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शिव सागर
मुखालिफत ये गुनाहों की हदें हैं इंतिहा है हुक्मरां का दिल नहीं अब तक भरा है ज़ुल्म तेरे याद हैं हमको ज़ुबानी ज़ख़्म पिछले जन्म का अब तक हरा है आग भड़केगी कभी तेरे किले में क्या हुआ जो आज फूलों से सजा है अब तलक है वक्त रोको तुम हवा को हर किसी में गर्म अंगारा भरा है हुक्मरां की बौखलाहट है गवाही आज पहली बार राजा भी डरा है आफ़ताबों के बहुत नज़दीक हो तो बाज़ ऊंचे आसमानों से गिरा है गोलियों की गूंज से डरते नहीं अब दिल लबालब हौसलों से जो भरा है चाहने वाले तिरे होंगे कई पर बाढ़ के आगे कहां तिनका बचा है। :- परवाज़ रायपुरी (शिवसागर) ©शिव सागर सरकार के ख़िलाफ़ एक नज़्म। #letter
Azhar Raza
ख़्वाहिशें जो अंधेरों में छुपा दी मैंने, नजदीकियां जो रोशनी से थीं घटा दी मैंने, तुमसे मोहब्बत करने का फितूर जो लिए बैठा था मैं,उस मोहब्बत की बातें दिल में दबा दी मैंने तुमसे कहने को कुछ लफ्ज़ कागज़ पर लिखे थे मैंने,आज खुद ही अपने हाथ से उनमें आग लगा दी मैंने मसला ये नहीं कि तन्हा फिर रहा हूं मैं, मसला ये है कि तन्हा होकर भी तुम्हे दिल में जगह दी मैंने जो था एक पंछी क़ैद मेरे दिल के कैदखाने में, उसे आज रिहाई देकर खुद से आजादी दे दी मैंने Azhar नज़्म