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HP
आहार-विहार, रहन-सहन, वेष-भूषा, विचार तथा जीवन निर्माण में मौलिक सरलता का समावेश होना नितान्त आवश्यक है। मौलिक शरलता
HP
मौलिक सरलता इतनी सजीव होती है कि मनुष्य जब प्रत्येक वस्तु से अपना अधिकार छोड़ देता है और परिस्थितियों के साथ संयोग करता है तभी उसे अपने भीतर का खोखलापन अनुभव हो जाता है और विनम्रता, धैर्य, करुणा तथा विवेक का जागरण होने लगता है। आत्मा सरल है और उसके समर्थन के लिये तर्क की आवश्यकता नहीं। जटिलता तो केवल दुर्गुणों तथा पाप-वृत्तियों के कारण उत्पन्न होती है। अतः मनुष्य जब तक स्वयं पूर्ण जीवन अभिव्यक्त न कर लें, उन्हें अपने मनोविकारों के शोधन परिमार्जन में ही लगे रहना चाहिये। अन्तःकरण में कलुष न रह जाय और बाह्य जीवन में दम्भ न शेष बचे उसी पुरुष का जीवन निश्चयात्मक शान्त एवं दैवी प्रतिभा से ओत-प्रोत होता है। मौलिक शरलता
Sneh Prem Chand
रोटी,कपड़ा और मकान के साथ शिक्षा भी हो सबका मौलिक अधिकार। एक बात का ध्यान रहे बस, शिक्षा के भाल पर तिलक करे संस्कार।। ©Sneh Prem Chand मौलिक अधिकार #InternationalEducationDay
Tarakeshwar Dubey
मौलिक कर्त्तव्य -------------------- जो तुम हो मातु भारती के सच्चे सपूत, तो अनुच्छेद ५१ए का करो अनुपालन। वर्ना अपना असली रूप दिखाओ हमें, हटाओ मुखौटा, खोलो अपना आनन। संविधान राष्ट्र का हैं सर्वोच्च धर्मग्रंथ, संसद हैं राष्ट्र विधि का नव निर्माता। अदालतें निर्मित विधि की पालनहार, जिन्हें न्याय मंदिर कह पूजा जाता। संसद हैं हमारी प्रिय अमिट धरोहर, न्यायलय सभी हमारे अभिमान हैं। इनकी मर्यादाओं की रक्षा में खड़ा, हिंदुस्तान का हर इक नौजवान हैं। अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हम, अक्सर मिल पुरजोर आवाज उठाते हैं। जबरन हासिल करने के निमित्त उसे, राष्ट्रीय संपत्ति की भी बलि चढ़ाते हैं। यद्यपि मौलिक कर्त्तव्यों का कोई ज्ञान नहीं, राष्ट्रीय मर्यादा रक्षा का भी कोई भान नहीं। पर अधिकारों की दुहाई दे संसद चले जाते हैं, बड़े बड़े वकीलों से अदालतों में मुद्दा उठाते हैं। ऐसी गैर जिम्मेदराना हरकत स्वीकार नहीं, स्वार्थ पूर्ति के लिए राष्ट्रक्षति स्वीकार नहीं। जिन्हें मौलिक कर्त्तव्यों से कोई सरोकार नहीं, उन्हें मौलिक अधिकारों का भी अधिकार नहीं। नहीं चाहिए हमें हरगिज ऐसे सांसद, जो संसद की गरिमा कम कर जाएं। ऐसे न्यायाधीशों को हम धिक्कारते, जो न्यायालयों का मान न रखने पायें। हम आर्य पुत्र मेहनतकस भारतवासी, हर दिन नूतन प्रेम की रचना करते हैं। पर सख्त नफरत हमें उन गद्दारों से जो, हमारी संस्कृति को कलंकित करते हैं। दुखद है कि कुछ संकीर्ण विचारधारी, संसद में भी पदासिन अकड़े बैठे हैं। मानवता खोकर कुछ दुष्ट बहुरूपिये, न्यायालयों में भी विराजमान ऐंठे है। इन पापियों की काली करतूतों से हाय! भारत की मिट्टी कलुषित हो रोती है। अब तो छुड़ाओ निशाचरी चंगुलों से, चित्कार चित्कार कर कहती रहती हैं। कहती हैं, ऐ मेरे प्रिय लाल कर्मवीर, अब तो समरांगण में आ लहराओ। खींच निकाल दूर फेकों इन दैत्यों को, मुझ माता की लज्जा शीघ्र बचाओ। कर जाओ कुछ ऐसा कि इस जग में, तुम्हारी भारत माता का सम्मान बढ़े। धर्म संस्कृति महिमा जग में गाई जाए, राष्ट्रधर्म जन जन की दिलों में राज करे। ©Tarakeshwar Dubey मौलिक कर्त्तव्य #IndianLegends
Jamil Khan
गीत- तुमसे हो जाए प्यार। आ जाओ मेरे यार तुमसे फिर हो जाए प्यार इक़ पल के लिए तुमसे मेरा हो जाए दीदार। तेरा आशिक़ खोज़ रहा है तुम क्यों नहीं मिलती हो तुमको बुला रोज़ रहा है पास क्यों नहीं आती हो तेरे बिना वो कैसे रहेगा कर लो न फ़िर एतबार। आ जाओ मेरे यार तुमसे फिर हो जाए प्यार। दिले-मज़रूह किसे दिखाए कौन है यहाँ अपना प्यार की कहानी किसे सुनाए सब है यहाँ बेगाना एक तू ही है यहाँ सहारा बन जाओ न फिर यारे-गार। आ जाओ मेरे यार तुमसे फिर हो जाए प्यार। मो- ज़मील अंधराठाढ़ी, मधुबनी (बिहार) मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित गीत ©Jamil Khan मौलिक, गीत #Trees
Jamil Khan
गीत- प्यार नज़र आएगा आँखों में आँखें डालकर देख मेरा प्यार नज़र आएगा अपनी आँखें को मूंदकर देख मेरा प्यार नज़र आएगा। अपने दिल को खोलकर देख मेरी तसवीर ही आएगी सारे महबूब को तुम भूलाकर तेरी तक़दीर भी रोएगी दुनिया तो वफ़ा-ना-आश्ना है तेरा करार इधर मिलेगा। आँखों में आँखें डालकर देख मेरा प्यार नज़र आएगा। ग़ैरों से दिल लगा लिया तू ने हम से भी लगाके देखो सब को आजमा लिया तू ने अब तुम इधर भी देखो तेरी जुस्तजू में ग़म का मारा ये यार किधर भटकेगा। आँखों में आँखें डालकर देख मेरा प्यार नज़र आएगा। कभी - कभी बहुत हँसती हो कभी तुम ख़ूब रोती हो जब दिल पे चोट लगती है तो यार को ही पुकारती हो अब तो बस दिल-ए-नाशाद है बार - बार कहर ढ़ाएगा। आँखों में आँखें डालकर देख मेरा प्यार नज़र आएगा। मो- ज़मील अंधराठाढ़ी, मधुबनी (बिहार) मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित गीत मो- 9065328412 पिन कोड- 847401 ©Jamil Khan मौलिक, गीत #OneSeason
Jamil Khan
गीत- कैसी चोट दी आप ने कैसी चोट दी अपने आशिक को शाम-ओ-पगाह याद में रो रहा है एक बार हम पर एतमाद करके देख लेते आज वह ख़ूनम -ख़ून हो रहा है। आप ने कैसी चोट दी अपने आशिक को शाम-ओ-पगाह याद में रो रहा है। वह खुले दिल से तो प्यार किया था बहुत आपको तो प्यार रास नहीं आया वह घर को वीरान करके निकला था पहले पर फिर भी प्यार मिल नहीं पाया आपकी दुनिया में वफ़ा की कीमत क्या है मालूम राफ़्ता - राफ़्ता हो रहा है। आप ने कैसी चोट दी अपने आशिक को शाम-ओ-पगाह याद में रो रहा है। आप ने अपनों से मरासिम को तोड़ कर गैरों को दिल में क्यों बसा लिया किसी ग़रीब के साथ तो आपने खेल कर बिलकुल भी नहीं अच्छा किया वह आशिक तो आपको भूलना चाहता है आपका सितम याद आ रहा है। आप ने कैसी चोट दी अपने आशिक को शाम-ओ-पगाह याद में रो रहा है। आपकी चाल असलन बहुत लाजवाब है आशिक भी उतना नहीं खराब है आपकी नीयत को तो खुदा सब जानता है आपके पास अब क्या जवाब है शाम-ए-ज़िन्दगी आप आकर देख लीजिए वह सभी को आजाद कर रहा है। आप ने कैसी चोट दी अपने आशिक को शाम-ओ-पगाह याद में रो रहा है। आप ने कैसी चोट दी अपने आशिक को शाम-ओ-पगाह याद में रो रहा है एक बार हम पर एतमाद करके देख लेते आज वह ख़ूनम-ख़ून हो रहा है। मो- ज़मील अंधराठाढ़ी, मधुबनी (बिहार) मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित गीत मो- 9065328412 पिन कोड- 847401 ©Jamil Khan मौलिक, गीत #OneSeason