Ray Siddharth singh Anant अंजान
#sad_quotes Sandeep L Guru Radhey Ray Siddharth singh Anant अंजान
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"I'm crushed, smashed, yet I'm not defeated, I'm stormed, stunned, stound, still I'm not assaulted, Through shadows deep and winds so cold, I stand with strength, fierce and bold. Though battles rage and skies turn gray, I rise again to find my way, In every scar, a story told, Of courage, hope, and dreams untold. The weight of the world may press me down, But never will it make me drown, For in the darkness, a fire burns bright, Guiding me through the endless night. I bend, I break, but I don't fall apart, The fight within still fuels my heart, In shattered pieces, I find my grace, And walk with dignity in every space. Let the storms come, let the winds roar, I’ll rise each time, stronger than before, Unyielding, unbeaten, forever I'll strive, For in my soul, I’m truly alive." Rajeev... ©samandar Speaks Mukesh Poonia Satyaprem Upadhyay Khushi Tiwari Gautam Kumar Sandeep L Guru
Mukesh Poonia Satyaprem Upadhyay Khushi Tiwari Gautam Kumar Sandeep L Guru
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White ख़ुद के ज़ख्मों का खुद हीं हिसाब रखते हैं हम तो गर्मी में ठंडा मिजाज रखते हैं वो जो कहते हैं उन्हें मेरी अब जरूरत ना रही उनके कदमों में दिलो जां निसार रखते हैं धूप आएगी सहर को यकीन है लेकिन शाम नाम पे अपने किस्से तमाम रखते हैं रोज़ दम तोड़ती,सड़क पे हूनर फकीरों की और महलों में लोग गुफ्तगू ए शाम रखते हैं राजीव.. ©samandar Speaks #GoodNight Mukesh Poonia अंजान Satyaprem Upadhyay Gautam Kumar Sandeep L Guru
#GoodNight Mukesh Poonia अंजान Satyaprem Upadhyay Gautam Kumar Sandeep L Guru
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