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इस पर्व का संबंध शिव जी से है और 'हर' शिव जी का नाम हैं इसलिए हरतालिका तीज अधिक उपयुक्त है. महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखने का संकल्प लेती ह #astrologynormal

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KP NEWS HD कंवरपाल प्रजापति समाज ओबीसी for the

©KP NEWS HD इस पर्व का संबंध शिव जी से है और 'हर' शिव जी का नाम हैं इसलिए हरतालिका तीज अधिक उपयुक्त है. महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखने का संकल्प लेती ह

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#atrisheartfeelings #ananttripathi #Sundarkand #Sunderkand #yqbaba #Devotional तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन स

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तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम॥
सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥
तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥
तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥
अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥
जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥
सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥
कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥
प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥ #atrisheartfeelings #ananttripathi
#sundarkand #sunderkand #yqbaba
#devotional

तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन स

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 6 हनुमानजी विभीषण को श्री राम कथा सुनाते है:- तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्रा #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 6
हनुमानजी विभीषण को श्री राम कथा सुनाते है:-
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम ॥6॥
विभिषणके ये वचन सुनकर हनुमानजी ने रामचन्द्रजी की सब कथा विभीषण से कही और अपना नाम बताया।

प्रभु राम के नाम स्मरण से, दोनों के मन आनंदित हो जाते है:-
परस्पर की बाते सुनते ही दोनों के शरीर रोमांचित हो गएऔर श्री रामचन्द्रजी का स्मरण आ जाने से दोनों आनंदमग्न हो गए ॥6॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

विभीषण हनुमानजी को अपनी स्थिति बताते है:-
सुनहु पवनसुत रहनि हमारी।
जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥
तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा।
करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥
विभीषण कहते है की – हे हनुमानजी!
हमारी रहनी हम कहते है सो सुनो।
जैसे दांतों के बिचमें बिचारी जीभ रहती है,ऐसे हम इन राक्षसोंके बिच में रहते है॥
हे तात! वे सूर्यकुल के नाथ (रघुनाथ),
मुझको अनाथ जानकर कभी कृपा करेंगे?

बिना भगवान् की कृपा के सत्पुरुषों का संग नहीं मिलता:-
तामस तनु कछु साधन नाहीं।
प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥
अब मोहि भा भरोस हनुमंता।
बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥
जिससे प्रभु कृपा करे ऐसा साधन तो मेरे है नहीं।क्योंकि मेरा शरीर तो तमोगुणी राक्षस है,और न कोई प्रभुके चरण कमलों में मेरे मन की प्रीति है॥
परन्तु हे हनुमानजी, अब मुझको इस बात का पक्का भरोसा हो गया है कि,
भगवान मुझ पर अवश्य कृपा करेंगे।क्योंकि भगवान की कृपा बिना सत्पुरुषों का मिलाप नहीं होता॥

हनुमानजी द्वारा प्रभु श्री राम के गुणों का वर्णन:-
प्रभु श्री राम भक्तों पर सदा दया करते है
जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा।
तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥
सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती।
करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥
रामचन्द्रजी ने मुझ पर कृपा की है इसी से आपने आकर मुझको दर्शन दिए है॥
विभीषणके यह वचन सुनकर हनुमानजीने कहा कि, हे विभीषण! सुनो,प्रभु की यह रीती ही है की वे सेवक पर सदा परमप्रीति किया करते है॥

हनुमानजी कहते है, श्री राम ने वानरों पर भी कृपा की है:-
कहहु कवन मैं परम कुलीना।
कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥
प्रात लेइ जो नाम हमारा।
तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥
हनुमानजी कहते है की कहो मै कौन सा कुलीन पुरुष हूँ।हमारी जाति देखो (चंचल वानर की),जो महाचंचल और सब प्रकार से हीन गिनी जाती है॥
जो कोई पुरुष प्रातःकाल हमारा (बंदरों का) नाम ले लेवे,तो उसे उस दिन खाने को भोजन नहीं मिलता॥

शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र- 
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः। 
शनि देव महाराज के वैदिक मंत्र- 
ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये। 
शनि देव का एकाक्षरी मंत्र- ऊँ शं शनैश्चाराय नमः। 
शनि देव जी का गायत्री मंत्र- ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।

विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 255 से 265 नाम 
255 सिद्धिसाधनः सिद्धि के साधक

256 वृषाही जिनमे वृष(धर्म) जोकि अहः (दिन) है वो स्थित है
257 वृषभः जो भक्तों के लिए इच्छित वस्तुओं की वर्षा करते हैं
258 विष्णुः सब और व्याप्त रहने वाले
259 वृषपर्वा धर्म की तरफ जाने वाली सीढ़ी
260 वृषोदरः जिनका उदर मानो प्रजा की वर्षा करता है
261 वर्धनः बढ़ाने और पालना करने वाले
262 वर्धमानः जो प्रपंचरूप से बढ़ते हैं
263 विविक्तः बढ़ते हुए भी पृथक ही रहते हैं
264 श्रुतिसागरः जिनमे समुद्र के सामान श्रुतियाँ रखी हुई हैं
265 सुभुजः जिनकी जगत की रक्षा करने वाली भुजाएं अति सुन्दर हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 6
हनुमानजी विभीषण को श्री राम कथा सुनाते है:-
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्रा

Vikas Sharma Shivaaya'

शनि गायत्री मंत्र: .-ॐ भग भवाय विद्महे मृत्यु-रूपाय धीमहि तन्नो शौरीहि प्रचोदयात् || -ॐ शनैश्चराय विद्महे छायापुत्राय धीमहि तन्नो मंद: प्रच #समाज

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शनि गायत्री मंत्र:
.-ॐ भग भवाय विद्महे मृत्यु-रूपाय धीमहि तन्नो शौरीहि प्रचोदयात् ||

-ॐ शनैश्चराय विद्महे छायापुत्राय धीमहि तन्नो मंद: प्रचोदयात ||

-ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात ||

सुंदरकांड:   दोहा – 1

प्रभु राम का कार्य पूरा किये बिना विश्राम नही
हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ॥1॥
हनुमानजी ने उसको अपने हाथसे छुआ,
फिर उसको प्रणाम किया, और कहा की –
रामचन्द्रजीका का कार्य किये बिना मुझको विश्राम कहाँ? ॥1॥
श्री राम का कार्य जब तक पूरा न कर लूँ,
तब तक मुझे आराम कहाँ?
श्री राम, जय राम, जय जय राम

सुरसा का प्रसंग
देवताओं ने नागमाता सुरसा को भेजा
जात पवनसुत देवन्ह देखा।
जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता।
पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥1॥
देवताओ ने पवनपुत्र हनुमान् जी को जाते हुए देखा और
उनके बल और बुद्धि के वैभव को जानने के लिए॥
देवताओं ने नाग माता सुरसा को भेजा।
उस नागमाताने आकर हनुमानजी से यह बात कही॥

सुरसा ने हनुमानजी का रास्ता रोका
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा।
सुनत बचन कह पवनकुमारा॥
राम काजु करि फिरि मैं आवौं।
सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥2॥
आज तो मुझको देवताओं ने यह अच्छा आहार दिया।
यह बात सुन, हँस कर हनुमानजी बोले॥
मैं रामचन्द्रजी का काम करके लौट आऊँ और
सीताजी की खबर रामचन्द्रजी को सुना दूं॥

हनुमानजी ने सुरसा को समझाया कि वह उनको नहीं खा सकती
तब तव बदन पैठिहउँ आई।
सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥
कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना।
ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥3॥
फिर हे माता! मै आकर आपके मुँह में प्रवेश करूंगा।
अभी तू मुझे जाने दे। इसमें कुछ भी फर्क नहीं पड़ेगा।
मै तुझे सत्य कहता हूँ॥
जब सुरसा ने किसी उपायसे उनको जाने नहीं दिया,
तब हनुमानजी ने कहा कि,
तू क्यों देरी करती है? तू मुझको नही खा सकती॥

सुरसा ने कई योजन मुंह फैलाया, तो हनुमानजी ने भी शरीर फैलाया
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा।
कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ।
तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥4॥
सुरसाने अपना मुंह, एक योजनभरमें (चार कोस मे) फैलाया।
हनुमानजी ने अपना शरीर, उससे दूना यानी दो योजन विस्तारवाला किया॥
सुरसा ने अपना मुँह सोलह (16) योजनमें फैलाया।
हनुमानजीने अपना शरीर तुरंत बत्तीस (32) योजन बड़ा किया॥

सुरसा ने मुंह सौ योजन फैलाया, तो हनुमानजी ने छोटा सा रूप धारण किया
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा।
तासु दून कपि रूप देखावा॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा।
अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥5॥
सुरसा ने जैसे-जैसे मुख का विस्तार बढ़ाया, जैसा जैसा मुंह फैलाया,
हनुमानजी ने वैसे ही अपना स्वरुप उससे दुगना दिखाया॥
जब सुरसा ने अपना मुंह सौ योजन (चार सौ कोस का) में फैलाया,
तब हनुमानजी तुरंत बहुत छोटा स्वरुप धारण कर लिया॥

सुरसा को हनुमानजी की शक्ति का पता चला
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा।
मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा।
बुधि बल मरमु तोर मैं पावा॥6॥
छोटा स्वरुप धारण कर हनुमानजी,
सुरसाके मुंहमें घुसकर तुरन्त बाहर निकल आए।
फिर सुरसा से विदा मांग कर हनुमानजी ने प्रणाम किया॥

उस वक़्त सुरसा ने हनुमानजी से कहा की –
हे हनुमान! देवताओंने मुझको जिसके लिए भेजा था,
वह तुम्हारे बल और बुद्धि का भेद, मैंने अच्छी तरह पा लिया है॥

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' शनि गायत्री मंत्र:
.-ॐ भग भवाय विद्महे मृत्यु-रूपाय धीमहि तन्नो शौरीहि प्रचोदयात् ||

-ॐ शनैश्चराय विद्महे छायापुत्राय धीमहि तन्नो मंद: प्रच
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