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Dr. Nazim Moradabadi
शुभी
सहबा को भी वो ज़हराब बताता है, ज़ियारत पे जो सियासत कराता है. The hypocrisy of today's world. सहबा- wine ज़हराब- poisonous water ज़ियारत- visiting a shrine #YQbaba #Dimri #yqbhaijan #shayari #hypocris
Shivank Shyamal
मैं तुम्हें क्या नहीं ‘क्या-क्या’ सोचता था। तुम्हारे ज़िक्र को ही इबादत बोलता था।। जो तू गई तो ज़हराब में गोता लगा लिया। तेरा नशा उतारने को मैं शराब खोलता था।। Shivank Srivastava 'Shyamal' मैं तुम्हें क्या नहीं ‘क्या-क्या’ सोचता था। तुम्हारे ज़िक्र को ही इबादत बोलता था।। जो तू गई तो ज़हराब में गोता लगा लिया। तेरा नशा उतारने को
Archana Tiwari Tanuja
सुनहरा :- *********** देखने को देखता है हर कोई ख्वाब सुनहरा, पर लगा हुआ उस पर वक़्त का कड़ा पहरा। हकीकत से परे ही नज़र आई सच्ची दास्तां, भीतर कालिख भरी!बाहर सजा रंग ज़हरा। रफ़्तार ज़िंदगी की हर दिन बढ़ाते रहें सभी, मौत है सच्चाई!इसके आगे हर कोई ठहरा। कब दबा दिया अरमानों को सात परतों तले! पता भी चला नहीं! रहता समाज का पहरा। छिछला दिखा पानी जहां मैंने पांव रखा वहां, वो भ्रम जाल था सारा मौत का दरिया गहरा। जिधर देखो आदमी हैं फिर भी! सभी तन्हा, गांवों,शहरों से तो अच्छा लगे मुझको सहरा। ज़िंदगी की किश्ती उतारी जहां के समंदर में, था छेद मेरी कश्ती में और पास न था डहरा। अर्चना तिवारी तनुजा ✍️✍️ ©Archana Tiwari Tanuja #Sunhera #सुनहरा #MyThoughts 08/09/2023 देखने को देखता है हर कोई ख्वाब सुनहरा, पर लगा हुआ उस पर वक़्त का कड़ा पहरा। हकीकत से परे ही नज़र
Vaseem Akhthar
ज़हरा के चमन में जो फूल खिले थे। करबला की ख़ाक में आज बिखरे पड़े थे।। कैसा समाँ, कैसा ज़ुल्म-ओ-सितम होगा। सिसकियाँ लेते बच्चों में जब तीर गढ़े थे।। सर पे सजाए सेहरा, चेहरे पे लिए मुस्कान। शहादत के लिए क़ासिम, दूल्हे से सजे थे।। करते थे प्यार से हुसैन नाना की सवारी। उनसे गले लगने को आज तैयार खड़े थे।। पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार। शहादत को हुसैन मर्तबा दिलवाने चले थे।। जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर। उनके ही सर-ए-अक़दस आज नेज़ों पे चढ़े थे।। क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना मनाऊं सोग अख़्तर। तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے
Akthari Begum
🙌🙌 زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے
Vaseem Akhthar
ज़हरा के चमन में जो फूल खिले थे। करबला की ख़ाक में आज बिखरे पड़े थे।। कैसा समाँ, कैसा ज़ुल्म-ओ-सितम होगा। सिसकियाँ लेते बच्चों में जब तीर गढ़े थे।। सर पे सजाए सेहरा, चेहरे पे लिए मुस्कान। शहादत के लिए क़ासिम, दूल्हे से सजे थे।। करते थे प्यार से हुसैन नाना की सवारी। उनसे गले लगने को आज तैयार खड़े थे।। पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार। शहादत को हुसैन मर्तबा दिलवाने चले थे।। जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर। उनके ही सर-ए-अक़दस आज नेज़ों पे चढ़े थे।। क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना मनाऊं सोग अख़्तर। तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا کے چمن میں جو پھول کھلے تھے کربلا کی خاک میں آج بکھرے پڑے تھے کیسا سماں، کیسا ظلم و ستم ہوگا سسکیاں لیتے