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Manoj Kumar Chauhan

जरा सोचोजरा सोचो# #Thoughts

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rekha jain

#जरा सोचो

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जरा सोचो 
अपने बड़ों की आंखों को कभी भीगने ना दें क्योंकि जब छत से पानी टपकता है तो घर की दीवारें भी कमजोर हो जाती है।

डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद

©rekha jain #जरा सोचो

Shiv Pratap Rav

सोचो जरा

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************ सोचो जरा

rekha jain

#जरा सोचो

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Hemlatadew08

#जरा सोचो #जानकारी

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jara socho

©Hemlatadew08 #जरा सोचो

harsh kant

जरा सोचो

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कोई भी निर्णय लेने से पहले इंसान को 100 वार सोचना चाहिए
कुछ गलत फैसले इंसान की शानोइज्जत को धब्बा लगा देते हैं जरा सोचो

sk chodhry

सोचो तो जरा #Life

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बदल गया है दौर जमाने के हिसाब से



हमने तो कुछ और ही देखा था अपने ख्वाब में

©sk chodhry सोचो तो जरा

Rupam sinha

जरा सोचो.... #crimestory #सस्पेंस

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विनोद मेहरा

महिला दिवस पर विशेष :-
#internationalwomensday2021
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दिल्ली में एक जगह है GB Road जहाँ पर वैश्यालय हैँ। एक ज़माने में यहाँ जबरजस्ती लायी गयी महिलाएं जिस्मफारोशी करती थी लेकिन कुछ प्रतिशत महिलाएं ऐसी भी हैँ जिनको अपने परिवार पालने के लिए मज़बूरी में जानबूझ कर ये काम करना पढ़ता है। NACO के आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल 6,37,500 सेक्स वर्कर हैँ और 5 लाख कस्टमर इनके पास जाते हैँ (ये आधिकारिक आंकड़ा है.. असली आंकड़ा कई गुना ज्यादा है)। समाज की नजरों में ये एरिया भारत की खूबसूरत राजधानी दिल्ली का कूड़ादान है। लेकिन याद रहे कूड़ादान में घर का ही कूड़ा होता है। पश्चिम के देशों जैसे जर्मनी इत्यादि में इन वैश्यालयों को उद्योग और इनमें काम करने वालो को सेक्स वर्कर्स का लाइसेंस और दर्जा दिया जाता है। भारत में ये काम वर्जित और गैर कानूनी है लेकिन फिर भी हो रहा है और यहाँ जाने वाले लोग वही हैँ जो इसे सभ्य समाज का कूड़ादान मानते हैँ।

पिछले साल दिल्ली सरकार ने इन वैश्यलयों में औद्योगिक मीटर लगवाना आनिवार्य कर दिया जिनका बिल कही गुना ज्यादा आता है। अब ध्यान दीजिये औद्योगिक मीटर सिर्फ सरकार से मान्यता प्राप्त उधोगों में ही लगाए जाते हैँ और वो मान्यता इन्हें दी नहीं गयी लेकिन वसूली उधोगों वाली की जा रही है। यदि सरकार इन्हें मान्यता दे दे तो PF, ESIC, लोन वगैरह जैसी सुविधाओं के लिए ये महिलाएं एलिजिबल हो जाएंगी जिससे इनका बुढ़ापा सुधर जायेगा। कोरोना काल में इन महिलाओं ने सिर्फ वालंटियर्स द्वारा बांटे बिस्किट पर जीवन यापन किया है। इनपर इस तरह के बोझ लाधना कतई जायज नहीं है। चूंकि इस विषय पर सभ्य समाज बोलने, लिखने, बात करने से डरता है इस लिए इनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ कोई नेता लेखक नहीं लिखेगा/बोलेगा। इनकी आवाज को आगे बढ़ाइए, लेखकों पत्रकारों के संज्ञान में लाइए। क्योंकि देश की 6,37,500 सबसे मजबूर महिलाओं को आप यूँ ही नजरअंदाज नहीं कर सकते। (इनकी बाकी समस्याओं पर फिर कभी लिखूंगा)

सनद रहे, कई बलात्कारी वैश्यालय चले गए इस लिए कई मासूमों का जीवन बर्बाद होने से बच गया, सभ्य समाज इनका ऋणी है। महिला दिवस पर इन महिलाओं को भी बधाई देनी है या सिर्फ सभ्य समाज की महिलाओं तक सीमित रहना है ? 
#कालचक्र

©विनोद मेहरा जरा सोचो
#standAlone

Jitendra KumarYadav ( jitu)

मगर जरा सोचो #nojotophoto

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 मगर जरा सोचो
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