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roshan
आना है तॊ आ जाना है तो जा.... घुटने पे बैठके तुम्हे मनाना मुझे शोभा देगा क्या? पानी का नही नाम साब्जी को नही दाम बता गोल्डन नेकलेस तुम्हे दिलाऊ कैसे? कुवा सुख गया है नदी नाला रुख गया है बता तेरे प्यार मे शलांग लगाऊ कैसे? आना है तो आ जाना है तो जा.... बेजान सहै पत्थर पर बिना कुछ चडाये बता मान्नत मे तुझे उसीसे मांगु कैसे? भावनिक मै बहोत हू दिल मे तुम्हेहीं रखता हू पानी बचाते बचाते बता आसू अंखोसे बहाऊ कैसे? आना है तो आ जाना है तो जा..... ....रोशन देसाई.... 12/02/20 इन हिंदी
Pankaj Neeraj
मैं जिस्म हूँ तू रूप है मैं छाँह तो तू धूप है तू आ मिला मेरे सामने मुझको बाँहों में थामने मैं गिर रही जैसे कटी पतंग रहूँ मैं मलंग-मलंग 2 https://wp.me/p7Ts0m-ca #मलंग #मलंग
skmajhi018
दुनिया उन्ही पे भरोसा करती हैं जिन्हे खुद पर भरोसा रहता है ©skmajhi018 #सुविचार इन हिंदी
Vishal Charan
Sabra kar mere bhai udenge lekin Waqt per ©Vishal Charan शायरी इन हिंदी ,#shyari
Prachi Sharma
शूरवीर दोहराते है काठ बने पुतले क्या ही शौर्य बूझ पाते है ©Prachi Sharma #oneliner #हिंदी_कोट्स_शायरी फर्स्ट पोस्ट इन हिंदी इन नोजोटो
Nidhi Sharma मलंग
एक शुद्ध और सटीक बात करनी है मुझे! "ख़ुद से" और वो ये है,की "मैं" एक शुद्ध "चेतना" हूं ©Nidhi Sharma मलंग मलंग
sushil mishra
उस उस ओर चला जिस जिस ओर गया तू उस उस छोर गया जिस जिस छोर गया तू मन तूने दौड़ाया डगर डगर रुकने ना दिया कभी कोई शहर जाने कौन सी धूनी रमाये तू कराता रहा हर पल सफर मस्त मौजी मनमौजी अल्हड़ आवारा तू दिलाता रहा नाम मगर फिर भी तू ना माना करवाता रहा मुझ से सफर कभी दिन बेढंगा कभी शाम सुहानी कभी सुबह मौसमी कभी रात तन्हाई कभी पैदल कभी गाड़ी यूं ही चलती रहा सैलानी कभी दरिया कभी साहिल कभी सावन कभी पतझड़ कभी यादें कभी बातें कभी उसकी की सौगातें देखो कितना लम्बा चला चलता ही गया मन का सफर सब रंग दिखे लोगों के सब ढंग दिखे लोगों के पर जब खुद से मिला मिला में मलंग हो के - सुशील मिश्रा (क्षितिज राज) #मलंग
~आचार्य परम्~
मैं एक में सब रंग हूँ . हाँ मैं मस्त मलंग हूँ । लोंगों के व्यर्थ बातों से .किंचित अब नहीं अफसोस मुझे . मन को मेरे छूकरके कर गया कोई बेहोश मुझे. होश से बेहतर समझकर खुश इसी में हो रहा हूँ बाह्य व्यथाओं को अब शनैः शनैः मैं खो रहा हूँ साथ मे सबके रहकर भी मैं हो गया अनंग हूँ हाँ मैं मस्त मलंग हूँ। संकीर्ण विचारों में घिरकर क्यों व्यर्थ समय गवातें हो. खुद को पीछे छोड़कर तुम लोगों के पीछे जाते हों. खुद में खुश रहना हीं सबसे सुखदायक होता है . बाहर में सुख ढूँढना सदा दुःखदायक होता है तू भी निकल पड़ इस मारग में, आ मैं तेरे संग हूँ हाँ मस्त मैं मलंग हूँ।। " परम् भाग्यम्" मलंग........
Pankaj Neeraj
मुझमें जीने का ढंग भर दे मैं सादी मुझमें रंग भर दे रहे तू हरपल मेरे संग रहूँ मैं मलंग मलंग © https://pankajneerajblog.wordpress.com/ #मलंग