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Sunita Naik
मला वाटलं नव्हत, आयुष्यात तुझ्यासारखा कोणी येईल. केलेल्या चांगल्या कामाचे पारितोषिक आहे तू. मी फुलावानी दररोज बहरते, त्याला कारण तू दिलेल्या प्रेमाचे खत आहे. तुझ्या समजून घेण्याने, माझ्या विस्वासावर विश्र्वास ठेवण्याने, माझा आत्मविश्वास वाढतो. तुझ्या अफाट प्रेमाने माणूसकी आणि प्रामाणिकपणा अजून वाढतो. गेली पाच वर्षे आपल्या माणसांचा दुरावा, त्याने आलेल्या तुझ्या मनात दुखत लाटाचे चटके, तु आम्हाला कधी लागू दिले नाही. आज तुझ्या यशाचे शिखर उभे आहे, त्याचे श्रेय फक्त तुलाच. आमचे भविष्य उज्ज्वल करण्यामागे, आणि स्वत:चे करिअर घडवण्यामागे, तुझी माणूसकी आणि तुझा संघर्ष आहे. भारी
JD
एक नदी बरसात के पानी से खारी हो गई..!! फ़िर समन्दर को उस नदी से यारी हो गई..!! कि थी जिसने परवरिश गैरों के बर्तन मांज कर..!! आज वो ही मां कई बेटों पे भारी हो गई..!! ***** #भारी
प्रणव एहसास
मेरे उस कुनबे में कई जमीदार रहते है, वहां नही है एक टुकड़ा जमी, मंदिर के लिए , जहां कई धर्मराज रहते है। "प्रणव एहसास" ©प्रणव एहसास #मंदिर
Rajnish Shrivastava
महादेव के मंदिर में आज अनायास चला आया । देखकर उनका विराट रूप मन अत्यधिक हर्षाया । ©Rajnish Shrivastava #मंदिर
Ganesh Kumar Verma
सुन लो मन की आवाजों को……. मंदिर-मस्जिद क्यों दौड़ रहे, खोलो मन के दरवाजों को, बाहर इतना क्यों शोर करो, सुन लो मन की आवाजों को। बैठा है ईश्वर क्या मंदिर में? या चर्च में, या गुरुद्वारे में ? जीवनदाता जो जग का है, क्यों रहे वो किसी के सहारे में। नर- नर में है, चराचर में है, अम्बर में है और भुतालों में, क्या कैद है वो किसी मानव निर्मित दरवाजे और तालों में? नही मिलेगा वो मंदिर-मस्जिद और किसी गिरजाघर में, वो खुश ना हो पाखण्डों में , ना हीं विविध आडम्बर में। यदि उससे लगन लगानी हो, उससे गर आँख मिलानी हो , तो सुन लेना किसी लाचार ,और बेबस के फरियादों को । मंदिर-मस्जिद क्यों दौड़ रहे, खोलो मन के दरवाजों को । बाहर इतना क्यों शोर करो, सुन लो मन की आवाजों को। सारी ध्वनियां बंद करो, बस बजने दो मन की साजों को , मानव इतना क्यों शोर करो,बस सुन लो मन की आवाजों को। गणेश वर्मा ……. …..मन की कलम से ………………. ©Ganesh Kumar Verma #मंदिर