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Sabir Khan
संभ्रांत शब्द आपके रहन-सहन में समाहित है,,, यह आपकी गलत फहमी है। इतिहास गवाह है कि संभ्रांत शब्द तो मर्यादित लोगों के लिए उपयोग किया गया है। संभ्रांत
Ghumnam Gautam
बचपन बीता हो गई,आँख निशानेबाज क्या वेधा मत पूछिए, कहते आए लाज ©Ghumnam Gautam #lalishq #लाज #आँख #निशानेबाज #क्या #ghumnamgautam
Seemit Pal
जिस समाज का बुद्धिजीवी वर्ग..... अपने ही समाज के प्रति बेईमान और भ्रष्ट हो, उस समाज का सत्यानाश करने के लिए दुश्मनों की जरूरत नहीं होती !! ©Seemit Pal जिस समाज का बुद्धिजीवी वर्ग..... #alone #viarl #vibrant_writer
Subodh Kumar
मध्यमवर्गीय लड़कियाँ हमारे यहाँ लड़कियाँ , प्रेम कहाँ करती है? वो कर बैठती है गुनाह। एक ऐसा गुनाह जो हर चलते-फिरते,उठते-बैठते को, धंस जाता है बनके फांस, चुभता-खटकता है आंखों में, बन कांच की किरकिरी। आस-पड़ौस,गली-मोहल्ले, रिश्तेदारी की ब्रेकिंग न्यूज़। चिपका आतीं है अपने कान, उनके घर की दीवारों पर, आस पास की महिलाएं । हरेक घर,बन जाता है कोर्ट, और हर घर का प्रत्येक सदस्य, बन बैठता है कुशल वकील। हर रोज, परोसे जाते है, खाने के टेबल पर अचार के , साथ साथ, उन लड़कियों के, चटपटे कहानी किस्से। रोज होती है सबके घर, "डिनर पे चर्चा" उनकी। उन लड़कियों के घर का प्रत्येक सदस्य, किया जाता है खड़ा बारी बारी , से कटघरे में। लगाए जाते है तमाम संगीन इल्जाम उन पर तथाकथित वकीलों द्वारा, साबित किए जाते हैं कारक, लालनपालन में खोट, अत्यधिक छूट का परिणाम, पैतृक कुसंस्कार। उधेड़ा और खंगाला जाता है, इन कुशल वकीलों द्वारा, लड़की के घर का, संदेहास्पद इतिहास । गुजरते है उनके अभिवावक गली-कूचों से नजरें झुकाये-चुराए कि जैसे हों कोई चोर,मुजरिम। मारता है छोटा-बड़ा हर कोई, पत्थर,व्यंग और तानों के, खींच खींच के,कि हों जैसे, पत्थरबाज कश्मीर के। ठीक सेना कि भांति, बच-बच निकलते है ऐसी , लड़कियों के अन्य भाई-बहन। करीबी रिश्तेदार बन जाते है जज और सुना डालते है तालिबानी फरमान कि"होती गर जो उनकी बेटी तो घोंट देते गला ,अपने इन हाथों से।" इसलिये तो ज्यादार लड़कियाँ हार , कर लेती हैं स्वीकार, अपना अपराध , और करती है प्रायश्चित। झोंक देती हैं अपनी शिक्षा, ज्ञान,विज्ञान,कैरियर, थोपे गए अपराध बोध को, मिथ्या आदर्शवाद के चूल्हे में। लगा अपना भविष्य दाव पर, कर लेती है ब्याह,अनजाने, अनदेखे,बिना जांचे, योग्यता युवक की। खेल जाती है जुआ खुद ही खुद, के साथ समाज के इस ढोंगी चौसर पर। साबित करती है खरा खुद को, समाज की कसौटी पर, कहलाने के लिये आदर्श संस्कारी पुत्री । सचमुच लड़कियां हमारे, यहाँ प्रेम कहाँ करती है , वो करती हैं गुनाह। मध्यम वर्ग