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Anuj Ray
रेत के घर बनाते रहते हैं" तुम्हीं को इश्क़ मेरी जान,मोहब्बत तुम्हीं को कहते हैं। पकाते हैं खिचड़ी अधेड़ धुन में, ज़िन्दगी तुम ही को कहते हैं। डरते हैं ख़्वाब टूट के बह जाए न पानी में, फिर भी रेत के घर बनाते रहते हैं। ©Anuj Ray # रेत के घर बनाते रहते हैं"
Shashi Bhushan Mishra
रेत के घर बनाते रहते हैं, स्वप्न दिल में सजाते रहते हैं, टूट जाए नहीं कोई सपना, नींद पलकों पे लाते रहते हैं, रहे रौशन सदा अरमान मेरे, एक दीपक जलाके रहते हैं, अंधेरी रात में डर का साया, राम धुन गुनगुनाते रहते हैं, बड़ी दुश्वारियां भरा जीवन, राग भैरव सुनाते रहते हैं, दरीचा-ए-दिल में रहे रौनक, रूठे रहबर मनाते रहते हैं, रहे मदहोश न दुनिया गुंजन, यहाँ सब आते-जाते रहते हैं, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #रेत के घर बनाते रहते हैं#
ABRAR
चाह कर कौन छोड़ता है घर अपना हम मुहाजिर हैं इक नौकरी के लिए ©ABRAR चाह कर कौन छोड़ता है घर अपना हम मुहाजिर हैं इक नौकरी के लिए - अबरार Reeda
( prahlad Singh )( feeling writer)
ll वो मुड़ा, मुझको मुड़ कर देखा नही एक फूल था हाथ से, उसको फेका नही में उस फूल का अकेला कांटा हूं जो टूटा तो पर हाथ से निकला नही ll ©( prahlad Singh )( feeling writer) हाथ से निकला नही#Tulips
omkar432
एक दिन हम भी भी बो आसमान का तारा बनजायेगे, टूट के आसमान से दुआ मांगने बालों के लिऐ सहारा बन जायेंगे। और कभी लगे की तुम उदास हो, तो आसमान में देखलेना, लाखों करोड़ों तारा गड़ मिल के देखने बालों के लिए नज़ारा बन जायेंगे। ©omkar432 #ArabianNight देखने बालों के लिए नज़ारा बन जायेंगे।
Ashraf Fani【असर】
निकला जेल से पेंशन ऐंठ के माफीवीर बुलबुल पर बैठ के । ©Ashraf Fani【असर】 निकला जेल से पेंशन ऐंठ के माफीवीर बुलबुल पर बैठ के
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- घर में ही पुन्य कमाने के लिए रहता हूँ । माँ के मैं पाँव दबाने के लिए रहता हूँ ।। दुश्मनी दिल से मिटाने के लिए रहता हूँ । धूल में फूल खिलाने के लिए रहता हूँ ।। शहर में मैं नही जाता कमाने को पैसे । हाथ बापू का बटाने के लिए रहता हूँ ।। जानता हूँ दूरियों से खत्म होगें रिश्ते । मैं उन्हें आज बचाने के लिए रहता हूँ ।। हर जगह जल रहे देखो आस्था के दीपक । मैं उन्हीं में घी बढ़ाने के लिए रहता हूँ ।। कितने कमजोर हुए हैं आजकल के रिश्ते । उनको आईना दिखाने के लिए रहता हूँ ।। कुछ न मिलता है प्रखर आज यहाँ पे हमको । फिर भी इनको मैं हँसाने के लिए रहता हूँ । ११/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- घर में ही पुन्य कमाने के लिए रहता हूँ । माँ के मैं पाँव दबाने के लिए रहता हूँ ।। दुश्मनी दिल से मिटाने के लिए रहता हूँ । धूल में फूल
Bulbul varshney
ख्वाब में तुम हर राह में तुम जहां भी नजर घुमाऊ हर जगह सिर्फ तुम ही तुम। ©Bulbul varshney #woaurmain वो और मैं सिर्फ एक दूसरे के लिए ही बने हैं।
Sanoj Bhaskar Sir
Saurabh pal 85
वो गाडी से इलाहाबाद शहर देख रही थी! मैं कनखियो से , उसे देख रहा था !! वो अपना घर देख रही थी। मैं अपना घर देख रहा था !! ©Saurabh Pal वो गाड़ी से इलाहाबाद शहर देख रही थी! मैं कनखियो से , उसे देख रहा था। वो अपना घर देख रही थी। मैं अपना घर देख रहा था!!