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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल :- ख़ैर उसने तो बताई दी है आपने जो भी सफ़ाई दी है जेब से अपने कमाई दी है खेत की सारे जुताई दी है गुड़ तो यूँ ही न बना है भाई पहले गन्ने की पिराई दी है ये रक़म हाथ न ऐसे आयी भर के बोरी आज राई दी है ख़ूब ऊँचा है किसानों में जो बीच में छोड़ पढ़ाई दी है आज औलाद मज़ा है करती क्योंकि हमने ही ढिलाई दी है आसमां छू रही मँहगाई को कर में देखा न रिहाई दी है घूस से तोंद उन्हीं की भारी जिनके कपड़ों की सिलाई दी है ये फ़सल आज प्रखर तुम देखो इसकी हमने ही सिंचाई दी है महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- ख़ैर उसने तो बताई दी है आपने जो भी सफ़ाई दी है जेब से अपने कमाई दी है खेत की सारे जुताई दी है गुड़ तो यूँ ही न बना है भाई पहले गन्न
ग़ज़ल :- ख़ैर उसने तो बताई दी है आपने जो भी सफ़ाई दी है जेब से अपने कमाई दी है खेत की सारे जुताई दी है गुड़ तो यूँ ही न बना है भाई पहले गन्न #शायरी
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उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थोड़ा भी चोखा ।। खुला सुबह से आज है , ठेका सरकारी । जी भर पीकर देख लो , भूलो तरकारी ।। निशिदिन जैसे आज भी , सोयेंगे बच्चे । बनो नही अब आप भी , कलयुग में सच्चे ।। गाँव-गाँव यह रीति है , सब करते थैय्या । मेरे तो सरपंच जी , है बड़का भैय्या ।। दिये न ढेला नोन का , बनते है दानी । देते भाषण मंच पर , बन जाते ज्ञानी ।। करना आज विचार सब , पग धरना धीरे । बिछे राह में शूल है , हम सबके तीरे ।। जाग गये तो भोर है , जीवन में तेरे । वरना राई नोन के , लेते रह फेरे ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थ
उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थ #कविता
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