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sourav srivastava
बस्ते बच्चे की दोस्ती, मेरे यादों का खज़ाना तेरे नाम से मशहूर होना, बर्बादियों का खज़ाना किस्मत को कोसूँ मैं, या समझूं मौसम की बेवफ़ाई तेरे मर्ज़ी से इश्क़ होना, वायदों का खज़ाना आंसुओं को रोकूं मैं, या सुनुँ विरह की सुनवाई तेरे इंतज़ार में रोज़ बहना , नदियों का खज़ाना शीशे को तोड़ूँ मैं, या खुद में देखूँ तेरी परछाई तेरी आदतों में रंग जाना, सदियों का खज़ाना शराब छोड़ूं मैं, या लूँ दो घूँट दवाई तेरे नशे में संभल जाना, कैदियों का खज़ाना -सौरव श्रीवास्तव कैदियों का खजाना......
Gita
ए फूल नहीं सिर्फ ,किसी का दिया हुआ खुशियां से भरा एक अनमोल नजराना है मेरी खुशियों का खजाना है कहता है फूल , सुन मेरी गुलाबो ए दुनिया तो काटो से भरी जालिमों सी है री, पर मेरी गुलाबो तुझको तो काटो संग चल फुलो सा मुस्कुराना कर गुलाब की तरह खिलाना है री,रोते हुए चेहरों पे गुलाबो सी मुस्कान लाना है री डर मत काटो के दर्द से,दर्द को मुस्कुरा के पीना है री,कहता है छोटासा फूल हसकर जिंदगी बिताने है री,री, #खुशियों का खजाना#
I Love Nojoto. follow me
दूर सही मजबूर सही पर याद तुम्हारी आती है तुम एटीएम में डाले जाते हो तो खुशबू यहां पर आती है😁🤣 दोस्तों शायरी अच्छा लगे तो चैनल को सब्सक्राइब कीजिए ©I Love Nojoto. follow me शायरी का खजाना
Mohan Sardarshahari
सुबह सर्दियों में अलाव जगाकर बैठ अपनों संग बतियाना सर्दी के बहाने वो खुले में कुश्ती,माला देना लगता इसमें कुछ नहीं था पर था सेहत का खजाना। गाय, भैंस , बकरी वाला वह घर का भरा दालान बरबस ही मन मोह लेता था वो बछड़ों का रंभाना शब्द नहीं होते थे ,पर हेत हृदय पहचाना हाथ फेर स्नेह जताना वही था सेहत का खजाना। मोरों की आवाज सुनकर वह वर्षा का अनुमान लगाना खाने से पहले नहा धोकर पाव चुग्गा बरसाना पूरे दिन पक्षियों का कलरव सुन वह हृदय का हरसाना लगता इसमें कुछ नहीं था पर था सेहत का खजाना। मिट्टी के बर्तन से घी-दूध मिट्टी के बर्तन में लेकर बैठ रेत में सुबह-सुबह ही गटकना ना खांसी, ना एलर्जी,ना शरीर का लाल होना इतने मस्त मलंग थे बैठ जमीन पर ही नहाना लगता इसमें कुछ नहीं था पर था सेहत का खजाना। सूरज की धूप सेंक कर दोपहर सर्दियों में ओढ़ कम्बल सो जाना सोचता हूं यही था पूरे साल की इम्यूनिटी का खजाना लगता इसमें कुछ नहीं था पर था सेहत का खजाना। मकान चाहे कच्चे थे उसूल बड़े पक्के थे बिन रोटी लायक काम के कोई पड़े -पड़े नहीं खाते थे सरकारों की योजनाओं का कभी मुंह नहीं ताकते थे खुद ही बुनकर, खुद सील कर मोटा कपड़ा पहनते थे पगड़ी पहन ठसक से रहना वाह रे वाह क्या कहना लगता इसमें कुछ नहीं था पर था सेहत का खजाना। ©Mohan Sardarshahari सेहत का खजाना
rekha jain
सच का खजाना सारा ज्ञान किताबों से नहीं मिलता कुछ ज्ञान मतलबी लोगों से भी मिलता है डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद ©rekha jain #सच का खजाना