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हिमांशु Kulshreshtha

बिखर जाये

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White तुम जो साथ हो
तब भी मौसम ए हिज्र है
इस तो बेहतर है
कि बिखर जाएं हम

©हिमांशु Kulshreshtha बिखर जाये

दक्ष आर्यन

शाही स्नान करने तुम भी कुम्भ के मेले गए थे क्या? पुण्य कमाने गए थे या पाप धोने गए थे क्या? मन मेला करके गए थे जो, वो साफ करके आये हो क्या?

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शाही स्नान करने तुम भी कुम्भ के मेले गए थे क्या?
पुण्य कमाने गए थे या पाप धोने गए थे क्या?
मन मेला करके गए थे जो, 
वो साफ करके आये हो क्या?
पाप धोके आये हो या पाप करके आये हो क्या?

रूह को भीगाया है या जिस्म से नहाके आये हो!
क्या पछतावे वाले आंसू गंगा मे बहाके आये हो!
या सिर्फ भीड़ का हिस्सा बनने गए थे तुम 
या भेड़चाल मे दिखावा करने गए थे तुम 
जो भगदड़ मे दब के मर गए 
उसके तुम भी जिम्मेदार हो 
तुम पुण्य से पहले पाप के हक़दार हो 
अब बताओ सच बताना क्या इंसाफ करके आये हो 
कुछ पुण्य कमाया या सिर्फ बदन साफ करके आये हो
ऐसा ही नहाना था तो घर मे भी नहा सकते हो 
पाप ही धोने है तो भूखे को रोटी खिला सकते हो, प्यासे को पानी पिला सकते हो,
 इस रास्ते से तुम कभी भी पुण्य कमा सकते हो

©दक्ष आर्यन शाही स्नान करने तुम भी कुम्भ के मेले गए थे क्या?
पुण्य कमाने गए थे या पाप धोने गए थे क्या?
मन मेला करके गए थे जो, 
वो साफ करके आये हो क्या?

दक्ष आर्यन

#Sad_Status कुछ बात ज़ख्म दे जाती है, घाव दे जाती गहरा पर रैत के जैसे बिखर रही है, सांस वक़्त के सहरा पर

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White कुछ बात ज़ख्म दे जाती है, घाव दे जाती गहरा पर 
रैत के जैसे बिखर रही है, सांस वक़्त के सहरा पर

©दक्ष आर्यन #Sad_Status कुछ बात ज़ख्म दे जाती है, घाव दे जाती गहरा पर 
रैत के जैसे बिखर रही है, सांस वक़्त के सहरा पर

dilkibaatwithamit

मुझे याद है कभी एक थे, मग़र आज हम हैं जुदा जुदा वो जुदा हुए तो सँवर गए, हम जुदा हुए तो बिखर गए कभी रुक गए कभी चल दिए, कभी चलते चलते भटक ग

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White मुझे याद है कभी एक थे, मग़र आज हम हैं जुदा जुदा 
वो जुदा हुए तो सँवर गए, हम जुदा हुए तो बिखर गए 

कभी रुक गए कभी चल दिए, कभी चलते चलते भटक गए 
यूँ ही उम्र सारी गुज़ार दी, यूँ ही ज़िंदगी के सितम सहे 

कभी नींद में कभी होश में, तू जहाँ मिला तुझे देख कर 
ना नज़र मिली ना ज़ुबाँ हिली, यूँ ही सर झुका कर गुज़र गए 

कभी ज़ुल्फ़ पर कभी चश्म पर, कभी तेरे हसीन वुजूद पर 
जो पसन्द थे मेरी किताब में, वो शेर सारे बिखर गए 

कभी अर्श पर कभी फ़र्श पर, कभी उन के दर कभी दर बदर 
ग़म ए आशिक़ी तेरा शुक्रिया, हम कहाँ कहाँ से गुज़र गए..!!

©dilkibaatwithamit मुझे याद है कभी एक थे, मग़र आज हम हैं जुदा जुदा 
वो जुदा हुए तो सँवर गए, हम जुदा हुए तो बिखर गए 

कभी रुक गए कभी चल दिए, कभी चलते चलते भटक ग

Kiran Chaudhary

सारे सपने धरे के धरे रह गए मेरे, जब हकीकत से मेरा सामना हुआ।।

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सारे सपने धरे के धरे रह गए मेरे,
जब हकीकत से मेरा सामना हुआ।।

©Kiran Chaudhary सारे सपने धरे के धरे रह गए मेरे,
जब हकीकत से मेरा सामना हुआ।।

Sheera Singh

#love_shayari भूल गए हैं

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White उसको समझाना भूल गए हैं 
नजरें मिलाना भूल गए हैं 
नहीं भूले करनी मोहब्बत उनसे 
हां मोहब्बत जताना भूल गए हैं

©Sheera Singh official #love_shayari भूल गए हैं

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर ज़रा सी बात पे बिखर गए जो रिश्ते, कभी सोचो उन लम्हों की क़ीमत क्या थी। तुमने समझा नहीं मेरा हाल-ए-दिल, वरना हमारी मोहब्बत में श

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ज़रा सी बात पे बिखर गए जो रिश्ते,
कभी सोचो उन लम्हों की क़ीमत क्या थी।
तुमने समझा नहीं मेरा हाल-ए-दिल,
वरना हमारी मोहब्बत में शिकायत क्या थी।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
ज़रा सी बात पे बिखर गए जो रिश्ते,
कभी सोचो उन लम्हों की क़ीमत क्या थी।
तुमने समझा नहीं मेरा हाल-ए-दिल,
वरना हमारी मोहब्बत में श

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर इश्क़ के बाज़ार में हर कोई खरीदार नहीं होता, कुछ तो टूटे दिल लिए मुफ्त ही बिखर जाते हैं।

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Unsplash इश्क़ के बाज़ार में हर कोई खरीदार नहीं होता,
कुछ तो टूटे दिल लिए मुफ्त ही बिखर जाते हैं।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
इश्क़ के बाज़ार में हर कोई खरीदार नहीं होता,
कुछ तो टूटे दिल लिए मुफ्त ही बिखर जाते हैं।

नवनीत ठाकुर

#षड्यंत्रों की छाया हर दिल पर भारी, भ्रष्टाचार की चादर ने लूट ली जिम्मेदारी। शोषण के जख्म चीखते हैं बेआवाज़, जुर्म के मंजर बन गए रोज़ का आगा

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White षड्यंत्रों की छाया हर दिल पर भारी,
भ्रष्टाचार की चादर ने लूट ली जिम्मेदारी।
शोषण के जख्म चीखते हैं बेआवाज़,
जुर्म के मंजर बन गए रोज़ का आगाज़।

अपहरण के धंधे अब आम हो गए,
अपराधी खुलेआम इनाम हो गए।
छेड़छाड़ के ज़ख्म लहू-लुहान हैं,
इंसाफ के मंदिर खुद बदगुमान हैं।

यह कैसी सभ्यता, यह कैसी रवायत?
जहां जुर्म को मिलती है हर इक सहायत।

©नवनीत ठाकुर #षड्यंत्रों की छाया हर दिल पर भारी,
भ्रष्टाचार की चादर ने लूट ली जिम्मेदारी।
शोषण के जख्म चीखते हैं बेआवाज़,
जुर्म के मंजर बन गए रोज़ का आगा

Hari

लोग कैसे टूट जाते हैं

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