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anurag saxena
वो आकर गले ऐसे लगती है जैसे सर्द मौसम में शॉल ओढ़ा दी किसी ने। --------अनुराग शॉल
paritosh@run
मैं हल्की ठंड नवंबर सा... तुम कड़कती सर्द दिसंबर सी... मैं रूखा भद्दा खादी सा... तुम रेशमी शॉल कश्मीरी सी... ©paritosh@run शॉल कश्मीरी...
paritosh@run
मैं हल्की ठंड नवंबर सा... तुम कड़कती सर्द दिसंबर सी... मैं रूखा भद्दा खादी सा... तुम रेशमी शॉल कश्मीरी सी... ©paritosh@run तुम शॉल कश्मीरी..
Anchit Shri
सर्दियां याद आती हैं बहुत, मेरे शॉल से तेरी ख़ुशबू आज तक नहीं गई...🍁 #सर्दियां #शॉल #तुम #anchitshri
ranjit Kumar rathour
तेरी तरफ से आने वाली हर हवाओ से दरियाफ्त कर लेता हूँ तुम्हारा हाल-चाल संग अच्छा-बुरा सब जान लेता हूँ तुम्हें बताता नही की कही तुम्हें फिर से रस्क,सोच लाल हो लेता हूँ चलो गुलाबी से ख्वाब दिलो मे थोड़ी सी उलफत पाल लेता हूँ हा तुम्हारी दी हुई शॉल जब तब ठंड हो या गर्म मौसम वदन पर डाल लेता हूँ ©ranjit Kumar rathour #Tuaurmain तेरी दी हुई शॉल
Nitesh Prajapati
जब सुबह की महकती हवाएँ, दे रही होती हैं मनमोहक खुशबु तुम्हारी। विजेता को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया जा सकता है😜 गुलज़ार साहब के जन्मदिन पर ख़ास ..💐 शायरी में भाग लीजिये ।collab with Deepak Chandra सबसे अच्छ
Sunita D Prasad
ये मैं, ये तुम और ये गुलाबी ठंड का पदार्पण। ये कुनकुनाती धूप-सी अंगड़ाई लेती मैं और ये मुलायम ठंड-सी तुम्हारी खुली बाँहें। ये एक बार फिर से लंबी रातों का सिलसिला शुरू होना और ये ठंड की तह में दिन का लिपट जाना। ये ठंडी हवा के छूने से देह में उठती सिहरन और ये कॉफी के गरम मग से हथेलियों को सेंकना। ये मेरे शॉल और तुम्हारे मफलर की गुफ्तगू। ये मेरे हाथों का तुम्हारे हाथों में होना और ये हमारी आँखों ही आँखों में बातें हो जाना । ये सब हाँ , ये सब नया-सा है मेरे लिए। बिल्कुल नया-सा..। --सुनीता डी प्रसाद💐 #yqdidi #yqpowrim #yqpowrimo # ये मैं ,ये तुम..... ये मैं, ये तुम और ये गुलाबी ठंड का पदार्पण।
#mai_bekhabar
मेरी पहली कहानी का दूसरा भाग प्रस्तुत है, तीसरा और आखरी भाग जल्द से जल्द आपके सामने लाने की कोशिश रहेगी. तीनो भागो को पढ़ने के लिए आप इस hashtag का इस्तेमाल कर सकते है #bekhabar_stories पहली कमाई - भाग 2 मुझे करीब 10 मिनट लगे शेख बाज़ार पहुँचने मे. लिस्ट पहले से तैयार थी तो मै सबसे पहले हलवाई की दुकान पे गया और उनसे पूछा "भाईसाब लड्डू कितने
Aradhana Agrawal Riddhi
कुछ फ़िल्मी से ख्वाब मेरे एक रोज़ जब थक जाऊँ हज़ार कोशिशों से मैं तब कोई आये पास मेरे और हाथ में चाय लिए एक रोज़ बस में बैठे बैठे कोई मुडे़ मेरी तरफ और पूछे मुझसे बड़े हक से कुछ लाऊँ?? खाओगी तुम?? एक रोज़ जब टीचर की डाँट से परेशान तिलमिलाई बैठूँ मैं तब कोई आये मेरे हाथ से laptop ले और अपना सीना दे मुझे आँसु छिपाने के लिए । एक रोज़ जब सर्द रातों में मैं जल्दबाज़ी में शॉल लेना भूल जाऊंगी तब कोई पीछे से stupid बोले और कंधे में jacket दाल जाए मेरे एक रोज़ जब club से लौटते वक़्त रोड किनारे खड़ी मैं camp के इंतज़ार में तभी अचानक से कोई आए bike में और बोले अगली बार late मत होना झल्ली। ©Aradhana Agrawal Riddhi कुछ फ़िल्मी से ख्वाब मेरे एक रोज़ जब थक जाऊँ हज़ार कोशिशों से मैं तब कोई आये पास मेरे और हाथ में चाय लिए एक रोज़ बस में बैठे बैठे