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दूध नाथ वरुण
जैसे जैसे उम्र बढ़ रही है मेरी, क्या कहें सारी इच्छाएं मर रही है मेरी। कर्म करता हूं मैं रोज़ जीजान से, जाने कब किस्मत बदल रही है मेरी।। ©दूध नाथ वरुण #मेरी इच्छाएं
Vineet Raj Kapoor
मेरी इच्छाएं मुझसे प्यार नहीं करती मगर अपने मोहपाश में जकड़ रखा है देखना एक दिन वो मैं बन जाएंगी अभी तो उन्होंने मुझे ज़रा सा हराया है (विनीत
Writer1
देखो देखो वह बदरी काली, छाए ऐसी है मतवाली, खोल दे पंख मेरे, मैं भी जरा हो जाऊं मतवाली। मंजूर मधुर में चले पुरवाई, गेहूं भी अब पकने लगी, खोल दे पंख मेरे मेरी इच्छाएं भी तरंगित होने लगी, बारिश की रिमझिम बौछार, मुझे आकर चिढ़ाने लगी, खोल दे पंख मेरे, मुझे अंदर की दुनिया सताने लगी। ची-ची करके सखियां बुलाए, मेरा मन भी मचला जाए, खोल जरा पंख मेरे, मेरी पेशानी पर अब शिकन सी आए, मेरा मन भी मचला जाए, नीले नभ उड़ने को उमंगित हुआ जाए, खोल दे पंख मेरे। देखो देखो वह बदरी काली, छाए ऐसी है मतवाली, खोल दे पंख मेरे, मैं भी जरा हो जाऊं मतवाली। मंजूर मधुर में चले पुरवाई, गेहूं भी अब पकने लगी, ख
lalitha sai
मेरी सोणाची नथनी... ❤️❤️ Read caption.... 👇 मेरी सोणाची नथनी... मुझे याद दिलाती है... मुझे.. मैं पास होने का एहसास... मेरी सोणाची नथनी... मुझे याद दिलाती है... मेरी अनगिनत खुशियों के
Divya Joshi
एक सामाजिक कार्य के अंतर्गत कुछ स्त्रियों से मेरी बात हुई थी।उनकी बातें सुनकर व्यथित सा हो गया मन।उनकी पीड़ाएँ, उनके वे शब्द आज भी मन मस्तिष्क में घूमते हैं तो लगता है वे सब मुझ से ही प्रश्न कर रही हों और ख़ुद को मजबूर सा महसूस करती हूँ। जब उन प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाती। उनकी व्यथाओं को स्वयं पर घटित होने की कल्पना ने इस कविता को जन्म दिया था। स्त्री जीवन को अपने मापदंडों पर बाँध कर उसे अपने हिसाब से जीवन जीने को मजबूर करते समाज से प्रश्न करती 15 मार्च 2015 को लिखी मेरी एक कविता 15 मार्च 2015 पढ़ाना तो चाहते हैं मुझे, पर उन्हें मेरा कॉलेज जाना, पसंद नहीं। शादी के लिए साज़ो सामान की तरह प्रदर्शन मंज़ूर है मगर , मेरा घर के बाहर जाना, उन्हें पसंद नहीं। कर्तव्य सारे पूरे करूँ मौन रहकर उनकी है यही मंशा , पर किसी अधिकार के लिए मेरा आवाज़ उठाना, उन्हें पसंद नहीं। ऊँचे पायदान पर देखना तो चाहते हैं वो मुझे, पर घर के काम छोड़ मेरा नौकरी पर जाना, उन्हें पसंद नहीं। खाना बनाते हुए ही अच्छी लगती हूँ मैं उन्हें, मेरा गद्य पद्य बनाना, उन्हें पसंद नहीं। कोचिंग पढ़ाकर पैसा कमाऊँ तो विद्वान हूँ मैं, पर मेरा मन के शब्दों को यूँ कविता में पिरो जाना, उन्हें पसंद नहीं। बर्तन-कपड़े धोती हुई ही पसंद हूँ मैं उन्हें, मेरा लिखकर मन के दर्द धोना, उन्हें शब्दों में संजोना, उन्हें पसंद नहीं। वो खाते हुए मुझे दस बार उठाए तो गलत नहीं पर मेरा चलते फिरते कुछ खाते जाना, उन्हें पसंद नहीं। नवरात्री में कन्या भोज, कन्या पूजन पुण्य है उनके लिए मगर मेरे गर्भ में उसी कन्या का आ जाना उन्हें पसंद नहीं। लेखन, मेरी इच्छाएं, मन मुताबिक जीना ही तो जीवन है मेरे लिए, फिर कैसे परवाह कर लूँ मैं उनकी, जिन्हे मेरा ज़िंदा रह जाना ही पसंद नहीं। (स्वरचित) dj कॉपीराईट ©Divya Joshi एक सामाजिक कार्य के अंतर्गत कुछ स्त्रियों से मेरी बात हुई थी।उनकी बातें सुनकर व्यथित सा हो गया मन।उनकी पीड़ाएँ, उनके वे शब्द आज भी मन मस्तिष्
Deepa Didi Prajapati
जीते जी , मरना जरूरी है, सब इच्छाओं से दूर होकर, सदा मस्ती में जीने के लिए। ©Deepa Didi Prajapati #इच्छाएं
Sharda Sahu
बड़ी अजीब होती हैं ये कमबख्त इच्छाए.. पूरी होने तक और पूरी होने पर भी खत्म नहीं होती..... #इच्छाएं
sarika
अनगिनत इच्छाएं मन की, कुछ पूरी होती तो कुछ रह जाती, मन की मन मे हीं।। -:sarika:- #इच्छाएं