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Ravendra
INDIA CORE NEWS
Shivkumar
Black मेरी कविता मेरे विचार, इसके सिवा नहीं कुछ यार । मैं जो कुछ भी देख रहा हूं, वही लिख रहा केवल यार ।। दुनिया क्या कहती है यार, मुझको नहीं कोई परवाह । वाह-वाह के लिए न लिखता, मैं सबकी करता हूं परवाह ।। सोए जन जागे सब यार, यही सोचता हूं मैं यार । आए दिन हम लिखते रहते, मेरी कविता का समझो सार ।। स्वयं में पहले करो सुधार, मैं यही बात समझाऊं यार । स्वयं को कमजोर न समझें, जो तुम हो वह कोई ना यार ।। पीछे मुड़कर नहीं देखना, आगे केवल निहारों यार । कवि होरीलाल विनीता लिखें, जरा ज्ञान बढ़ाओ थोड़ा यार ।। ©Shivkumar #Thinking #think #Nojoto #nojotohindi #दिलकीबातशायरी143 मेरी कविता मेरे #विचार इसके #सिवा नहीं कुछ यार मैं जो कुछ भी देख रहा हूं वही लि
Ravendra
Rabindra Kumar Ram
*** ग़ज़ल *** *** दरीचे *** " गिले-शिकवे तमाम रखेंगे , मुहब्बत के दरीचे तमाम रखेंगे , फिर तुझसे कैसे और क्या मिला जाये , बात जो भी फिर गिला - शिकवा का क्या किया जाये , यूं रोज़ आयेदिन तुमसे सामना होता ही रहेगा फिर किसी ना किसी बहाने , मुहब्बत की पुर-ख़ुलूस मुहब्बत ही रहेगा , दिल को दिलासा ना देते तो क्या देते , इस एवज में दिल को तुझे मुहब्बत करने से सुधार तो नहीं देते , यूं देखना भी फिर देखना ही हैं यूं तसव्वुर के ख्यालों से , फिर किसी और की तस्बीर लगा तो नहीं देते , जो है सो है फिर किसी और को पनाह तो नहीं देते , दिल फिर इस इल्म से गवारा क्या कर लें , तुझे छोड़ के फिर से इश्क़-मुहब्बत दुबारा कर लें . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** दरीचे *** " गिले-शिकवे तमाम रखेंगे , मुहब्बत के दरीचे तमाम रखेंगे , फिर तुझसे कैसे और क्या मिला जाये , बात जो भी फिर गिल
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से , दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो सब मिलकर, करो मतदान को । ये तो सब लुटेरे हैं , करते हेरे-फेरे हैं पहचानते है हम , छुपे शैतान को । मतदान कर रहे , क्या बुराई कर रहे, रेंगता है मतदाता , देख के विधान को ।।१ वो भी तो है मतदाता, क्यों दे जान अन्नदाता , पूछने मैं आज आयी , सुनों सरकार से । मीठी-मीठी बात करे , दिल से लगाव करे, आते हाथ सत्ता यह , दिखता लाचार से । घर गली शौचालय, खोता गया विद्यालय, देखे जो हैं अस्पताल , लगते बीमार से। घर-घर रोग छाया , मिट रही यह काया , पूछने जो आज बैठा , कहतें व्यापार से ।।२ टीप-टिप वर्षा होती , छत से गिरते मोती , रात भर मियां बीवी , भरते बखार थे । नई-नई शादी हुई , घर में दाखिल हुई , पूछने वो लगी फिर , औ कितने यार थे । मैने कहा भाग्यवान , मत कर परेशान , कल भी तो तुमसे ही , करते दुलार थे । और नही पास कोई , तुम बिन आँख रोई, जब तेरी याद आई , सुन लो बीमार थे ।।३ २८/०३/२०२४ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से , दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो
Ravendra
Dr.Vinay kumar Verma
Devesh Dixit
महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल। खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये सुर ताल।। बीच वर्ग के हैं पिसे, देख हुए नाकाम। अब सोचें वह क्या करें, बढ़ा सकें कुछ काम।। फिर भी हैं कुछ घुट रहे, मिला न जिनको काम। महँगाई के दर्द में, जीना हुआ हराम।। चिंतित सब परिवार हैं, दें किसको अब दोष। महँगाई ऐसी बढ़ी, थमें नहीं अब रोष।। विद्यालय व्यवसाय हैं, दिखते हैं सब ओर। शुल्क मांँगते हैं बहुत, पाप करें ये घोर।। मुश्किल से शिक्षा मिले, कहते सभी सुजान। महँगाई की मार है, यही बड़ा व्यवधान।। .......................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #महँगाई_की_मार #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल। खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये
Ravendra