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Manoj Kumar Chauhan
जरा सोचो . ©Manoj Kumar Chauhan जरा सोचो#जरा सोचो#
rekha jain
जरा सोचो अपने बड़ों की आंखों को कभी भीगने ना दें क्योंकि जब छत से पानी टपकता है तो घर की दीवारें भी कमजोर हो जाती है। डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद ©rekha jain #जरा सोचो
rekha jain
जरा सोचो एक दिन सब खत्म हो जाता है बस दिल में यादें... और फोन में नंबर रह जाता है...। डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद ©rekha jain #जरा सोचो
harsh kant
कोई भी निर्णय लेने से पहले इंसान को 100 वार सोचना चाहिए कुछ गलत फैसले इंसान की शानोइज्जत को धब्बा लगा देते हैं जरा सोचो
sk chodhry
बदल गया है दौर जमाने के हिसाब से हमने तो कुछ और ही देखा था अपने ख्वाब में ©sk chodhry सोचो तो जरा
विनोद मेहरा
महिला दिवस पर विशेष :- #internationalwomensday2021 ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷ दिल्ली में एक जगह है GB Road जहाँ पर वैश्यालय हैँ। एक ज़माने में यहाँ जबरजस्ती लायी गयी महिलाएं जिस्मफारोशी करती थी लेकिन कुछ प्रतिशत महिलाएं ऐसी भी हैँ जिनको अपने परिवार पालने के लिए मज़बूरी में जानबूझ कर ये काम करना पढ़ता है। NACO के आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल 6,37,500 सेक्स वर्कर हैँ और 5 लाख कस्टमर इनके पास जाते हैँ (ये आधिकारिक आंकड़ा है.. असली आंकड़ा कई गुना ज्यादा है)। समाज की नजरों में ये एरिया भारत की खूबसूरत राजधानी दिल्ली का कूड़ादान है। लेकिन याद रहे कूड़ादान में घर का ही कूड़ा होता है। पश्चिम के देशों जैसे जर्मनी इत्यादि में इन वैश्यालयों को उद्योग और इनमें काम करने वालो को सेक्स वर्कर्स का लाइसेंस और दर्जा दिया जाता है। भारत में ये काम वर्जित और गैर कानूनी है लेकिन फिर भी हो रहा है और यहाँ जाने वाले लोग वही हैँ जो इसे सभ्य समाज का कूड़ादान मानते हैँ। पिछले साल दिल्ली सरकार ने इन वैश्यलयों में औद्योगिक मीटर लगवाना आनिवार्य कर दिया जिनका बिल कही गुना ज्यादा आता है। अब ध्यान दीजिये औद्योगिक मीटर सिर्फ सरकार से मान्यता प्राप्त उधोगों में ही लगाए जाते हैँ और वो मान्यता इन्हें दी नहीं गयी लेकिन वसूली उधोगों वाली की जा रही है। यदि सरकार इन्हें मान्यता दे दे तो PF, ESIC, लोन वगैरह जैसी सुविधाओं के लिए ये महिलाएं एलिजिबल हो जाएंगी जिससे इनका बुढ़ापा सुधर जायेगा। कोरोना काल में इन महिलाओं ने सिर्फ वालंटियर्स द्वारा बांटे बिस्किट पर जीवन यापन किया है। इनपर इस तरह के बोझ लाधना कतई जायज नहीं है। चूंकि इस विषय पर सभ्य समाज बोलने, लिखने, बात करने से डरता है इस लिए इनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ कोई नेता लेखक नहीं लिखेगा/बोलेगा। इनकी आवाज को आगे बढ़ाइए, लेखकों पत्रकारों के संज्ञान में लाइए। क्योंकि देश की 6,37,500 सबसे मजबूर महिलाओं को आप यूँ ही नजरअंदाज नहीं कर सकते। (इनकी बाकी समस्याओं पर फिर कभी लिखूंगा) सनद रहे, कई बलात्कारी वैश्यालय चले गए इस लिए कई मासूमों का जीवन बर्बाद होने से बच गया, सभ्य समाज इनका ऋणी है। महिला दिवस पर इन महिलाओं को भी बधाई देनी है या सिर्फ सभ्य समाज की महिलाओं तक सीमित रहना है ? #कालचक्र ©विनोद मेहरा जरा सोचो #standAlone