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Dr. Nazim Moradabadi

रोना आ जाता है किरदारे ख्वातीन पे जब फात्मा ज़हरा की हम याद हया करते हैं नाज़िम_मुरादाबादी✍︎ #विचार

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शुभी

The hypocrisy of today's world. सहबा- wine ज़हराब- poisonous water ज़ियारत- visiting a shrine #yqbaba #Dimri #yqbhaijan shayari hypocris #Hypocrisy

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सहबा को भी वो ज़हराब बताता है,

ज़ियारत पे जो सियासत  कराता है.

 The hypocrisy of today's world.

सहबा- wine
ज़हराब- poisonous water
ज़ियारत- visiting a shrine

#YQbaba #Dimri #yqbhaijan #shayari #hypocris

Shivank Shyamal

मैं तुम्हें क्या नहीं ‘क्या-क्या’ सोचता था। तुम्हारे ज़िक्र को ही इबादत बोलता था।। जो तू गई तो ज़हराब में गोता लगा लिया। तेरा नशा उतारने को #shayri #Hindi #Shayari #nojotohindi #urdu #sher #ibadat #sharab #nojotoenglish

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मैं तुम्हें क्या नहीं ‘क्या-क्या’ सोचता था।
तुम्हारे ज़िक्र को ही इबादत बोलता था।।

जो तू गई तो ज़हराब में गोता लगा लिया।
तेरा नशा उतारने को मैं शराब खोलता था।।

Shivank Srivastava 'Shyamal' मैं तुम्हें क्या नहीं ‘क्या-क्या’ सोचता था।
तुम्हारे ज़िक्र को ही इबादत बोलता था।।

जो तू गई तो ज़हराब में गोता लगा लिया।
तेरा नशा उतारने को

Archana Tiwari Tanuja

#Sunhera #सुनहरा #MyThoughts 08/09/2023 देखने को देखता है हर कोई ख्वाब सुनहरा, पर लगा हुआ उस पर वक़्त का कड़ा पहरा। हकीकत से परे ही नज़र #शायरी

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Vaseem Akhthar

زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے

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ज़हरा    के    चमन    में   जो   फूल   खिले   थे।
करबला  की   ख़ाक   में  आज  बिखरे  पड़े   थे।।

कैसा   समाँ,   कैसा    ज़ुल्म-ओ-सितम    होगा।
सिसकियाँ   लेते  बच्चों   में  जब  तीर  गढ़े   थे।।

सर  पे  सजाए   सेहरा,  चेहरे  पे  लिए  मुस्कान।
शहादत  के  लिए  क़ासिम,  दूल्हे   से  सजे   थे।।

करते  थे   प्यार   से   हुसैन   नाना   की  सवारी।
उनसे   गले   लगने   को  आज  तैयार   खड़े  थे।।

पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार।
शहादत   को   हुसैन   मर्तबा  दिलवाने  चले   थे।।

जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर।
उनके ही सर-ए-अक़दस आज  नेज़ों  पे  चढ़े   थे।।

क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना  मनाऊं  सोग अख़्तर।
तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا  کے  چمن  میں   جو   پھول  کھلے  تھے
کربلا  کی  خاک  میں  آج  بکھرے  پڑے  تھے
کیسا    سماں،   کیسا    ظلم   و   ستم   ہوگا
سسکیاں لیتے

Akthari Begum

زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے #YourQuoteAndMine

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🙌🙌 زہرا  کے  چمن  میں   جو   پھول  کھلے  تھے
کربلا  کی  خاک  میں  آج  بکھرے  پڑے  تھے
کیسا    سماں،   کیسا    ظلم   و   ستم   ہوگا
سسکیاں لیتے

Vaseem Akhthar

زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے

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ज़हरा    के    चमन    में   जो   फूल   खिले   थे।
करबला  की   ख़ाक   में  आज  बिखरे  पड़े   थे।।

कैसा   समाँ,   कैसा    ज़ुल्म-ओ-सितम    होगा।
सिसकियाँ   लेते  बच्चों   में  जब  तीर  गढ़े   थे।।

सर  पे  सजाए   सेहरा,  चेहरे  पे  लिए  मुस्कान।
शहादत  के  लिए  क़ासिम,  दूल्हे   से  सजे   थे।।

करते  थे   प्यार   से   हुसैन   नाना   की  सवारी।
उनसे   गले   लगने   को  आज  तैयार   खड़े  थे।।

पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार।
शहादत   को   हुसैन   मर्तबा  दिलवाने  चले   थे।।

जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर।
उनके ही सर-ए-अक़दस आज  नेज़ों  पे  चढ़े   थे।।

क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना  मनाऊं  सोग अख़्तर।
तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا  کے  چمن  میں   جو   پھول  کھلے  تھے
کربلا  کی  خاک  میں  آج  بکھرے  پڑے  تھے
کیسا    سماں،   کیسا    ظلم   و   ستم   ہوگا
سسکیاں لیتے
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