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Amar Singh
----------------- मैं अकेली रह गयी हूँ कोई न है मेरे साथ। कभी घर -घर माँ कहलाती थी हर भवन मैं पूजी जाती थी। आज माँ तो सभी कहते है, बातें बड़ी -बड़ी करते है । व्हाट्सऐप, फेसबुक,टवीटर पर है चर्चे करते बेबसाईटों पर। छोड़ देते है सब दुहने के बाद मुझ बेचारी को बुढ़ापे के बाद। मैं अकेली रह गयी हूँ कोई न है मेरे साथ। जंगल काट कर खेत बना लिए उनमें कटीले तार लगा दिए। मुझ पर दया न आती आज है प्रभु कैसा तेरा राज । वह ऊसर जहाँ हम चरते है अब वहाँ भी खेती करते है। कहाँ चरूगी कहाँ रहूँगी कैसे जीवन नया जियूगी ? मैं भी आयी जग में साथ मैं अकेली रह गयी हूँ कोई न है मेरे साथ। मुझे भी तो कुटीर चाहिए झुलसता है बदन गर्मी में मौसम पर जोर किसका जान जाती है सर्दी में। है दूध पिलाया मैंने जिसको अब याद नहीं दन्भी मानव को । दूध पीकर भी नहीं है मेरे साथ मैं अकेली रह गयी हूँ कोई न है मेरे साथ। गाय का दर्द
Amar Singh
----------------- मैं अकेली रह गयी हूँ कोई न है मेरे साथ। कभी घर -घर माँ कहलाती थी हर भवन मैं पूजी जाती थी। आज माँ तो सभी कहते है, बातें बड़ी -बड़ी करते है । व्हाट्सऐप, फेसबुक,टवीटर पर है चर्चे करते बेबसाईटों पर। छोड़ देते है सब दुहने के बाद मुझ बेचारी को बुढ़ापे के बाद। मैं अकेली रह गयी हूँ कोई न है मेरे साथ। जंगल काट कर खेत बना लिए उनमें कटीले तार लगा दिए। मुझ पर दया न आती आज है प्रभु कैसा तेरा राज । वह ऊसर जहाँ हम चरते है अब वहाँ भी खेती करते है। कहाँ चरूगी कहाँ रहूँगी कैसे जीवन नया जियूगी ? मैं भी आयी जग में साथ मैं अकेली रह गयी हूँ कोई न है मेरे साथ। मुझे भी तो कुटीर चाहिए झुलसता है बदन गर्मी में मौसम पर जोर किसका जान जाती है सर्दी में। है दूध पिलाया मैंने जिसको अब याद नहीं दन्भी मानव को । दूध पीकर भी नहीं है मेरे साथ मैं अकेली रह गयी हूँ कोई न है मेरे साथ। गाय का दर्द
डॉ.अजय कुमार मिश्र
तन निरोग हो,मन प्रसन्न हो,ना राग,ना द्वेष हो। सम्पूर्ण जीव-जगत में कुटुम्बकम का भाव हो। प्रकृति से हो रही ऋतुओं की मधुमास हो। सभी प्राणियों में आपसी सद्भाव हो। प्रसन्नता का मूल!